राजपथ - जनपथ

अच्छी साख से बड़ी उम्मीदें
हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। यह याचिका सीनियर पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल, और अन्य ने दायर की है। दरअसल, पिछली सरकार ने चार पीसीसीएफ की सीनियरटी को नजरअंदाज कर जूनियर पीसीसीएफ वी श्रीनिवास राव को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बना दिया था।
राव सालभर से हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बने हुए हैं। सरकार बदलने के बाद भी उनकी हैसियत में कमी नहीं आई है। सीनियर अफसरों ने पहले कैट में उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी। मगर कैट से श्रीनिवास राव के पक्ष में फैसला दिया। सुनवाई के दौरान चर्चा में यह बात आई है कि कैट के दो सदस्य, जिनमें एक प्रशासनिक सदस्य होते हैं, उन्होंने राव के पक्ष में फैसला दिया है।
खैर, हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से जवाब दाखिल किया जाना है। वन विभाग की एसीएस रिचा शर्मा के आने के बाद विभाग का माहौल कुछ बदला है। रिचा की साख बहुत अच्छी है, और सख्त अफसर मानी जाती है। सीनियर आईएफएस को उनसे काफी उम्मीदें हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एक बार फिर चर्चा
खबर है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था बेहतर करने के लिए सरकार उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र की तर्ज पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार कर रही है। चर्चा है कि रायपुर एडीजी स्तर के अफसर को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है। एक चर्चा यह भी है कि राज्य में सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति की जा सकती है।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली, और सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति के मसले पर पार्टी फोरम में चर्चा हुई है। इससे पहले भूपेश सरकार ने भी राज्य में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार किया था। तब गृह और पुलिस विभाग के अफसरों की एक टीम कमिश्नर प्रणाली का अध्ययन करने पुणे भी गई थी। महाराष्ट्र की पुलिस कमिश्नर प्रणाली व्यवस्था सबसे पुरानी है।
बताया गया कि भूपेश सरकार ने आगे इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। अब रायपुर महानगर का रूप ले रहा है, और अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सबको देखते पुलिस प्रशासन में नियंत्रण की दृष्टि से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है। यह चर्चा दशकों से चली आ रही है, और किसी किनारे नहीं पहुँची।
यही नहीं, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर का पद बनाने पर विचार चल रहा है। पुलिस कमिश्नर एडीजी/आईजी स्तर के अफसर होंगे, और ज्वाइंट और असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर सीनियर आईपीएस अफसरों को पदस्थ किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि फिलहाल रायपुर को ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लायक माना जा रहा है। बाकी शहरों में इसकी जरूरत नहीं है। मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो चुकी है। ऐसे में रायपुर में भी पुलिस कमिश्नर को लेकर चर्चा चल रही है।
दूसरी तरफ, राज्य में सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति पहले भी हो चुकी है। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में पंजाब के पूर्व डीजीपी केपीएस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाकर यहां लाया गया था। गिल यहां के लिए उपयोगी साबित नहीं हुए। ऐसे में सुरक्षा सलाहकार की उपयोगिता को लेकर भी चर्चा चल रही है। जानकारों का कहना है कि प्रदेश की नक्सल समस्या की केन्द्र सरकार सीधे मॉनिटरिंग कर रही है। बाकी मामलों पर भी नजर है। ऐसे में गृह और पुलिस विभाग में क्या कुछ बदलाव होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
अपने सांसद की भी नहीं सुनी रेल मंत्री ने
कोविड-19 के बाद से यात्री ट्रेनों और यात्रियों के साथ शुरू हुआ मुसीबतों का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। एक साथ दर्जनों ट्रेनों को अचानक रद्द करने की घोषणा कर दी है, जिससे महीनों पहले योजना बना चुके लोगों को या तो अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ती है, या फिर फ्लाइट या टैक्सी का महंगा विकल्प चुनना पड़ता है। छत्तीसगढ़ में अधिकांश सांसद भाजपा से हैं और केंद्र में सरकार भी लगातार उसी की है, इसके बावजूद व्यवस्था बेहाल है। इसके पहले जब भी भाजपा सांसदों से ट्रेनों के रद्द होने, ट्रेनों के अत्यधिक विलंब होने और छोटे स्टेशनों पर स्टापेज खत्म करने को लेकर पूछा जाता तो वे बताते थे कि यह जायज है। नई रेल लाइनें बन रही हैं, बिजली संयंत्रों को कोयला पहुंचाना पड़ रहा है। पहली बार लोकसभा पहुंचे सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने जरूर इस मुद्दे पर मुखर होकर बात रखी। उन्होंने सदन में 200 से अधिक ट्रेनों के रद्द होने और विलंब से चलने के मुद्दे पर रेल मंत्री को घेरा। मगर, मंत्री ने वही जवाब दोहराया कि नई रेल लाइनों का काम तेजी से चल रहा है इसलिये यह समस्या हो रही है। एक साल में व्यवस्था ठीक हो जाएगी। कम से कम ट्रेन रद्द हों, इसकी कोशिश की जा रही है। यही जवाब रेल मंत्री ने बजट में रेलवे के लिए की गई घोषणाओं का ब्यौरा देते समय दिया था। उन्होंने कैंसिलेशन कम रखने की बात जरूर कही। पर ऐसा लगता है कि रेलवे के अफसरों को उन्होंने कोई निर्देश नहीं दिया। सदन में हुए सवाल जवाब के एक सप्ताह के भीतर ही बिलासपुर जोन से छूटने या चलने वाली 80 ट्रेनों को रद्द कर दिया या भी उनका मार्ग बदल दिया गया। इस दौरान रक्षाबंधन के चलते यात्रियों को भारी परेशानी हुई। लोगों ने स्टेशन पर घंटों इंतजार किया, जो ट्रेन मिलीं, उनमें खचाखच भीड़ रही। इसका दबाव यात्री बसों पर भी पड़ा। वहां भी यात्री ठूंसकर ले जाए गए। इसके बाद फिर दो ट्रेनों को रद्द करने की अभी दो दिन पहले घोषणा कर दी गई है। इसके अलावा दर्जन भर ट्रेनों का मार्ग बदल दिया गया है। इन ट्रेनों में बीच के स्टेशनों की टिकट बेकार चली जाएगी। लोगों को यह जरूर हैरान करता है कि मरम्मत और नए कार्यों के चलते सिर्फ यात्री ट्रेनों पर ही क्यों गाज गिरती है। माल परिवहन में हर तिमाही-छमाही में रेलवे रिकॉर्ड बना रहा है। कोरबा, जहां से कई राज्यों में कोयला जाता है, और रेलवे की आमदनी का बहुत बड़ा स्त्रोत है, वहां से खबर है कि इन दिनों वहां से रिकॉर्ड कोयले का परिवहन हो रहा है। मगर, ट्रेन वहां से सिर्फ एक चल रही है। यहां की सांसद ज्योत्सना महंत ने कई बार सदन में कोरबा, गेवरा से बंद कर दी गई ट्रेनों को दोबारा चलाने की मांग उठाई है, मगर सबसे ज्यादा आय देने वाले इलाके के मुसाफिरों के प्रति भी रेलवे उदारता नहीं दिखा रही है। फिलहाल तो रेल मंत्री भविष्य में बेहतर सेवा देने का वादा कर रहे हैं, आज कष्ट उठाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
रोहिंग्या क्या रहस्य बने रहेंगे
छत्तीसगढ़ में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी प्रशासनिक अमले की जांच में में साबित नहीं हो रही, लेकिन इस पर सियासत जरूर गरमाता रहा है।
जगदलपुर में पिछले कई महीनों से रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी का मुद्दा फ्रंट पर है। कुछ सामाजिक व हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा किया कि यहां समूह में रोहिंग्या पहुंचे हैं और किराये का मकान लेकर रह रहे हैं। आदिवासी संगठनों ने भी इस मुद्दे को लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया था। मामला अधिक तूल पकड़ता इसके पहले ही पुलिस ने इसकी जांच करा ली। जिन लोगों के बारे में शक किया गया था कि वे रोहिंग्या हैं, यूपी के मुस्लिम पाये गए। आधार कार्ड की जांच और संबंधित थानों में पूछताछ से इसकी पुष्टि हुई। हालांकि जांच के बाद वे अपना ठिकाना छोडक़र कहीं और चले गए हैं।
पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भाजपा के एक पार्षद और अन्य लोगों ने अंबिकापुर की महामाया पहाड़ी में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाये जाने का आरोप लगाया और आंदोलन किया। तत्कालीन मंत्री टीएस सिंहदेव के निर्देश पर जब पुलिस-प्रशासन ने जांच की तो वहां भी एक भी रोहिंग्या मुसलमान नहीं मिला था। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान यह मुद्दा गरमाया रहा। कवर्धा के कांग्रेस प्रत्याशी मो. अकबर किसी रणनीति के तहत चुनाव के दौरान इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे लेकिन परिणाम आने के करीब 15 दिन बाद उन्होंने भाजपा को चुनौती दी कि वे कवर्धा, बस्तर या सरगुजा में एक भी रोहिंग्या मौजूद हो तो उसे सामने लाए। सरगुजा के मामले में भी वहां की कांग्रेस इकाई ने भाजपा पार्षद से इस्तीफा मांगा था।
इसमें कोई शक नहीं कि कोई भी विदेशी अवैध रूप से छत्तीसगढ़ में मौजूद है तो उस पर कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। मगर, प्रशासन की जांच रिपोर्ट से तो यही लग रहा है कि यह सिर्फ सियासी मुद्दा बन गया है। कानून किसी को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर काम धंधा करने की मंजूरी देता है। पर यह हक सिर्फ देश के नागरिकों को है, अवैध रूप से भारत में घुसे विदेशियों को नहीं। बहरहाल, खबर यह भी है कि जगदलपुर में पुलिस जांच पड़ताल के बाद वहां पहुंचे लोग अपना ठिकाना बदलकर किसी दूसरी जगह जा चुके हैं।
स्वतंत्रता दिवस का जोश
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में एक सरकारी स्कूल के बच्चों ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरे उत्साह से देशभक्ति नारे लगाते हुए जुलूस निकाला। कीचड़ भरे रास्ते को मत देखिये। कई स्कूलों तक ऐसे ही पार कर जाना पड़ता है, नदी नाले भी पार करने का जोखिम भी उठाना पड़ता है।
(rajpathjanpath@gmail.com)