राजपथ - जनपथ

कांग्रेस में घर की आग...
राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद युवक कांगे्रस अध्यक्ष आकाश शर्मा की अगुवाई में शुक्रवार को भाजपा दफ्तर में कालिख फेंके जाने की घटना पर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति गरमा गई है। चर्चा है कि इस घटना से प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष मोहन मरकाम खफा हैं। मरकाम के करीबी सूत्रों का मानना है कि पूरे देश में शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था। रायपुर में भी मोहन मरकाम की अगुवाई में धरना-प्रदर्शन हुआ। इसमें सीएम भूपेश बघेल ने भी शिरकत की। ऐसे में धरना-प्रदर्शन बिना किसी की अनुमति के आकाश शर्मा का एकात्म परिसर में जाकर उत्पात मचाना अनुशासनहीनता है।
सुनते हैं कि कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने प्रदेश प्रभारी शैलजा को भी घटना की जानकारी है। कहा जा रहा है कि आकाश शर्मा को नोटिस भी थमाई जा सकती है। यही नहीं, मरकाम के समर्थक, आकाश शर्मा के तेवर को सुनियोजित मान रहे हैं। दरअसल, कुछ दिन पहले विधानसभा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कोंडागांव जिले में डीएमएफ में गड़बड़ी के मसले पर सरकार को घेरा था, और उन्होंने इस मसले पर सीधे-सीधे आकाश शर्मा के पिता अरूण शर्मा को निशाने पर लिया था। अरूण शर्मा कोंडागांव जिले में आरईएस में ईई हैं। मरकाम के आरोपों की जांच के लिए सरकार ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बिठाई है। इससे आकाश शर्मा नाराज बताए जा रहे हैं, और इन सबके बीच एकात्म परिसर में हंगामा करने की घटना को, मरकाम समर्थक प्रदेश कांग्रेस के धरना प्रदर्शन को महत्वहीन करने की कोशिशों के रूप में देख रहे हैं। ये बातें पूरी तरह सच भले न हों, लेकिन इस घटना में कांग्रेस के भीतर खदबदाहट पैदा कर दी है। देखना है आगे क्या होता है।
अब आवा-जाही का मौसम
विधानसभा के आखिरी बजट सत्र के अवसान के बीच कई विधायकों ने अपने भावी राजनीतिक कदम की तरफ भी इशारा किया है। मसलन, जोगी पार्टी के निलंबित विधायक धर्मजीत सिंह, और प्रमोद शर्मा ने सदन के भीतर भाजपा विधायकों के साथ कदमताल कर संकेत दिए हैं कि वो भविष्य में भाजपा में जा सकते हैं। वैसे भी एक बार धर्मजीत सिंह की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात भी तय हुई थी, लेकिन व्यस्तता की वजह से अमित शाह नहीं मिल पाए।
जोगी पार्टी के एक और विधायक प्रमोद शर्मा भी पूरी तरह धर्मजीत सिंह के साथ हैं। ये अलग बात है कि वो दिवंगत देवव्रत सिंह के रहते कांग्रेस में जाने की सोच रहे थे। अब संकेत है कि वो चुनाव के पहले भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इन सबके बीच जैजेपुर के बसपा विधायक केशव चंद्रा की कांग्रेस से नजदीकियां भी चर्चा का विषय है। चंद्रा ने विधानसभा खत्म होने के बाद कुछ कांग्रेस विधायकों के साथ सीएम भूपेश बघेल से मिले, और उन्हें प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदी की घोषणा करने पर बधाई दी। चर्चा है कि दो बार के विधायक चंद्रा भविष्य में कांग्रेस संग आ सकते हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
शिक्षा में उपचार
छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूल के बच्चों की शिक्षा में सुधार लाने के लिए उपचारात्मक शिक्षा योजना शुरू की गई। जिसके तहत स्कूल के बाद बच्चों के एक्सट्रा क्लास लगाकर उनकी कमजोरियों को दूर करने की योजना बनाई गई। इसके लिए स्कूल के शिक्षकों के साथ बेरोजगार युवाओं और गृहणियों को जोडऩे का फैसला लिया गया, ताकि पढ़ाई कर रहे युवाओं और गृहणियों को कुछ आमदनी हो जाए। पहली नजर में योजना पवित्र लगती है। ऐसे में सवाल उठ सकता है कि अगर योजना पवित्र है, तो इस कॉलम में लिखने का क्या औचित्य है? दरअसल हर योजना पवित्र होती है, लेकिन जब उसके नतीजों पर गौर किया जाता है, तो पता चलता है कि वह कितनी दूषित हो गई। इस योजना के साथ भी यही हुआ और बच्चों का उपचार तो नहीं हो पाया, लेकिन योजना को लागू करने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों का ऐसा उपचार हुआ कि सब के सब लाल हो गए हैं। इस योजना में बच्चों की शिक्षा का उपचार करने वाले शिक्षकों, युवाओं या गृहणियों को प्रति बच्चा 50 रुपए मानदेय दिया जाना तय हुआ था। पूरी योजना में ट्विस्ट तब आया जब एकस्ट्रा क्लास में बच्चे नहीं आए, फिर भी स्कूल की दर्ज संख्या के आधार शिक्षकों के खातों में पैसे ट्रांसफर किए जा रहे हैं। पैसे डालने से पहले सभी स्कूलों के प्राचार्यों को बुलाकर निर्देश दिए गए हैं कि रकम पहुंचते ही उसे निकाल लिया जाए, ताकि उसका हिस्सा बंटवारा हो सके। अधिकारियों-कर्मचारियों की साफगोई देखिए, बकायदा बताया जा रहा है कि इन पैसों का तीन-तीन हिस्सों में बंटवारा किया जाएगा और किसकी जेब में कितना जाएगा, इसका भी पूरा हिसाब-किताब समझाया गया। कहा जा सकता है कि शिक्षा विभाग में उपचार का यह नया फार्मूला तैयार है। बच्चों का उपचार नहीं हुआ तो क्या हुआ अधिकारी-कर्मचारी और नेताओं का तो पूरा इलाज हो रहा है।
बेरोजगारी दर और राज्य की आबादी
छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी पर खूब चर्चा होती है और होनी भी चाहिए। राज्य की सरकार इस साल से बेरोजगारी भत्ता जो देने जा रही है, लेकिन आश्चर्य है कि सरकार के पास बेरोजगारों की संख्या के बारे में ठोस आंकड़े नहीं है। सरकारी भाषा में बेरोजगार कोई शब्द नहीं है। विधानसभा में जब इसके बारे में सवाल पूछा गया तो सरकार ने बेरोजगारों की संख्या नहीं बताई, बल्कि रोजगार की इच्छा रखने वालों की जानकारी दी। अब सामान्य बोलचाल में उन्हें ही बेरोजगार माना जाता है, जो रोजगार की इच्छा रखते हैं। लेकिन सरकारी भाषा में इसके अलग मायने हैं,अब इसका तो कुछ किया नहीं जा सकता, लेकिन देखना यह होगा कि सरकार रोजगार चाहने वालों को भत्ता देती है या फिर कोई नई परिभाषा तैयार होती है। इसमें एक पेंच सीएमआईई का भी है, जो हर महीने बेरोजगारी दर के आंकड़े जारी करती है। इस निजी संस्था की बात मानें तो छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर 1 प्रतिशत से भी कम है। किसी-किसी महीने तो राज्य की बेरोजगारी दर 0.1 प्रतिशत भी रही। सरकार इस आंकड़े को तथ्यात्मक मानती है और खूब प्रचार-प्रसार करती है।
धानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि संस्था के आंकड़ों के प्रचार-प्रसार में करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन भत्ता पाने वालों को इन आंकड़ेबाजी से क्या लेना-देना? उनका तो केवल भत्ते से मतलब है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कौन सी बात को सच माना जाए। इस बीच बीजेपी के नेता और पेशे से सीए निश्चय वाजपेयी ने ट्वीट कर एक नया सवाल उठा दिया। उन्होंने लिखा कि प्रदेश में बेरोजगारी दर 0.8 प्रतिशत और रोजगार चाहने वालों की संख्या 18 लाख 79 हजार 126 है, तो कुल कामगारों की संख्या 23 करोड़ 48 लाख 90 हजार 750 हो गई। उनका तर्क है कि इसमें 40 प्रतिशत अकामकाजी महिलाएं, बच्चे और बूढ़े हैं तो राज्य की कुल आबादी 39 करोड़ 15 लाख हो गई। अब तो आपका भी माथा घूम गया होगा कि क्योंकि अभी तक तो हम सब को यही पता कि छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 3 करोड़ के करीब है। अगर आपका माथा नहीं घूमा होगा, तो हमें भी बताइगा कि राज्य की आबादी के कौन से आंकड़े को सही माना जाए। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों के लिए भी यह विषय हो सकता है।
देवी का दरबार सूना
रेलवे ने जिन छोटे स्टेशनों पर ट्रेनों का स्टॉपेज बंद कर दिया है उनमें एक भनवारटंक भी है, जो बिलासपुर की ओर से जाने पर मिलने वाला पेंड्रारोड से पहले कटनी रूट का एक छोटा स्टेशन है। सडक़ मार्ग से यहां पहुंचना मुश्किल है। जंगल के रास्ते ठीक नहीं हैं। दूरी भी अधिक। सबसे आसान तरीका ट्रेन से पहुंचना है। लोकल में बैठकर पटरी के ठीक बगल में स्थापित मंदिर में पहुंचिए। दो चार घंटे बाद दूसरी लोकल से लौट जाइए। पर अब यहां बमुश्किल 2 ही ट्रेन रुक रहीं हैं। नतीजतन दर्शन करने वालों की संख्या इस एकदम से घट गई है। इस नवरात्रि दर्शनार्थियों के भरोसे ही दुकानें लगाकर बैठे 50 से अधिक परिवारों के रोजगार पर सीधा असर पड़ा है। जाहिर है, मंदिर में भी चढ़ावा कम आ रहा है।
किसान वोटों पर फिर अगला चुनाव
छत्तीसगढ़ की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने साफ कर दिया है कि अगला चुनाव भी वह किसानों को खुश करके ही जीतना चाहती है। थोड़े ही दिन हुए हैं जब यह घोषणा की गई थी अगले सत्र में प्रति क्विंटल धान 2640 रुपए की दर से खरीदा जाएगा। इस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य के बाद न्याय योजना के तहत जो राशि दी जाती है उसे मिलाकर 2500 रुपये किसानों को मिल रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में यदि केंद्र सरकार वृद्धि करती है तो हो सकता है कि 2640 से भी ऊपर रकम देने की घोषणा हो जाए। अब सरकार ने एक निर्णय और ले लिया कि प्रति एकड़ पीछे 15 क्विंटल की जगह अब 20 क्विंटल धान खरीदी की जाएगी। इस प्रोत्साहन का नतीजा ही है कि 2.30 लाख नए किसानों ने पिछले साल पंजीयन कराया। इस साल धान बेचने वाले किसानों की संख्या 24.96 लाख हो चुकी थी। यह मुमकिन है कि अगले साल और बढ़ जाए। धान खरीदी लगभग उसी समय होने वाली है, जब छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव होंगे। 25 लाख किसानों और उनके परिवार के वोटों पर यह फैसला सीधे असर डालेगा। ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसके खिलाफ कुछ बोलना किसी विरोधी दल के लिए मुमकिन नहीं है।
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