राजपथ - जनपथ
बिना भूतपूर्व काफी हैं
रायपुर पश्चिम के विधायक, और पूर्व मंत्री राजेश मूणत अब पूर्व मंत्री कहे जाने पर खिसियाने लगे। सोमवार को रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव प्रचार की तैयारी बैठक में मूणत ने कह दिया, कि उन्हें पूर्व मंत्री नहीं बल्कि सिर्फ विधायक ही कहा जाए।
मूणत ने आगे साफ कर दिया कि उन्हें कोई समस्या नहीं है, बल्कि उनका सारा काम सांय-सांय हो रहा है। मूणत के भाषण पर कार्यकर्ताओं ने तालियां भी बजाई। भाजपा विधायक दल में मंत्री पद के दावेदार काफी हैं। ऐसे में ज्यादा उम्मीद पालना भी ठीक नहीं है। वैसे भी सीनियर विधायकों का अपना महत्व रहता ही हैै। मूणत की प्रतिष्ठा का मुद्दा, स्कायवॉक तो सरकार ने आगे बढ़ाने का टेंडर निकाल ही दिया है।
कांग्रेस की प्रयोगशाला
सांसद बृजमोहन अग्रवाल अब तक 8 बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। बृजमोहन संभवत: अकेले ऐसे प्रत्याशी रहे हैं जिनके खिलाफ हर बार कांग्रेस ने नया प्रत्याशी दिया है। इस बार भी सुनील सोनी के मुकाबले कांग्रेस नया प्रत्याशी उतार रही है।
बृजमोहन ने सबसे पहला चुनाव स्वरूपचंद जैन के खिलाफ लड़ा था, और 3 हजार से भी कम वोटों से जीते थे। इसके बाद स्वरूपचंद जैन ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया, और फिर राजकमल सिंघानिया उतरे। सिंघानिया के बाद पारस चोपड़ा को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी पराजित प्रत्याशी दोबारा टिकट की मांग नहीं की, और क्षेत्र से कट गए।
राज्य बनने के बाद पूर्व उप महापौर गजराज पगारिया चुनाव मैदान में उतरे। पगारिया के बाद योगेश तिवारी, और फिर डॉ. किरणमयी नायक को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। इसके बाद वर्ष-2018 में कन्हैया अग्रवाल को पार्टी ने टिकट दी। कांग्रेस के पक्ष में हवा थी फिर भी कन्हैया चुनाव हार गए। कन्हैया तकरीबन 15 हजार वोटों से चुनाव हारे। इसके बाद 2023 में महंत रामसुंदर दास को टिकट मिली। उन्हें सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा।
दिलचस्प बात यह है कि कन्हैया को छोडक़र बृजमोहन को हराने वाला कोई भी उम्मीदवार क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहा। यही वजह है कि बृजमोहन अग्रवाल के लिए एक तरह से खुला मैदान ही रहा। अब कन्हैया सक्रिय थे, लेकिन पार्टी ने उनका नाम आगे नहीं बढ़ाया। ये अलग बात है कि बृजमोहन अग्रवाल चुनाव मैदान में नहीं है। देखना है आगे क्या होता है।
ओहदा पहले पदोन्नति बाद में
राज्य पुलिस सेवा के वरिष्ठतम अफसरों को आईपीएस अवार्ड होने में अभी कुछ लंबा इंतजार करना होगा। कम से कम दो, तीन वर्ष । क्योंकि पूर्व में प्रमोटियों के रिटायरमेंट में इतना समय शेष है। ऐसे में इन वरिष्ठतम अफसरों ने यह युक्ति निकाली, और सरकार ने भी मंजूरी दे दी। कोयला घोटाले की वजह से वैसे बीते तीन चार वर्ष में आईएस अवार्ड के दावेदार राज्य प्रशासनिक सेवा वाले भी ऐसे ही पिछड़ गए हैं। अब राज्य सेवाओं के दोनों कैडर बराबर खड़े हो गए हैं।
रापुसे अफसरों की बात करें तो 1998-99 बैच के प्रफुल्ल ठाकुर और विजय पांडे 2022,23 के सलेक्शन लिस्ट में अब आए हैं। और इनके बाद देवव्रत सिरमौर,श्री हरीश, राजश्री मिश्रा,श्वेता सिन्हा की बारी है। उनके बाद विनय बैस से सुजीत कुमार के बैच की। इनके आईपीएस अवार्ड के लिए कम से कम तीन वर्ष लगेंगे। हालांकि ये सभी आईपीएस के समकक्ष कि वेतनमान पा ही रहे हैं। केवल एसपी के अंडर से निकलना चाह रहे थे। सो पूरी योजना बनाकर सरकार से चर्चा की गई और मिल गई हरी झंडी। ये सभी अब एसपी स्तर का पद सम्हालेंगे, और अवार्ड का इंतजार करेंगे। वैसे ऐसी अघोषित पदोन्नति की शुरुआत रमन सरकार ने की थी और फिर बघेल सरकार ने आगे बढ़ाया। इस आदेश के बहाने इनमें से कुछ राजधानी लौटने में सफल रहे। यह कहते हुए कि पिछली सरकार में प्रताडि़त रहे हैं।
बिना खर्च प्रमोशन
जब पदोन्नति की बात आई है तो अन्य विभागों पर भी बात कर लें। जहां सबसे बड़ा पेंच आरक्षण को बताया जाता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट ने 2019 में ही कह दिया था कि हमारे अगले अंतिम आदेश तक अंतरिम पदोन्नति दी जा सकती है। इसके बाद सभी विभागों में भृत्य से लेकर डिप्टी कलेक्टर स्तर के ग्रेड-1 के पदों पर पदोन्नति दी गई, और दी जा रही है। केवल दोनों शिक्षा विभागों को छोडक़र। स्कूल शिक्षा में 2011 के बाद से लेक्चरर से प्रिंसिपल, उप संचालक से संयुक्त संचालक की पदोन्नति लटकी पड़ी है। तो उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक,और प्राध्यापक से प्राचार्य। स्कूलों में 3734 तो 300 से अधिक कॉलेज प्राचार्य विहीन।
फील्ड में इस संवर्ग के लोगों का कहना है कि पहले से इस ग्रेड में पदोन्नत और मंत्रालय, संचालनालय में कार्यरत उनके अपने ही लोग, निचले क्रम के लोगों की पदोन्नत होने देना नहीं चाहते। जबकि दोनों ही विभागों पर एक रूपए का व्यय भार नहीं आना है। सभी समकक्ष वेतन पा ही रहे हैं। इसलिए वे पहले आरक्षण का पेंच लाते रहे और अब क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट की फांस। बस, वरिष्ठता को प्राप्त ये शिक्षक, प्रोफेसर केवल प्राचार्य के रूप में आत्म संतुष्टि के लिए पदोन्नति चाहते हैं। सरकार चाहे तो तदर्थ पदोन्नति दे दे या वरिष्ठता के आधार पर उनके नाम के आगे प्राचार्य का पदांकन कर दे। इस विकल्प के साथ स्कूलों के व्याख्याता, जल्द सरकार से मिलने जाएंगे।
(rajpathjanpath@gmail.com)