राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : संघर्ष और संतोष का इनाम
18-Aug-2024 2:15 PM
राजपथ-जनपथ : संघर्ष और संतोष का इनाम

संघर्ष और संतोष का इनाम

निगम-मंडलों में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे कार्यकर्ताओं के लिए एक अच्छी खबर यह है कि पार्टी ने तय किया है कि पांच साल तक संघर्ष करने वाले और टिकट पाने से चूकने के बावजूद धैर्य और संतोष के साथ पार्टी का काम करने वालों को इनाम मिलेगा। नए चेहरों की संख्या ज्यादा होगी। हालांकि यह तय नहीं है कि रमन सरकार में हर बार मौका पाने वाले नेताओं का क्या होगा। उन्हें लालबत्ती मिलेगी या नहीं।

हाई कोर्ट का खौफ

सरकारी मशीनरी में हाई कोर्ट का जबरदस्त खौफ है। अखबारों के जरिए कहीं भी सिस्टम की कमजोरी उजागर होती है, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा उस पर संज्ञान लेते हैं और शासन से जवाब मांगते हैं, ताकि जो कमियां हैं, उसे दूर कर सकें। छत्तीसगढ़ के चीफ जस्टिस के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद दो दर्जन से ज्यादा मामलों पर संज्ञान ले चुके हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था, मवेशी, घरौंदा की स्थिति जैसे मुद्दों पर तो सरकार को जवाब देते नहीं बना। हाई कोर्ट की सक्रियता का ही असर है कि डर ही सही लेकिन सिस्टम में थोड़ी कसावट तो आएगी।

सही जगह निवेश करना जरूरी

राजनांदगांव जिले की एक महिला कांग्रेस नेत्री ने पार्टी के ही एक पार्षद पर ठगी का आरोप लगाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है। उनका कहना है कि पार्षद ने टिकट दिलाने के नाम पर 30 लाख रुपये ठग लिए और बाद में टिकट का कहीं अता-पता नहीं रहा।

पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट वितरण पर पार्टी के भीतर ही कई सवाल उठे थे। वो वायरल ऑडियो याद ही होगा, जिसमें दावा किया गया था कि एक खास सीट की टिकट पाने के लिए करोड़ों रुपये का लेन-देन हुआ। ये ऑडियो इतना फैला कि बिलासपुर के महापौर को निलंबित तक कर दिया गया, हालांकि बाद में वे फिर से लौट आए। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हुए नेताओं ने भी आरोप लगाए कि कांग्रेस में टिकट बेची जाती हैं। अब इस महिला नेत्री का दावा कितना सही है, ये तो पुलिस जांच में पता चलेगा। लेकिन एक बात तो तय है, इस घटना ने फिर से लोगों के मन में सवाल उठा दिए हैं कि कांग्रेस की टिकट बांटने में खेल या धांधली हुई?

वैसे, भाजपा का अपना तरीका है टिकट बांटने का। वहां आंतरिक सर्वे के आधार पर फैसला लिया जाता है। जबकि कांग्रेस में हर कोई आसानी से आवेदन कर सकता है। पर, फाइनल सूची में नाम लाना इतना आसान नहीं है। और अगर नाम आ भी गया, तो टिकट मिलना पक्का नहीं है। दिल्ली से भेजे गए पदाधिकारी एक कड़ी होते हैं जो किस्मत तय करने में मदद कर सकते हैं। अब अगर इस महिला नेत्री का आरोप सही हो, तो कहा जा सकता है कि उन्होंने गलत जगह निवेश कर दिया। सही जगह करतीं, तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती!

अदम्य जिजीविषा

बस्तर के आदिवासी जब दिन भर जंगलों में कठिन परिश्रम करके वापस लौटते हैं तो उनके चेहरों पर थकान नहीं होती, निश्छल मुस्कान होती है और मन प्रफुल्लित। यह तस्वीर कोलेंग गांव की है, जिसे अविनाश प्रसाद ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है।

(rajpathjanpath@gmail.com)


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