राजपथ - जनपथ

सोशल मीडिया का असर
सोशल मीडिया का चुनाव पर असर के लेकर हाल ही में एक निजी संस्था ने सर्वे कराया है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष-2024 के लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया का काफी असर देखने को मिल सकता है। यह भी आकलन है कि 543 लोकसभा सीटों में से 120 सीट पर सोशल मीडिया विशेष प्रभाव डालेगी।
सर्वे रिपोर्ट में पिछले लोकसभा चुनाव में वाट्सऐप, यू-ट्यूब चैनल, फेसबुक व ट्विटर के यूजर संख्या, और वर्तमान इसकी उपयोगिता व प्रभाव का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला गया है। यह कहा गया कि सोशल मीडिया की पहुंच विशेषकर शहरी इलाकों में हर घर तक हो गई है। गांवों में भी इसकी रफ्तार बढ़ रही है। ऐसे में चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक-प्रिंट से परे सोशल मीडिया के रूप में जंग का एक नया मैदान तैयार हो गया है।
राजनीतिक दलों को भी इसका अंदाजा है। इसीलिए छत्तीसगढ़ में प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस, राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर काफी पहले आईटी सेल का गठन कर चुकी है। अब विधानसभा चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ में दोनों दल सोशल मीडिया प्लेटफार्म को मजबूत बनाने में लगे हैं। भाजपा ने तो 45 लोगों की एक टीम तैयार की है। सोशल मीडिया में काम करने वाले ये लोगों दूसरे प्रदेशों से आए हुए हैं, और लोकसभा चुनाव कर यहां रहकर काम करेंगे। कुल मिलाकर चुनाव में सोशल मीडिया पर लड़ाई ज्यादा आक्रामक रहेगी।
दिल्ली जाने का सिलसिला
चर्चा है कि केन्द्र सरकार ने बस्तर एसपी जितेन्द्र सिंह मीणा की प्रतिनियुक्ति को मंजूरी दे दी है। मीणा आईबी में जा सकते हैं। इसके अलावा डीआईजी स्तर के अफसर डी श्रवण, और राजेन्द्र दास ने भी प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन कर दिया है। उनकी भी प्रतिनियुक्ति को जल्द मंजूरी मिल सकती है। ऐसे में पुलिस में एक और फेरबदल की गुंजाइश बन रही है।
दूसरी तरफ, बस्तर आईजी सुंदरराज पी. को चुनाव तक बस्तर में ही बनाए रखने के लिए सरकार ने मुख्य चुनाव पदाधिकारी के माध्यम से चुनाव आयोग को चि_ी लिखी है। इसके लिए आयोग भी सहमत है। सुंदरराज को बस्तर में करीब साढ़े तीन साल से अधिक हो चुके हैं। आयोग ने तीन साल से एक ही स्थान पर पदस्थ अफसरों के तबादले के आदेश दिए हैं, लेकिन संवेदनशील बस्तर में चुनाव के दौरान अनुभवी अफसरों की जरूरत रहेगी। ऐसे में सुंदरराज के मामले में आयोग नियम को शिथिल करने पर विचार कर रहा है। इस पर जल्द फैसला हो सकता है।
कांग्रेस की ट्रेनिंग
कांग्रेस का विधानसभा स्तरीय बूथ कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है। शिविर में सीनियर नेता, कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं। प्रशिक्षण शिविर में कई जगहों पर एलईडी लगाकर वीडियो क्लिपिंग दिखाई जा रही है। वीडियो क्लिपिंग पिछले विधानसभा चुनाव के पहले की है जब भूपेश बघेल को परिवार समेत ईओडब्ल्यू दफ्तर तलब किया गया था। कुछ इसी तरह की क्लिपिंग दिखाकर रमन सरकार की कांग्रेसियों के खिलाफ कार्रवाईयों को याद दिलाया जा रहा है। यह सब देखकर कार्यकर्ता कितने सक्रिय होते हैं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
हसदेव में समानांतर आंदोलन
हसदेव अरण्य इलाके में स्वीकृत नई कोयला खदानों की मंजूरी के बावजूद जन विरोध के चलते उत्खनन कार्य रूका हुआ है। खदानों को शुरू करने के लिए अदानी समूह और राजस्थान सरकार ने सोनिया गांधी से लेकर सरगुजा और सूरजपुर जिला प्रशासन पर हरसंभव दबाव बनाया। बल प्रयोग करके भी देख लिया गया। मगर प्रभावित आदिवासियों के डटे रहने और उनको कांग्रेस के ही बड़े नेताओं का समर्थन मिलने के कारण मंजूरी नहीं दी जा सकी। इधर कुछ समय से प्रस्तावित नई खदानों को शुरू करने की मांग पर एक समानांतर आंदोलन शुरू कर दिया गया है। इनमें अधिकांश वे लोग हैं जिन्हें वर्तमान में चल रही खदानों से रोजगार मिला हुआ है। इनका कहना है कि नई खदानों में खनन की मंजूरी नहीं मिलने पर वे बेरोजगार हो जाएंगे। खदान के आने से उन्हें अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मिली। अब तो राजस्थान सरकार की बिजली कंपनी यहां पर 100 बिस्तर अस्पताल भी खोलने जा रही है। उनकी यह दलील वाजिब होगी लेकिन दूसरी ओर इन्हीं खदानों के खुलने से हजारों लोग प्रभावित हुए हैं जो बेदखल हुए। रोजी रोटी और पारंपरिक आजीविका के साधन नष्ट हो गए। पर्यावरण, वन्य जीवों और जंगल पर पड़े प्रभाव पर कई अध्ययन हो चुके हैं जो बताते हैं कि अगर कुछ लोगों की नौकरी या रोजगार को बचाने के लिए अगर और खनन हुआ तो भविष्य में इससे होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाएगी। । वैसे पिछले डेढ़ साल से आंदोलन कर रहे आदिवासी इस तरह के ज्ञापन आवेदन को प्रायोजित भी बताते हैं।
इमरजेंसी का चुनावी लाभ
भारत में इमरजेंसी 48 साल पहले 25 जून 1975 को लगाई गई। इसे लोकतंत्र की हत्या और जनता की आवाज कुचलने के दौर के रूप में हर साल याद किया जाता है। भाजपा आज छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों पर मीसा बंदियों का सम्मान और आपातकाल पर बनी डॉक्युमेंट्री का प्रदर्शन कर रही है। इमरजेंसी ने इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद बनी जनता पार्टी की सरकार पूरे 5 साल चल ही नहीं पाई। भाजपा और आरएसएस की दोहरी सदस्यता का विवाद इतना गहरा गया कि ढाई साल में सरकार गिर गई। इसके बाद हुए चुनाव में मानो जनता ने इंदिरा गांधी को माफ कर दिया और वह दोबारा सत्ता में लौट गईं। फिर भी यह विषय कांग्रेस का कभी पीछा नहीं छोड़ती। इस अपराध या गलती को याद दिलाने के लिए अब सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सएप पर्याप्त नहीं रह गए हैं। एक ऑडियो ऐप कुकू एफएम नेहरू, इंदिरा और कांग्रेस पर एक के बाद एक एपिसोड ला रहा है। नेहरू इंदिरा परिवार में हुई मौतों के पीछे एक संत का श्राप भी बताया जा रहा है। ढेर सारे तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है जिसे लाखों लोग सुन रहे हैं और भरोसा कर रहे हैं। इधर कल एक ट्रेलर जारी हुआ है इमरजेंसी फिल्म का। यह फिल्म 2014 को भारत की असली आजादी का वक्त बताने वाली कंगना राणावत की है। यह फिल्म नवंबर में आएगी जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे होंगे। जाहिर है इस फिल्म का लाभ बीजेपी को मिलेगा। फिल्मों में कितना सच सामने लाया गया गया है, यह तो रिलीज होने के बाद ही पता चलेगा।
सैर करने निकला बादल
मानसून के दस्तक देते ही छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाकों का नजारा अद्भुत दिखाई दे रहा है। यह जशपुर जिले के गांव केरी की तस्वीर है, जिसे बादलों ने घेर लिया है।