राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : विधायक या छाया विधायक
18-Oct-2024 3:34 PM
राजपथ-जनपथ : विधायक या छाया विधायक

विधायक या छाया विधायक

उपचुनाव की घोषणा के दिन सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मीडिया से कहा इस बार दक्षिण के लोगों को दो विधायक मिलेंगे। पत्रकार चौंक गए, कि एक सीट पर दो विधायक कैसे। उन्होंने कहा एक जो नया निर्वाचित होगा और दूसरी मैं। मैं आठ बार से विधायक रहा हूं मैं भी विधायक की ही तरह क्षेत्र के विकास के लिए काम करूंगा। अब इस बयान में राजनीति देखने वाले विपक्ष, और भाजपा के ही लोग कई तरह की बातें कर रहे। वो कह रहे नए विधायक और निगम, आरडीए, जिला या पुलिस प्रशासन को उनके कहे अनुसार ही काम करना होगा। नए विधायक को हर काम से पहले उनसे पूछना पड़ेगा। 

नई योजनाओं के प्रस्ताव उनसे बनवाने और अनुमति लेनी होगी। यानी वो छाया विधायक (निर्वाचित) की तरह होगा। बस विधायक कहलाएगा। भाजपा में अब इस मनस्थिति के नामों पर चर्चा हुई तो सबसे ऊपर नाम सुनील सोनी, मनोज शुक्ला ही निर्विवादित नाम रहे। ये दोनों उनसे अलग जा ही नहीं सकते। बाकी संजय श्रीवास्तव, मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, केदार गुप्ता, नंदन जैन इनके अपने-अपने इश्यू, और खेमे हैं। जब कांग्रेस के नाम गिने गए तो सभी दावेदार एजाज ढेबर, प्रमोद दुबे, कन्हैया अग्रवाल, बृजमोहन के अनुकूल नाम रहे। अब देखना होगा कि लॉटरी किसकी लगती है।

पुलिस, परिवहन को नहीं दिख रहे ?

राजधानी में 14 अक्टूबर से बिना रेजिस्ट्रेशन के 65 से अधिक यह गाडिय़ां दौड़ रहीं हैं। बिना नंबर की स्कूटी पर चालान काटने में न चूकने वाली ट्रैफिक पुलिस के एक हजार जवान और अधिकारी को चिढ़ाते हुए फर्राटे भर रही हैैं। ये सभी गाडिय़ां वन विभाग ने पिछले सप्ताह ही खरीदे और राष्ट्रीय खेल में आए खिलाडिय़ों-कोच मैनेजर को अलॉट किया है। इन गाडिय़ों को बिना रजिस्ट्रेशन नंबर के शो रूम से बाहर कैसे निकलने दिया परिवहन विभाग ने?

विभाग ने तो परचेस होते ही नंबर प्लेट लगाकर डिलीवरी की अधिसूचित किया हुआ है। इस नियम पर किसी निजी गाड़ी को शो रूम के बाहर ही पकडऩे को मुस्तैद पुलिस के हाथ क्यों बंधे हैं? हम भी कहां आदर्श परिस्थिति की बात कर रहे। नियम होते ही हैं तोडऩे के लिए। फिर इन्हें बनाने वालों का काम ही है तोडऩा। बहरहाल इन खेलों में कुल 25 सौ फोर व्हीलर का उपयोग हो रहा है। इनमें पांच सौ से अधिक टैक्सियां हैं। इन्हें एक दिन में 40-40 लीटर डीजल दिया जा रहा है।  और विभागीय नई गाडिय़ों को सीसीएफ ऑफिस से 50-50 लीटर पर्ची जारी हो रही। वह भी मोवा के एक ही पंप से भरवाना होगा। इसका ड्रायवर कोई हिसाब नहीं दे रहे हैं। हालांकि उन्हें कोटा से लेकर डूंडा, नवा रायपुर तक के 23 खेल परिसरों का चक्कर लगाना है। जलता ही होगा इतना डीजल।

कुलपति की दौड़ में 

प्रदेश के चार राजकीय विश्वविद्यालयों में नए कुलपतियों की नियुक्ति होनी है। इच्छुक दावेदार शिक्षाविदों से आवेदन लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। कुलाधिपति कार्यालय ने अपनी वेबसाइट को क्लोज कर दिया है। चारों विश्वविद्यालयों के लिए 127 से अधिक आवेदन प्राप्त होने की खबर हैं। कुलाधिपति के गुवाहाटी से लौटने के बाद राजभवन जल्द ही चयन समिति का गठन करने जा रहा है। यह समिति इन सभी का इंटरव्यू कर अंतिम तीन तीन नामों का पैनल कुलाधिपति को देगा। वैसे यह प्रक्रिया दीपावली बाद ही गति पकड़ेगी। 

आवेदकों में रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस अफसर भी शामिल हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में प्रभारी कुलपति को छोड़ किसी भी एक्स ऑफिशियो की नियुक्ति नहीं हुई है। वैसे इन विश्वविद्यालयों की प्रशासनिक गतिविधियों पर नजर डाले तो एक बार यह प्रयोग किया जा सकता है। वैसे पिछली सरकार में उशिवि ने कुलसचिव पद पर आईएएस अफसरों की नियुक्ति का प्रस्ताव सरकार को भेजा था। जो अब तक अनिर्णीत है। 

बहरहाल कुलपति के आवेदकों में एक विधायक की पत्नी के साथ साथ एक कॉलेज की महिला प्राचार्या भी दौड़ धूप कर रहीं हैं। जो पूर्व में उशिवि में संयुक्त संचालक रहीं हैं। और रिटायरमेंट के करीब यह मैडम अगले पांच वर्ष काम करना चाहती है। मैडम की दौड़ धूप की चर्चा कॉलेज में आम हैं। और मातहत प्रोफेसर ही मैडम की शैक्षणिक, प्रशासनिक दक्षता पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे है? ये दिन के छह से आठ घंटे कॉलेज में गुजारते हैं। ओबीसी वर्ग से आने वाली मैडम की नजर दुर्ग विश्वविद्यालय पर है। जहां पहले भी एक महिला प्रोफेसर कुलपति रह चुकीं हैं। अब देखना यह है कि विधायक पत्नी सफल होती है या मैडम।

दक्षिणामुखी ब्राह्मण 

राजधानी के ब्राह्मण इन दिनों दक्षिणामुखी हो गए हैं। पहली बार भाजपा-कांग्रेस के ब्राह्मण नेता एकजुट हो गए हैं। इन्होंने पहले सर्व ब्राह्मण समाज की बैठक की और फिर राजीव भवन, ठाकरे परिसर जाकर अपनी बात रख आए। अबकी बार टिकट नहीं तो समर्थन नहीं। उनकी बात कांग्रेस में पूरी होती दिख रही है। क्योंकि वहां कोई दूसरे नेता लडऩे आगे नहीं आए हैं। भाजपा में तो तय है या तो भैया की पसंद या संघ-संगठन की। और इसमें समाज करती दिख नहीं रहा। फिर भी राजीव भवन के खुले सत्र के बाद सैकड़ों ब्राह्मण नेता ठाकरे परिसर पहुंचे। इनमें दावेदार कहला रहे मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे,, सुभाष तिवारी, अंजय शुक्ला, विजय शंकर मिश्रा समेत बंगाली तेलुगू, मैथिल, राजस्थानी ब्राह्मण समाज के 500 लोग शामिल रहे। लेकिन कांग्रेस के एक भी दावेदार नहीं थे।

जय-जय परशुराम के जयघोष के साथ गए थे। और लौटती बारात की तरह बिना जय-जयकार के निकले। संगठन महामंत्री ने सारे ब्राह्मणो को प्रणाम किया और आने का सबब तो वो जानते ही थे। फिर भी कुछ नेताओं ने आने की भूमिका बांधी। उन्होंने कहा कि दक्षिण में 34 हजार ब्राह्मण वोटर हैं। टिकिट तो देना होगा। भीड़ में किसी ने कह दिया पहली बार ठाकरे परिसर आए हैं क्योंकि हम अधिकांश कांग्रेसी हैं। उनकी मन स्थिति को जान महामंत्री ने पूरी बात सुनी। मौका भी था दस्तूर भी। चाय बिस्किट का दौर भी। 

महामंत्री ने भगवान परशुराम और ब्राह्मणों की महत्ता बताते हुए कहा पद-गद्दी सब कुछ ब्राह्मणों के लिए बेमानी है। इस पर उन्होंने एक कहानी सुनाई- भगवान विष्णु ने जब श्री परशुराम को इंद्र की गद्दी दे दी थी तो ब्राह्मण देवता ने हमें नहीं चाहिए कहकर ठुकरा दिया। उनमें कुर्सी की लालसा कभी नहीं रही। और आप लोग तो उनके वंशज हैं। हमारे जैसे लोग तो आपके चरणों में प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं। आप पूजनीय हैं, प्रणाम करता हूं। आपका मार्गदर्शन ही काफी है। आप लोग कहां गद्दी के चक्कर में पड़ गए। उन्होंने यह भी बताया कि फरसा उठाने के कारण परशुराम जी से तत्समय के ब्राह्मण उनसे दूर रहने लगे थे। इसके बाद तो सभी समझ गए कि महामंत्री क्या कहना चाह रहे हैं। और  विदाई ले ली। लौटते समय नारे लगाना भी जरूरी नहीं समझा।

विधायक पुत्र की काउंटर रिपोर्ट

साजा विधायक ईश्वर साहू के बेटे कृष्णा साहू के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत पुलिस ने अपराध दर्ज कर लिया था। इसके बाद अब शिकायतकर्ता मनीष मंडावी के खिलाफ भी कृष्णा साहू की शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज कर ली गई है। मनीष मंडावी ने जो एफआईआर लिखाई है उसमें विधायक पुत्र पर  जातिसूचक गालियां देने का आरोप है, वहीं कृष्णा साहू की एफआईआर में कहा गया है कि मंडावी और उसके साथियों ने मारपीट की और उसके 10 हजार रुपये लूट लिए। दोनों की शिकायतों की जांच अभी बाकी है, पर आम लोगों के मामले में पुलिस इस तरह की काउंटर रिपोर्ट दर्ज नहीं करती। मगर, मामला सत्तारूढ़ दल के विधायक का है। सुनने में यह भी आया है कि मंडावी की एफआईआर के बाद सुलह-समझौते की कोशिश की गई थी लेकिन बात नहीं बनी। उसके बाद दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई है। यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या लूट जैसी वारदात होने के बावजूद पुलिस तक पहुंचने में विधायक पुत्र को 48 घंटे लग गए? आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने पुलिस पर दबाव बनाया था तब मंडावी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, अब कार्रवाई नहीं होने पर वे आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं। फिलहाल मुद्दा जल्द शांत होते नहीं दिख रहा है।  

प्रतिमा की पड़ताल

एक बिल्डिंग के मंडप पर कुछ लंगूरों की प्रतिमाएं बना दी गई हैं। कुछ असली लंगूर उछलते कूदते हुए वहां पहुंचे। शांत और स्थिर अवस्था में लंगूरों को देखकर वे काफी देर तक निहारते हैं। चारों तरफ चक्कर लगाते हैं। छूकर देखते हैं फिर गले लगाते हैं। फिर भी जब वे नहीं हिलते तो उठाकर अपने साथ ले जाने की कोशिश करते हैं। प्रतिमा को हिला तो देते हैं, मगर उखाड़ नहीं पाते। बंदर हमेशा झुंड में रहते हैं और वे अपनी बिरादरी में एक दूसरे का खूब ख्याल भी रखते हैं। कोई दुर्घटनाग्रस्त हो जाए या बीमार पड़ जाए तो उसकी देखभाल भी करते हैं। शायद असली लंगूर को प्रतिमा के नहीं हिलने-डुलने की चिंता हो रही है। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हो रहा है।

(rajpathjanpath@gmail.com)


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