राजपथ - जनपथ
कुछ दाग-धब्बे बने रहते हैं
प्रदेश के 13 आईएफएस अफसरों के तबादले किए गए। इनमें आईएफएस के 2003 बैच के अफसर राजेश चंदेले की फील्ड में पोस्टिंग की गई है। उन्हें कांकेर सीसीएफ बनाया गया है। चंदेले स्वीमिंग पूल विवाद पर जांच के घेरे में आए थे। हालांकि बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई, और प्रमोट भी हो गए।
मामला दस साल पुराना है, तब चंदेले दंतेवाड़ा में डीएफओ थे। मीडिया में यह बात सामने आई थी कि डीएमएफ की राशि से डीएफओ बंगले में 70 लाख खर्च कर स्वीमिंग पूल का निर्माण किया गया। इसके बाद चंदेले को हटा दिया गया, और मामले की जांच के लिए वन विभाग ने कमेटी बनाई।
जांच में यह बात सामने आई कि स्वीमिंग पूल निर्माण स्थल, कलेक्टर-डीएफओ बंगलों का कॉमन लैंड है। वन विभाग की जांच में यह कहा गया कि स्वीमिंग पूल के निर्माण में विभागीय मद का उपयोग नहीं किया गया है, बल्कि डीएमएफ की राशि, और ठेकेदारों का सहयोग लेकर किया गया। डीएमएफ कमेटी के चेयरमैन कलेक्टर होते हैं, और कलेक्टर की अनुशंसा पर ही स्वीमिंग पूल के लिए राशि जारी की गई थी।
साफ था कि कलेक्टर, और अन्य अफसरों ने अपने लिए स्वीमिंग पूल का निर्माण कराया था। ये अलग बात है कि कलेक्टर जांच के घेरे में नहीं आए, और अहम पोस्टिंग पाते रहे। अब वो केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। मगर विभाग से क्लीन चिट मिलने के बाद चंदेले पर अब भी स्वीमिंग पूल का दाग निकल नहीं पाया है।
कॉलेज में स्ट्रेस रिलीज बोतलें

नशे की पार्टियां अब क्लब, होटल, बार-रेस्टोरेंट, फार्म हाउस की रंगीन रातों से बाहर निकल गई हैं। अब ये पार्टियां राजधानी के कालेजों में पहुंच गई हैं। वह भी कॉलेजों में। पांच से छह कालखंड की कथित पढ़ाई का स्ट्रेस दूर करने छात्र घर जाने से पहले क्लास रूम या कालेज की छत पर शराबखोरी कर रहे हैं। इसे स्ट्रेस रिलीज पार्टी का नाम देकर बोतलें खोली जा रही हैं। इसमें छात्रों के साथ छात्राएं भी हिस्सेदार हो रही हैं।
यह मामला कल तब खुला जब शहर के बीच के एक कॉलेज में नशे की हालत में छात्रों में जूतमपैजार हुई। होश वालों ने यह बात कालेज में तो पता नहीं चलने दिया लेकिन बात थाने तक पहुंच गई। यह बात हमें पुलिस वालों ने ही बताई यह कहते हुए कि आजकल बच्चों को क्या हो गया है? स्कूल कालेज में प्रिंसिपल, शिक्षकों से भी बेखौफ हो गए हैं।
सही भी है क्योंकि प्राचार्यों या अधिष्ठाता का पूरे परिसर में होने वाला चेकिंग राउंड का न होना, छुट्टी के बाद सूने क्लास रूम और छतों की जांच न करना, सब कुछ बंद हो गए हैं। छोटी सी किसी बात पर किसी छात्र-छात्रा को कुछ कह दिया तो एनएसयूआई, एबीवीपी की गुट राजनीतिक नारेबाजी पर उतर आते हैं। नैतिकता सिखाने से बेहतर है प्राचार्य, प्राध्यापक क्लास लेकर घर जाएं।
छात्राओं की आवाज अनसुनी क्यों?

स्कूलों और शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं, ऐसा दावा शिक्षा विभाग का है, मगर जिस तरह से फैसले लिए गए हैं- उससे पता चलता है कि विभाग ने स्कूलों की संख्या घटाने के लिए पहले से ही मन बना लिया था। इसका एक उदाहरण गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर के मामले से समझा जा सकता है। यहां के एक गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल को इस प्रक्रिया के चलते ब्वायज स्कूल में मर्ज कर दिया गया है। कहा तो यह जा रहा है कि जिन शालाओं में दाखिला कम है, उनमें युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है लेकिन इस स्कूल में 425 छात्राएं पढ़ रही हैं। उनको अब उस स्कूल में जाने के लिए कहा जा रहा है जहां लडक़े पढ़ते हैं। वहां लडक़ों की संख्या 225 ही है। यानि लगभग दो गुनी दर्ज संख्या वाले स्कूल को बंद कर वहां की छात्राओं को छात्रों के साथ पढ़ाई करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारी सह-शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कहकर इस फैसले को सही ठहरा रहे हैं लेकिन यहां छात्राओं की बात समझने की जरूरत है। वे कहते हैं कि हमें उनके साथ पढऩे में असुविधा होगी। हमें छात्रों के शरारतों, उपद्रवों का सामना करना पड़ेगा। कन्या शाला में हम काफी सहजता के साथ पढ़ाई कर लेते हैं, नई जगह पर, नए माहौल मे पढऩे के हमें क्यों बाध्य किया जा रहा है, जबकि छात्राओं की दर्ज संख्या पर्याप्त है। इस मुद्दे के विरोध में छात्राएं अपने अभिभावकों के साथ कलेक्टर से मिलने के लिए गरियाबंद पहुंच गईं। मगर, उन्हें निराशा हुई जब कलेक्टर उनसे मिले बिना ही दफ्तर से बाहर निकल गए। इससे नाराज छात्राओं ने फिंगेश्वर-महासमुंद मार्ग पर चक्काजाम भी कर दिया। यूनिफॉर्म में ही सडक़ पर बैठ गईं। मगर यह आंदोलन कितनी देर चल पाता, सब वापस लौट गए। पर नाराजगी अभी दूर नहीं हुई है। युक्तियुक्तकरण के फैसले के खिलाफ भी और कलेक्टर के रवैये को लेकर भी। शिक्षा विभाग जब दो स्कूलों को एक साथ मर्ज कर देता है तो दोनों के लिए अलग-अलग शिक्षकों की मांग नहीं रहेगी। शायद इसी मंशा से छात्राओं की दर्ज संख्या और उनकी भावनाओं और चिंता का ध्यान रखे बिना युक्तियुक्तकरण कर दिया गया। जब बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बात पर जोर दिया जाता है तो फिर ऐसे फैसले क्यों लिए जा रहे हैं?
प्लेन तो ले आए थे, मुसाफिर कहां से?

कुछ महीने पहले अंबिकापुर से विमानसेवा शुरू होने पर स्थानीय कारोबारियों, और नेताओं ने खुशियां मनाई थी। केन्द्र सरकार की ‘उड़ान’ योजना के जरिए अंबिकापुर-बिलासपुर, और रायपुर के लिए पिछले साल दिसंबर में निजी कंपनी फ्लाई बिग ने विमान सेवा शुरू की थी। मगर चार महीने बाद भी विमानसेवा पर ब्रेक लग गया। हाल यह है कि पिछले दो महीने से विमानसेवा पूरी तरह बंद हो गया।
विमानसेवा बंद होने के पीछे विमानन कंपनी फ्लाई बिग प्रबंधन का तर्क है कि अंबिकापुर-बिलासपुर के लिए पैसेंजर पर्याप्त संख्या में नहीं मिल पा रहे थे। इस वजह से विमानसेवा बंद करनी पड़ी। स्थानीय लोगों की मांग रही है कि रायपुर-अंबिकापुर-बनारस के लिए विमानसेवा शुरू की जानी चाहिए।
वजह यह है कि अंबिकापुर से बनारस आने जाने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। मगर बिलासपुर, और फिर रायपुर तक विमानसेवा शुरू की गई थी, जो कि फायदेमंद नहीं हो सकती थी। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने रूट बदलने की मांग कर रहे हैं ताकि विमान सेवा शुरू हो सके। लेकिन फिलहाल इसके आसार कम दिख रहे हैं। इससे परे रायपुर-जगदलपुर, और हैदराबाद विमानसेवा सफलतापूर्वक चल रही है।


