राजपथ - जनपथ

दहशत में सत्ता
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के छह महीने बाद लोकसभा के चुनाव होते हैं, और उसके छह महीने बाद पंचायत और म्युनिसिपलों के। नतीजा यह होता है कि विधानसभा चुनाव के पहले जिसकी सरकार रहती है वे आखिरी छह महीने जनता पर किसी भी तरह की जनकल्याण की कड़ाई बरतना भी बंद कर देते हैं। शहरी अराजकता पर कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि अवैध कब्जा, अवैध निर्माण करने वाले वोटर नाराज न हो जाएं। सरकारें एक किस्म से लकवाग्रस्त सी हो जाती हैं। यह राज्य उन राज्यों में से है जहां ये तीनों चुनाव छह-छह महीने के फासले पर होते हैं, नतीजा यह होता है कि पहले चुनाव के छह महीने पहले से आखिरी चुनाव के छह महीने बाद तक राजनीतिक दल दिल कड़ा नहीं कर पाते, और लोग इस पूरे दौर में मनमानी कर लेते हैं।
दरअसल शहरी जिंदगी में जब कोई व्यक्ति सडक़ किनारे अवैध कब्जा करने से लेकर कोई अवैध निर्माण करने तक, जो भी गलत काम करते हैं, उससे बाकी नियम-पसंद जनता के हक भी कुचले जाते हैं। और अवैध कब्जों, अवैध निर्माणों की नीयत संक्रामक रोग की तरह एक से दूसरे में फैलती है, और लोगों को गलत काम न करने पर अपना हक कुचला जाना महसूस होता है।
डरे-सहमे राजनीतिक दलों को यह समझ नहीं पड़ता कि 90 फीसदी जनता तो इतनी कमजोर रहती हैं कि वह अपने दायरे तक सीमित रहती है, और अपनी चादर से बाहर पैर नहीं निकालती। जो 10 फीसदी जनता अराजकता करती है, उस पर अगर कड़ी कार्रवाई हो, तो उसका सत्तारूढ़ पार्टी को फायदे के सिवाय कुछ नहीं होता। लेकिन ऐसी सहज बुद्धि भी सत्तारूढ़ लोगों से दूर चली जाती है। कड़ाई से किसी शहर को सुधारकर वहां के मतदाताओं के सबसे बड़े तबकों का समर्थन कितना पाया जा सकता है, इसका अंदाज भी सत्तारूढ़ लोगों को नहीं रह जाता। नतीजा यह है कि ट्रैफिक के चालान होने पर भी सत्ता हड़बड़ाकर अपने अफसरों पर लगाम कसने लगती हैं।
जीत यूपी बिहार में, जश्न रायपुर में
है न मजेदार। हालांकि पार्टियां देश भर में जीत का जश्न मनाती ही हैं। लेकिन कोई व्यक्तिगत जीत पर पटाखे फोड़े, मिठाई बांटे तो बात मजेदार ही होगी। बिहार के पूर्णिया से निर्दलीय पप्पू यादव चुनाव जीत गए। वे निर्दलीय लड़े और कांग्रेस ने उनके समर्थन में अपना प्रत्याशी नहीं उतार था। उसके लिए पूर्णिया फ्रेंडली कंटेस्ट की सीट रही। और सफलता भी मिली। दरअसल पप्पू, छत्तीसगढ़ से राज्य सभा सांसद रंजीत रंजन के पति हैं। तो पूर्णिया वाले बहनोई की जीत छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों के लिए खास होनी ही थी। तो सालों ने दीदी को बधाई के साथ साथ आतिशबाजी, मिठाई वितरण के फोटो सेंड करने के साथ वीडियो कॉल भी दिखाए।
इसी तरह दोनों पूर्व प्रभारियों के लिए भी नतीजे उल्लास वाले रहे। सिरसा से कु.सैलजा पौन लाख के अंतर से जीतीं। उनके लिए आरोपों के कांटे बिछाने छत्तीसगढ़ से पूर्व कांग्रेसी भेजे थे भाजपा ने। वो जीत गईं और अब इन्हें मानहानि का केस झेलना पड़ेगा। और बाराबंकी से अंतत: पीएल पुनिया के पुत्र तनुज पुनिया लोकसभा पहुंचने में सफल रहे। तनुज ने हार के तीन स्वाद चखे थे लेकिन डटे रहे। पहले विस उप चुनाव,फिर विस आम चुनाव, फिर 19 लोकसभा और अब जाकर जीत मिली। इनके हर चुनाव में छत्तीसगढ़ के कांग्रेसयों ने तन और धन से काम किया था। पिता प्रभारी जो रहे।
नतीजों से क्या-क्या निकला?
इस लोकसभा चुनाव में कई नतीजे दिलचस्प रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बार करीब एक लाख 52 हजार मतों से जीत मिली। अपने आप में यह जीत छोटी नहीं है, मगर 2019 में जीत का अंतर 4 लाख 79505 वोटों का था और उसके पहले 2014 में 3 लाथ 71 हजार 784 वोटों से जीत मिली थी। दोनों बार उनकी जीत को भाजपा ने रिकॉर्ड बताया था। इस बार मोदी से अधिक अंतर की जीत वाले छत्तीसगढ़ में ही कई प्रत्याशी हैं। इस लोकसभा सीट से मोदी के खिलाफ लडऩे की मंशा रखने वाले 33 लोगों के नामांकन निरस्त कर दिए गए थे। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को छोड़ जो दूसरे उम्मीदवार थे, उनको नोटा से भी कम वोट मिले। नोटा पर 8478 लोगों ने मतदान किया।
राम मंदिर निर्माण के जिस मुद्दे को भाजपा ने पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान भुनाया, वहां की लोकसभा सीट फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद को जीत मिली।
इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना पर्चा वापस ले लिया। इसके बाद भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी के लिए वाक ओवर की स्थिति थी। ऐसा हुआ भी। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 11 लाख 75 हजार 92 मतों से हराया। मगर दिलचस्प यह है कि नोटा को यहां से 2 लाख 18 हजार 674 वोट मिले, जबकि निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा उम्मीदवार को 51हजार 659 मत ही मिले। कांग्रेस ने यहां नोटा के लिए प्रचार किया था जिसकी शिकायत चुनाव आयोग से भी भाजपा ने की थी।
छत्तीसगढ़ की कोरबा सीट और उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट में एक बात समान है। दोनों राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धुआंधार प्रचार किया। पर इन दोनों सीटों पर नहीं गए। कोरबा के करीब उन्होंने जांजगीर में सभा ली थी। दोनों ही जगह पर भाजपा के प्रत्याशियों को पराजय का सामना करना पड़ा।
रायपुर से बृजमोहन अग्रवाल की टिकट फाइनल होते ही यह चर्चा नहीं थी कि वे जीतेंगे या हारेंगे। चर्चा यह थी कि उनकी लीड कितनी होगी। 5 लाख 75 हजार 285 वोटों के अंतर से जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। सन् 2019 में सुनील सोनी ने 3 लाख 48 हजार 238 मतों से जीत हासिल की थी। दिसंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भी अग्रवाल ने जीत का रिकॉर्ड बनाया था। तब वे 67 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीते। कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास को इस पर पराजय ने इतना दुखी किया कि उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की ही घोषणा कर दी। विकास उपाध्याय युवा हैं, निश्चित ही वे इस भारी पराजय को बर्दाश्त कर लेंगे और अपनी राजनीतिक लड़ाई जारी रखेंगे।
बाहरी को नकारा मतदाताओं ने
इस लोकसभा चुनाव में चार उम्मीदवारों पर बाहरी होने का तमगा लगा। भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, सरोज पांडे और देवेंद्र यादव। संयोगवश सभी दुर्ग जिले से ही बाहर जाकर चुनाव लड़े। इनमें से किसी को जीत नहीं मिली। पहले से ही यह चर्चा थी कि अगर कोई एक सीट कांग्रेस के पास आएगी तो वह कोरबा ही होगी। इसके बावजूद कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने दमदारी से चुनाव लड़ा और उसे 48 हजार से अधिक वोट मिले। कांग्रेस की ज्योत्सना महंत ने पिछली बार से अधिक मतों से जीत दर्ज की।
वहां गैंडे बढ़ रहे, यहां घट रहे तेंदुए
असम के अभयारण्यों को गैंडों से अलग पहचान मिलती है। विशाल काया किंतु सौम्य इस वन्य जीव का एक दशक के भीतर इतना अवैध शिकार हुआ कि इनकी संख्या दहाई में आ गई थी। मगर पिछले तीन सालों से वन विभाग ने पुलिस और सशस्त्र बलों की मदद लेकर शिकार को शून्य कर दिया है। हाल ही में गिनती की गई तो उनकी संख्या 2 हजार 885 पाई गई। सबसे अधिक गैंडे करीब 26 सौ काजीरंगा नेशनल पार्क में हैं। छत्तीसगढ़ में टाइगर की संख्या जरूर कम है लेकिन बड़ी संख्या में तेंदुए मौजूद हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्य जीव संस्थान की एक रिपोर्ट पिछले फरवरी महीने में आई थी। इसमें बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में तेंदुओं की संख्या 722 है जबकि 2018 में 852 थी। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि तेंदुओं की संख्या में गिरावट का प्रमुख कारण इनका अवैध शिकार होना है। रिपोर्ट आने के बाद वन विभाग में तेंदुओं को शिकारियों से बचाने के लिए क्या कदम उठाए, इसकी कोई जानकारी नहीं है। शिकार के मामले जरूर लगातार आ रहे हैं। ((rajpathjanpath@gmail.com))