राजपथ - जनपथ
रायपुर दक्षिण, एक अनार-सौ बीमार
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव की घोषणा किसी भी दिन हो सकती है। दोनों ही मुख्य दल भाजपा, और कांग्रेस के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन पर मंत्रणा चल रही है। कांग्रेस में कुछ बड़े नेता किसी नए चेहरे को आगे लाने की वकालत कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा में नए समीकरण बनते दिख रहे हैं।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल रायपुर दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। ऐसे में मोटे तौर पर माना जा रहा है कि बृजमोहन अग्रवाल की पसंद को ही महत्व दिया जाएगा। मगर हरियाणा चुनाव नतीजे के बाद भाजपा के भीतर अलग तरह की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि हाईकमान महिला, अथवा किसी नए चेहरे पर विचार कर सकती है। इसमें प्रदेश भाजपा प्रभारी नितिन नबीन की राय अहम होगी।
खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय गैर राजनीतिक लोगों से भी सलाह मशविरा कर रहे हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि पार्टी उप चुनाव के प्रत्याशी को लेकर चौंका सकती है। देखना है आगे क्या हो सकता है।
वन विभाग के फण्ड के किस्से
मंगलवार से राजधानी में वन विभाग के राष्ट्रीय खेल होने वाले हैं। चार दिनों की इस स्पर्धा में देश भर के वन विभाग के बड़े-बड़े खिलाड़ी भाग लेने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में यह खेल 2004, 2018, के बाद इस बार तीसरी बार हो रहे हैं। आयोजन की तैयारियां चरम पर हैं। एक बीट गार्ड से पीसीसीएफ तक काम पर लगाए हैं। आने वाले खिलाडिय़ों को रत्ती भर की तकलीफ न हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है । शहर के सभी होटल, टैक्सी बुक हैं। कम न पड़े इसलिए 65 नए महिंद्रा वाहन खरीदे गए हैं। 35 और आने हैं। आयोजन के चारों दिन खिलाडिय़ों को रिलेक्स महसूस कराने रात सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे। कई निजी गायक, डांस ग्रुप बुक किए गए हैं। इनमें वो वाले हैं या नहीं अभी पुष्टि नहीं हुई है। हर पदक विजेता को पदकों के साथ महंगे गिफ्ट भी दिए जाएंगे। उद्घाटन के लिए पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता मनु भाकर आमंत्रित हैं। और सेलिब्रिटी आने की हामी कैसे भरते हैं सभी जानते हैं।
ये बात हुई आयोजन की। अब बात छत्तीसगढ़ की इन खेलों में प्रदर्शन की। वैसे छत्तीसगढ़ की टीम पूर्व में अन्य राज्यों में हुए इन खेलों में ओवरऑल चैंपियन रही है। चूंकि इस बार मेजबान भी हैं तो परफार्मेंस में कमी न रहे, इसलिए टीम मजबूत बनाने के नाम पर आनन फानन में खेल कोटे से पिछले हफ्ते 50 पदों पर वन रक्षकों की भर्ती की गई। और दशकों से काम कर रहे दैवेभो नाराज किए गए हैं । कहीं 16-20 तक ये लोग कोई खेल न कर दे। आयोजन खर्च को लेकर भी चर्चा हो रही है। इस पर करीब 50 करोड़ व्यय होने की जानकारी दी गई है। इसमें वनीकरण के कैम्पा फंड, और अन्य विभागीय मद अंतरित किया जा रहा है । बाकी टिंबर, तेंदूपत्ता के ठेकेदार, वनोपज के सप्लायर, और विभाग के भवन, सडक़ ठेकेदारों की हिस्सेदारी रहेगी। वह भी भविष्य के टेंडर की बिनाह पर। कुल मिलाकर इस आयोजन को लेकर काफी चर्चा हो रही है।
वन विभाग का किस्सा नंबर दो
कल शाम वन विभाग ने बैक टू बैक दो फैसले लिए। पहला दैवेभो कर्मियों को श्रम सम्मान राशि जारी करने और दूसरा राजीव स्मृति वन में मार्निंग वॉक पर हर रोज 20 रूपए शुल्क वसूली स्थगित करने का फैसला लिया। ये फैसले यूं ही नहीं लिए गए। क्योंकि अफसरों के हर फैसले स्वार्थ परक होते हैं यह कहना है विभाग के ही कर्मचारियों का। वर्ना जो आदेश आठ महीने में नहीं हो रहे थे वो आधे घंटे में धड़ाधड़ हो गए।
श्रम सम्मान राशि लेने दैवेभो कर्मचारियों ने छ माह से मंत्री-नेताओं से गुहार, धरना प्रदर्शन घेराव और अंत में 48 दिनों की बे मुद्दत हड़ताल भी किया। वह भी मोदी की गारंटी में से एक था। लेकिन कल 12 करोड़ एक झटके में जारी हो गए। वह इसलिए कि 16 अक्टूबर से राष्ट्रीय वन खेल होने जा रहे हैं। और इस पूरे आयोजन को सफल करने इन्हीं कर्मियों से काम जो लेना है। क्योंकि वन बल प्रमुख, बेमुद्दत हड़ताल का असर देख चुके थे। और यह भी डर था कि कहीं ये कर्मी इन्ही खेलों के समय कोई अनहोनी न कर दे।
राजीव स्मृति वन की एंट्री फीस की वसूली स्थगित करना भी उसी भय का नतीजा बताया जा रहा है। बुधवार रात वसूली आदेश वायरल होते ही राजधानी के हर वर्ग में बवाल मच गया। और आज सुबह तो कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे को हथिया लिया। पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने तो आंदोलन करने की चेतावनी दे दी। कहीं ये विरोध खेलों के उद्घाटन दिवस पर न हो यह जान, समझकर साहब ने वसूली स्थगित करने का आदेश दिया। वैसे बता दें कि वसूली स्थगित हुई है रद्द नहीं। यानी खेलों के बाद किसी भी दिन लागू होने के आसार बने हुए हैं।
डीएमएफ रुकने की फिक्र नहीं
छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संपदा से संपन्न राज्य में जिला खनिज न्यास निधि (डीएमएफ) का महत्वपूर्ण स्थान है। कोयला, बॉक्साइट और अन्य खनिजों से प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और विकास के लिए इस निधि का उपयोग किया जाता है। हर साल 2300-2400 करोड़ रुपये की बड़ी राशि के सही इस्तेमाल से इन क्षेत्रों में बड़ा बदलाव लाया जा सकता था, लेकिन यह फंड भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा जरिया बन गया है।
पहले डीएमएफ ट्रस्ट के अध्यक्ष जिले के प्रभारी मंत्री होते थे। प्रदेश के कांग्रेस शासन के दौरान केंद्र सरकार ने यह अधिकार छीनकर कलेक्टरों को सौंप दिया। अब मंत्री और विधायक केवल सिफारिश करने तक सीमित रह गए हैं। फंड का नियंत्रण आईएएस अधिकारियों के हाथ में आने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि कमीशनखोरी एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गई। ठेकेदार और सप्लायर पहले की तरह अपने काम में लगे रहे।
कोरबा में तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने डीएमएफ फंड में करोड़ों की गड़बड़ी का आरोप लगाया था, जिसके सबूत भी प्रस्तुत किए। अब वहां की तत्कालीन कलेक्टर दूसरे आरोपों में जेल में हैं। हाल ही में दंतेवाड़ा में भी इसी तरह के घोटाले की परतें खुल रही हैं। सबसे बड़ा फंड इसी जिले का होता है। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने जिले के सभी विभागों से पिछले पांच सालों में डीएमएफ फंड से किए गए कार्यों की जानकारी मांगी है। साथ ही, यह भी पूछा है कि किस अधिकारी या मंत्री ने फंड की स्वीकृति दी। एसीबी अब इन कार्यों का भौतिक सत्यापन भी करेगी।
कुछ महीने पहले केंद्र ने डीएमएफ के नियमों में फिर बदलाव किया। अब डीएमएफ की राशि दूसरे जिलों में ट्रांसफर नहीं की जा सकेगी। फंड ट्रांसफर के जरिये सबको बराबरी से उपकृत किया जाता था। हालांकि नाम यह दिया गया कि प्रदेश का इससे संतुलित विकास होगा। अब इस पर भी रोक लगा दी गई है।
चिंताजनक बात यह है कि इस वित्तीय वर्ष में अधिकांश जिलों में डीएमएफ फंड की राशि अभी तक नहीं आई है। जनप्रतिनिधि इस पर कोई आवाज नहीं उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि फंड के उपयोग का अधिकार उनके पास नहीं है। दूसरी ओर, कलेक्टर भी फंड रिलीज की मांग करने में संकोच कर रहे हैं। शायद उन्हें लगता है कि फंड मांगने भर से उन्हें संदेह की नजर से देखा जाएगा।
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