राजपथ - जनपथ
गोवंश से जुड़े कारोबार की दिक्कतें..
छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में गाय और गोवंश किसानों की अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त सहारा देते हैं। दूध, खाद और खेती-बाड़ी में इनके उपयोग से किसानों की आय बढ़ती है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब ये पशु बूढ़े या बीमार होकर काम के नहीं रहते। आस्था और परंपरा से बंधे किसान अपनी हैसियत के अनुसार उनकी देखभाल तो करते हैं, मगर यह हमेशा संभव नहीं हो पाता।
कानून भी किसानों के सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। गाय और कृषि पशुओं का वध तो अपराध है ही, उनका बिना अनुमति परिवहन भी गैरकानूनी है। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ कृषि पशु संरक्षण अधिनियम 2004 के तहत परिवहन और वध पर पाबंदी है। एक में तीन साल तो दूसरे में सात साल की सजा है। इधर गौरक्षक इस बात की परवाह किए बिना वाहनों का पीछा करते हैं कि परिवहन वैध है या अवैध। कई बार इनकी कार्रवाइयां हिंसक हो जाती हैं। बीते साल छत्तीसगढ़ के आरंग इलाके में यूपी के तीन युवक ऐसी ही जांच के दौरान नदी में कूद गए थे। दो की मौके पर मौत हो गई और तीसरे ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। रामानुजगंज में भी दो युवकों की हत्या दर्ज हो चुकी है। अन्य राज्यों में इनसे भी ज्यादा बड़े हादसे दर्ज हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2016 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में और 2017 में संसद के भीतर कह चुके हैं कि गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी हो रही है और राज्यों को इस पर सख्त निगरानी के लिए डोजियर बनाना चाहिए।
इस मुद्दे पर चर्चा इसलिए क्योंकि, हाल ही में महाराष्ट्र में यह मुद्दा गरमा गया है। वहां भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में एनसीपी (अजित पवार गुट) भी शामिल है। कुरैशी समुदाय, जो मांस और पशु व्यापार से जुड़ा है, पवार का बड़ा समर्थक माना जाता है। पवार ने पुलिस को निर्देश दिया है कि कोई भी अनधिकृत व्यक्ति वाहनों की जांच न करे और इस संबंध में सभी थानों को सर्कुलर जारी किया जाए। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत का कहना है कि आदेश अधूरा है, क्योंकि इसमें यह साफ नहीं है कि यदि कोई जबरन गाडिय़ों को रोकता है तो पुलिस कार्रवाई क्या करेगी।
इस बहस में भाजपा के अपने नेता भी सरकार से सहमत नहीं हैं। पार्टी के एमएलसी और किसान नेता सदाभाऊ खोत ने 2015 में बने उस कानून पर ही सवाल खड़ा किया है, जिसमें गाय, बैल और सांड के वध पर रोक है। उनका तर्क है कि यह कानून किसानों के खिलाफ है। दूध न देने वाले अनुत्पादक पशुओं की देखभाल का खर्च किसानों पर अतिरिक्त बोझ बन गया है। साथ ही, गौरक्षकों के डर से अन्य राज्यों से अच्छी नस्ल की गायें लाने का रास्ता बंद हो गया है। खोत का कहना है कि इस कानून से न तो किसानों को लाभ हुआ और न ही देसी गायों का भला हुआ। उनका आशय यह है किगोरक्षा के नाम पर बने कानून और गौरक्षक समूह दोनों ही किसानों और पशु व्यापार से जुड़े समुदायों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की चेतावनी और दिशा-निर्देशों के बावजूद राज्यों ने अब तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं बनाई है। छत्तीसगढ़ में गौधाम योजना से संकेत हैं कि अनुत्पादक गायों का पुनर्वास हो जाएगा, जो प्रचलित गौशालाओं से अच्छी होगी, पर क्या डेयरी व्यवसाय और खेती में काम लेने के लिए गोवंशों का परिवहन यहां आसान है, या स्थिति महाराष्ट्र की तरह ही गंभीर है?
किसी की लॉटरी भी निकलेगी?
विष्णुदेव साय कैबिनेट में पहली बार के तीन विधायकों को मंत्री के रूप में जगह मिल सकती है। राजभवन में शपथ ग्रहण की तैयारी भी चल रही है। चर्चा है कि दिल्ली से लेकर रायपुर तक भाजपा के सीनियर विधायकों को किसी तरह एडजस्ट करने पर मंथन चलता रहा।
बताते हैं कि पूर्व मंत्री, और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके विक्रम उसेंडी को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया गया था। मगर उसेंडी ने अनिच्छा जाहिर कर दी है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, और अमर अग्रवाल भी इसके लिए सहमत होंगे, इसकी संभावना कम जताई जा रही है। ये सभी अनौपचारिक चर्चा में अलग-अलग जगहों पर कह चुके हैं कि अगर उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाता, तो अपनी विधायकी से ही संतुष्ट हैं। वे किसी संवैधानिक पद पर काम नहीं करना चाहते हैं।
पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि पूर्व मंत्रियों के विधानसभा उपाध्यक्ष पद संभालने से इंकार करने के बाद पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह की लॉटरी निकल सकती है। धर्मजीत, जोगी कांग्रेस से भाजपा में आए, और तखतपुर से विधायक बने। धर्मजीत सिंह कांग्रेस की जोगी सरकार में विधानसभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। हालांकि इसमें समय है, और विधानसभा के शीतकालीन सत्र में उपाध्यक्ष का चुनाव होने के आसार हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नयों और पुरानों का समीकरण
चर्चा है कि पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को कैबिनेट में जगह मिलने की प्रबल संभावना जताई जा रही थी। कहा जा रहा है कि खुद सीएम विष्णुदेव साय, अमर के नाम पर सहमत थे। मगर सोमवार को उन्हें सूचना दे दी गई कि उनकी जगह नए लोगों को मौका दिया जा रहा है।
अमर को मंत्री नहीं बनाने के पीछे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को बड़ी वजह माना जा रहा है। अमर अग्रवाल, और कौशिक बिलासपुर से आते हैं। पार्टी के अंदरखाने में दोनों में प्रतिद्वंदिता रही है। ऐसे में अमर को मंत्री बनाने से दूसरे मजबूत दावेदार कौशिक की नाराजगी का खतरा था।
कौशिक, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। वो संगठन के पसंदीदा माने जाते हैं। चूंकि सामाजिक, और स्थानीय समीकरण को देखते हुए दोनों के लिए कैबिनेट में जगह नहीं बन पा रही थी इसलिए पार्टी के रणनीतिकारों ने दोनों को ही बाहर रखना उचित समझा। अब कहा जा रहा है कि कौशिक-अमर के समर्थकों में मायूसी जरूर है, लेकिन नाराजगी नहीं है। वाकई ऐसा है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
नई लिस्ट और पुरानों की उदासी
सत्ता, और संगठन में सीनियर नेताओं को दरकिनार किए जाने का असर देखने को मिल रहा है। भाजपा के सीनियर नेता पहले जैसी सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। इससे पार्टी कार्यक्रमों पर भी फर्क पड़ा है। पिछले दिनों भाजपा ने तिरंगा यात्रा निकाली। सभी जिलों, और ब्लॉकों में यह यात्रा निकली।
राजधानी रायपुर में 13 तारीख को तिरंगा यात्रा में मौजूद भीड़ चर्चा का विषय रही। चूंकि संगठन पदाधिकारियों की सूची सुबह जारी हो गई थी। इसलिए पदाधिकारी बनने से रह गए सीनियर नेताओं ने तिरंगा यात्रा के आयोजन में वैसी भागीदारी नहीं निभाई जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं। कुल मिलाकर कई जगहों पर आयोजन फीका रहा। नए पदाधिकारी, सीनियर नेताओं की जगह ले पाएंगे, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।


