राजपथ - जनपथ
नामों पर गलतफहमी
आखिरकार भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों की बहुप्रतीक्षित सूची बुधवार को जारी हो गई। सूची को लेकर पार्टी के अंदरखाने में सकारात्मक प्रतिक्रिया है। हालांकि पार्टी के सीनियर नेता मायूस बताए जा रहे हैं। एक-दो नामों को लेकर कन्फ्यूजन भी पैदा हो गई है। मसलन, पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू को प्रदेश प्रकोष्ठ का सहसंयोजक बनाया गया है।
भाजपा में दो चुन्नीलाल साहू हैं, दोनों ही विधायक रह चुके हैं। एक चुन्नीलाल साहू खल्लारी सीट से विधायक रहे हैं। वो महासमुंद के सांसद भी रहे। मगर 2023 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी, और उनकी जगह रूपकुमारी चौधरी को प्रत्याशी बना दिया।
खल्लारी के चुन्नीलाल साहू ने टिकट कटने के बाद पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया, और रूपकुमारी चौधरी की जीत सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। एक अन्य चुन्नीलाल साहू अकलतरा सीट से विधायक रहे हैं। वो कांग्रेस में थे, और लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए। अब दोनों पूर्व विधायकों में से किसे पदाधिकारी बनाया गया है, इसको लेकर असमंजस की स्थिति रही। बाद में पार्टी दफ्तर से साफ किया गया कि खल्लारी के चुन्नीलाल साहू को सहसंयोजक बनाया गया है।
जिले से अब प्रदेश कोषाध्यक्ष
भाजपा में राम गर्ग को प्रदेश कोषाध्यक्ष बनाया गया है। राम गर्ग की नियुक्ति को लेकर पार्टी के भीतर कानाफूसी हो रही है। वजह ये है कि ज्यादातर लोग उनसे परिचित नहीं हैं। गर्ग मुख्यमंत्री के गृह जिला जशपुर के कांसाबेल इलाके के रहने वाले हैं। वो पहले भी दो बार जिले के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। राम गर्ग को सीएम विष्णुदेव साय के साथ-साथ महामंत्री (संगठन) पवन साय का भी भरोसा हासिल है। इससे पहले तक पार्टी का कोष पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल संभालते रहे हैं। कुछ समय के लिए पाठ्य पुस्तक निगम के पूर्व अध्यक्ष भीमसेन अग्रवाल को कोषाध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया था।
बाद में फिर गौरीशंकर को जिम्मेदारी दे दी गई। अरुण साव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नंदन जैन को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। नंदन को अब प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया गया है। उनकी जगह राम गर्ग पार्टी के कोष का लेखा-जोखा रखेंगे।
सूचना देने के लिए रिसर्च की जरूरत

सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए आम लोगों को एक बड़ा हथियार मिला है-सूचना का अधिकार अधिनियम। कुछ दिनों के बाद इसे देश में लागू हुए 20 साल हो जाएंगे। जिन 29 राज्यों में सूचना का अधिकार कानून लागू है, उनमें से 7 ऐसे राज्य हैं जहां अक्सर या तो मुख्य चुनाव आयुक्त या सूचना आयुक्तों के पद खाली रहे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। इसे लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग से भी सवाल जवाब शुरू किया। जवाब देने से पहले साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू की गई, ऐसा लगा कि खाली पद अब भर ही जाएंगे, मगर कुछ आवेदकों ने हाईकोर्ट में याचिका लगा दी। इसके बाद से नियुक्ति की प्रक्रिया स्थगित हो गई है। प्रदेशभर में बैठे अफसरों को, खासकर जो जन सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी हैं, उनके लिए यह बड़ी सुविधाजनक स्थिति है। उन्हें पता है कि केवल एक सूचना आयुक्त को पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही है। बस्तर से लेकर जशपुर तक। ऐसे में यदि वे आरटीआई के आवेदनों को रद्दी में भी डाल दें तो उस पर सुनवाई होने में लंबा वक्त लग जाएगा। राज्य सूचना आयोग के पास अपीलों की संख्या हजारों में पहुंच चुकी है। सारे पदों पर यदि आज नियुक्ति हो भी जाए तो उनके निपटारे में, बहुत तेजी से काम करने के बावजूद डेढ़ दो साल तो लग ही जाएंगे। ऐसे में उल्टे सीधे जवाब देने से क्या फर्क पडऩे वाला है?
ऐसा ही एक मामला देखने को मिला है बिलासपुर के राजेंद्र नगर में स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल का। आवेदन लगाया गया कि कला संकाय में कितने रिक्त पद हैं, कितने कार्यरत हैं और कितने स्वीकृत हैं। सूचना अधिकारी ने जवाब दिया, आपने जो जानकारी चाही है, वह अनुसंधान की प्रकृति का है, इसलिए प्रदाय किया जाना संभव नहीं है। जानकारी नहीं देने का यह बहाना चौंकाने वाला और हास्यास्पद है। सूचना अधिकारी से पूछा जा सकता है कि एक स्कूल में खाली पद, भरे हुए पद की जानकारी देने में किस तरह के अनुसंधान की जरूरत है? इसके लिए विज्ञान की प्रयोगशाला में घुसना होगा या फिर किसी पीएचडी के गाइड से मदद लेनी होगी? यह एक्ट आम लोगों के प्रति तंत्र की जवाबदेही के लिए है लेकिन इस एक्ट से हर एक अफसर बचना चाहता है। जो बहाने दिए जाते हैं, उनमें अनुसंधान का उल्लेख अपने आप में नायाब है। ऐसा जवाब लिखने वाले सूचना अधिकारी को पता ही होगा कि भ्रामक जवाब देने, टालमटोल करने पर भी दंड का प्रावधान है। मगर, सूचना आयोग के पंशु होने की बात भी उनको मालूम होगी। इसीलिए बिना किसी खौफ के बेसिर-पैर का तर्क देकर सूचना देने से मना किया जा रहा है।
कुछ को कुछ मिलना बाकी

प्रदेश भाजपा की सूची में जगह नहीं मिलने से पार्टी के कई नेता निराश हैं। इन नेताओं ने देर रात तक प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, पवन साय, और क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल से संपर्क कर अपनी मायूसी का इजहार करते रहे। पार्टी के रणनीतिकारों ने उन्हें आश्वस्त किया है कि निगम मंडलों, और कार्यकारिणी की सूची आने वाली है जिसका इंतजार करना चाहिए। कुछ को तो भरोसा है, मगर कई ऐसे हैं जिन्हें उम्मीद की किरण कम दिख रही है।
पूर्व विधायक रजनीश सिंह को महामंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। अब कहा जा रहा है कि उन्हें बिलासपुर जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष या कोई निगम मंडल में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह अब तक प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर थे, लेकिन उन्हें जगह नहीं मिली। हल्ला है कि उन्हें मार्कफेड चेयरमेन बनाया जा सकता है। भाजपा के रणनीतिकार अपने फैसलों को लेकर चौंकाते रहे हैं। सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा कि किसको क्या मिलता है।


