राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : दहाड़ की फिक्र नहीं, तो चिंघाड़ की किसे चिंता?
09-Jul-2025 6:41 PM
	 राजपथ-जनपथ : दहाड़ की फिक्र नहीं, तो चिंघाड़ की किसे चिंता?

दहाड़ की फिक्र नहीं, तो चिंघाड़ की किसे चिंता?

2014 से 2024 के बीच भारत सरकार ने ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे खनिज-समृद्ध राज्यों में करीब 1.7 लाख हेक्टेयर जंगल को विकास कार्यों, खासकर खनन के लिए मंजूरी दे दी। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा कोयला और खनिज खनन का है।

सरिस्का टाइगर रिजर्व, जो अरावली की पहाडिय़ों में है और रणथंभौर जैसे टाइगर कॉरिडोर से जुड़ा है, वहां हाल ही में केंद्र सरकार के स्थायी वन्यजीव बोर्ड ने 48.39 वर्ग किमी संरक्षित जंगल को खनन के लिए हरी झंडी दे दी। बदले में 90.91 वर्ग किमी उजाड़ जंगल जोड़ देने की बात कही गई। मानो, हीरा लेकर  कांच का टुकड़ा देना- यहां हीरे की जगह पर आप संगमरमर को रख सकते हैं। पर्यावरण एक्टिविस्ट कह रहे हैं कि जो जंगल बदले में दिया जा रहा है, दरअसल वह वन्यजीवों के अनुकूल ही नहीं। इस फैसले से 50 खदानों को मंजूरी मिल गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट 1990 से लेकर 2024 तक कई बार खनन रोकने के आदेश दे चुका है। 15 मई 2024 को तो कोर्ट ने यहां 68 खदानों को बंद करने का आदेश दिया और राजस्थान सरकार को फटकार भी लगाई। बावजूद इसके खनन की इजाजत मिल गई। पर्यावरणविद कह रहे हैं कि यह टाइगर कॉरिडोर पर सीधा हमला है।

अब छत्तीसगढ़ की सुनिए। हसदेव अरण्य के जंगलों में भी यही कहानी दोहराई जा चुकी है और यह अब भी जारी है। ये वही इलाका है जहां हाथियों का प्राकृतिक रहवास हैं। और एलिफेंट कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया जा चुका है। यह विरोध थमा भी नहीं है कि रायगढ़ जिले के मडग़ांव और सरितोला गांवों के बीच 200 एकड़ जंगल साफ कर दिया गया। यहां के गारे-पेलमा सेक्टर-2 में महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी और अदाणी समूह मिलकर नई कोयला खदान शुरू करने जा रहे हैं।

राजस्थान की तरह स्थानीय आदिवासी और पर्यावरण कार्यकर्ता यहां पर भी पिछले कई वर्षों से जंगल बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने वन अधिकार अधिनियम, 2006 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के उल्लंघन के खिलाफ एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तक दस्तक दी है। कई ग्राम सभाओं ने खनन के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए, लेकिन उनकी असहमति को फर्जी दस्तावेजो से बदल दिया गया, और जंगल को काटने का फ्री पास जारी कर दिया गया। जब प्राथमिकता सिर्फ मुनाफा और उद्योगपतियों की सुविधा हो, तो न आदिवासी की आवाज सुनी जाएगी, न अदालत के आदेशों का मान रखा जाएगा। जिन बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए नए-नए टाइगर रिजर्व बनाए जा रहे हों, उनकी फिक्र नहीं हो तो, हाथियों की फिक्र कौन करेगा?

डीजीपी लेट होने की वजह

डीपीसी के बाद भी डीजीपी के आदेश को लेकर सस्पेंस कायम है। केन्द्र सरकार ने दो नाम का पैनल राज्य को भेज दिया है। राज्य सरकार किसी एक नाम पर मुहर लगाकर आदेश जारी करेगी। आईपीएस के वर्ष-92 बैच के अफसर अरुण देव गौतम डीजीपी के प्रभार पर हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि गौतम का ही नियुक्ति आदेश जारी होगा।

आदेश जारी होने में विलंब क्यों हो रहा है, इसको लेकर कई तरह की चर्चा है। एक चर्चा यह भी है कि 15 जुलाई को कैट में डीजीपी पद पर पदोन्नति के खिलाफ सीनियर आईपीएस पवन देव की याचिका पर सुनवाई होगी। पवन देव ने डीजीपी पद पर डीपीसी को लेकर याचिका दायर की है। हालांकि इस प्रकरण में कैट ने स्थगन नहीं दिया। पवन देव भी 92 बैच के अफसर हैं, और सीनियरिटी में नंबर-वन पर हैं। जानकारों का मानना है कि कैट की सुनवाई पर सरकार की नजर है, और कुछ अप्रत्याशित नहीं होता है, तो विधानसभा सत्र निपटने के बाद डीजीपी की नियुक्ति आदेश जारी हो सकता है।

प्रशासन में तेजी के लिए निजी कंसल्टेंसी

सरकारी काम में लालफीताशाही रोकने केंद्र और राज्य सरकारों ने कई प्रयास किए। कई पुराने औचित्यहीन नियम उप नियमों को खत्म भी किया। और केंद्र राज्य स्तर पर प्रशासनिक सुधार आयोग भी बनाए। छत्तीसगढ़ में भी सबसे पहले प्रथम मुख्य सचिव  स्व.अरुण कुमार और फिर पूर्व सीएस एसके मिश्रा आयोग बनाया गया। उसके सुझाव भी आए। इनमें  एक था विभागों में कुछ हाईटेक प्रोफेशनल को आउटसोर्स कर संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्त किया जाए। नियुक्तियां हुई भी। अब इनकी उपादेयता को लेकर दावे प्रतिदावे हो रहें हैं। लेकिन कामकाजी सुझाव लागू करने को लेकर वही किंतु परंतु का लोचा रहा है। इन सुझावों को ताक पर रख केंद्र सरकार ने एक बार फिर नए सिरे से सुझाव जुटाने की पहल की है। इस बार ये सुझाव किसी सरकारी आयोग से नहीं निजी कंसल्टेंसी फर्म से लेने की तैयारी है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने नौकरशाही में सुधार के लिए एक निजी सलाहकार को नियुक्त किया है। सलाहकार नौकरशाही सुधारों के लिए एक रोडमैप की सिफारिश कर सकता है। केंद्र ने सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने और आवश्यक बदलावों को लागू करने के लिए इस बाहरी विशेषज्ञता की मांग की है। यह कंसल्टेंट नौकरशाही के मौजूदा सेटअप का विश्लेषण करने, उनमें आ रही बाधाओं की पहचान करने और लागू किए जा सकने वाले समाधानों के सुझाव करने की उम्मीद है। डीओपीटी इसे डिजिटल प्रशासन को अपनाने और दक्षता को बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया कदम बता रहा है।

सत्ता की नजाकत को यूं समझाया

मैनपाट के चिंतन शिविर में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की सांसदों-विधायकों के लिए एक नसीहत थी। कहा- पद अस्थिर है। यदि ठेकेदारों और रिश्वत से समझौता कर लिया गया तो दोबारा चुनकर आने की बात न सोचें। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की रेस में शामिल बताया जा रहा है। जब वे सांसदों विधायकों के साथ मैनपाट भ्रमण पर निकले तो अनोखी जगह उल्टा पानी गए। जब उन्होंने कागज की नाव को पानी में डाला तो ऐसा लगा मानो नड्डा के भाषण के इस बात को वे प्रयोग करके समझा रहे हैं। नाव ढलान से चढ़ाई की तरफ गई जो अपनी तासीर के मुताबिक थोड़ी दूर जाकर पलट गई।  कागज की नाव एक मुहावरा है जो किसी भी अस्थिर, अस्थायी या कमजोर चीज के लिए इस्तेमाल होता है।


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