राजपथ - जनपथ

मरकाम का हमला किस पर ?
कोंडागांव में डीएमएफ में कथित गड़बड़ी पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम विधानसभा में काफी गरम दिखे। उन्होंने अपनी सरकार को कटघरे में लिया, और यहां तक कह गए कि डीएमएफ की लूट मची हुई है। वो आरईएस में खरीदी को लेकर काफी खिन्न थे। हालांकि पंचायत मंत्री रविंद्र चौबे ने एक माह के भीतर प्रकरण की जांच कराने की घोषणा की। बावजूद इसके मरकाम संतुष्ट नजर नहीं आए।
बताते हैं कि मरकाम आरईएस के जिस अफसर अरूण कुमार शर्मा पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साध रहे थे वो कोई और नहीं, सीएम के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी के समधी हैं। अरूण कुमार शर्मा, राजेश तिवारी के दामाद युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा के पिता हैं। मरकाम इस पूरे मामले की विधानसभा की कमेटी से जांच चाह रहे थे, और वो खुद भी जांच का हिस्सा बनना चाहते थे। मगर मंत्रीजी इसके लिए तैयार नहीं हुए। फिर भी जिस तरह उन्होंने सरकार को कटघरे में खड़ा कर एक तरह से सीएम के करीबियों को निशाने पर लिया है, इसकी सदन के बाहर खूब चर्चा हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
शादी और सरोकार
लोगों की शादी के कार्ड भी कभी-कभी उनके राजनीतिक और सामाजिक सरोकार के सुबूत होते हैं। अब फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने अभी मुम्बई के समाजवादी पार्टी के नौजवान नेता फहद अहमद से अदालती शादी की, और उसके बाद अब दिल्ली में अपने माता-पिता के पास स्वरा धूमधाम से शादी की तैयारी कर रही हैं, तो इस शादी की दावत का कार्ड देखने लायक है। इन दोनों की मुलाकात मुम्बई में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान हुई थी, और फिर पहचान, दोस्ती, मोहब्बत तक पहुंची, और शादी हुई। लेकिन इस आंदोलन की अहमियत दिल से निकली नहीं। अब शादी का जो कार्ड बना, वह इनकी सोच के मुताबिक इस आंदोलन को दिखा रहा है। मुम्बई के मरीन ड्राइव पर चल रहा यह आंदोलन इन दोनों ने उसके बीच से मंच और माईक पर साथ जिया था, लेकिन इसमें वे अपने घर की खिडक़ी से अपनी बिल्ली के साथ इस आंदोलन को देखते हुए दिख रहे हैं। परंपरागत शादी में भी राजनीतिक चेतना और अपने सरोकारों वाला यह कार्ड अपने को सरोकारी मानने वाले बहुत से लोगों के लिए एक नसीहत भी हो सकता है।
हॅंसी-खुशी पर अटकल जारी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात की हॅंसती-मुस्कुराती तस्वीर के बारे में हमने इसी जगह लिखा था, और तस्वीर के उस विश्लेषण, उस व्याख्या से राजनीतिक अटकलबाजी और बढ़ गई है। ऐसी हॅंसी का भूपेश बघेल का राज लोगों को परेशान कर रहा है, जितना कांग्रेस के लोगों को कर रहा है, उससे अधिक भाजपा के लोगों को। अब छत्तीसगढ़ में भाजपा के लोगों के सामने दुविधा कम नहीं है, वे हर बात पर दिल्ली के रूख को भांपने की कोशिश करते हुए किसी तरह चुनाव तक का वक्त काट रहे हैं। ऐसे में दो लोगों की यह मुस्कुराहट और हॅंसी उनके लिए भांपने का एक और सामान खड़ कर गई हैं। फिलहाल, जितने मुंह उतनी बातें, और ऐसा लगता है कि लोगों का विश्लेषण तथ्यों और तर्कों पर होने के बजाय उनकी भावनाओं और नीयत पर अधिक टिका रहता है। आने वाले महीने बताएंगे कि इस हॅंसी-खुशी का राज क्या था, या इसमें कोई राज नहीं था?
पुरंदर की सानी नहीं
छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन तो ओडिशा के ही हैं, इसलिए उनकी जिंदगी में भगवान जगन्नाथ की खास जगह होनी ही थी, इसलिए रायपुर के राजभवन में आने के बाद उनका पहला कार्यक्रम जगन्नाथ मंदिर में होना ही था। अब इसके पहले के भी हर राज्यपाल साल में एक-दो बार तो जगन्नाथ मंदिर जाते ही रहे हैं, हर मुख्यमंत्री भी वहां जाते हैं। इस मंदिर को बनवाने वाले पुरंदर मिश्रा एक समय कांग्रेस में थे, आज वे भाजपा में हैं, लेकिन वे सरकार से परे राजभवन की लिस्ट में रहने वाले पहले नंबर के रहते हैं। अब उन्हें देखकर बहुत से लोगों का मन मसोसकर रह जाता है कि उनके पास जगन्नाथ मंदिर नहीं है। जो भी हो, सरकार के बाहर शहर का सबसे बड़ा कार्यक्रम पुरंदर मिश्रा ही करवा पाते हैं, और मंदिर उनकी पहचान बन गया है। अब तो इस बार के राज्यपाल ओडिशा के ही हैं।
सरकारी अस्पताल की थाली
यह थाली किसी रेस्टॉरेंट की नहीं बल्कि राजधानी रायपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मेकाहारा की है। और यह किसी वीआईपी के लिए नहीं, यहां भर्ती मरीजों के लिए है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस नेता पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू ने यह पोस्ट डाली है। दूसरों ने भी प्रतिक्रिया दी है कि पनीर तो रोज नहीं होता लेकिन थाली रोज ही अच्छी होती है। सवाल यह उठ रहा है कि राज्य के दूसरे सरकारी अस्पतालों में खाना क्यों अच्छा नहीं मिलता, क्या मेकाहारा में एक थाली के पीछे ज्यादा बजट मिलता है?
मरकाम को सिंहदेव का साथ
कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़ में विधायकों की संख्या के लिहाज से सबसे ताकतवर है। कांग्रेस भाजपा के बीच फासला इतना अधिक है कि किसी ने यहां की सरकार गिराने की कोशिश नहीं की, जबकि इसके साथ के दो अन्य राज्यों राजस्थान और मध्यप्रदेश में हुई थी। मध्यप्रदेश में कामयाबी भी मिल गई। छत्तीसगढ़ में भाजपा इस साल के चुनाव में दोबारा वापसी की कठिन लड़ाई लड़ रही है। हार जीत का अंतर पाटना आसान नहीं है। दूसरी ओर वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों का बयान आ गया है कि इस बार 75 सीटों में जीत होगी। इस दावे को अंबिकापुर में मंत्री टीएस सिंहदेव ने सीधे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव की अटकल से जोड़ दिया है। सिंहदेव ने कहा कि सब कुछ अच्छा चल रहा है तो फिर बदलाव करने का औचित्य समझ में नहीं आता। ऐसा कहकर एक तरह से सिंहदेव ने मरकाम को अपना परोक्ष समर्थन दिया है और मोटे तौर पर वे बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। साथ ही इशारों में पूछ लिया कि क्या 75 सीट सचमुच आएंगी?
मंत्रालय में 11 साल पुराना सेटअप
महानदी भवन में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी सबसे पॉवरफुल माने जाते हैं। सरकार इन्हीं से चलती है। पर इन दिनों वे नाराज चल रहे हैं। राज्य सरकार के बजट में उन्हें मंत्रालय के सेटअप में वृद्धि की घोषणा होने की उम्मीद थी पर नहीं हुई। मंत्रालय का सेटअप करीब 11 साल पहले 2012 में निर्धारित किया गया था। उसके बाद से अब तक पदों की संख्या बढ़ाने की मांग हो रही है। 11 साल के दौरान जिलों की संख्या करीब दो गुना बढक़र 33 हो चुकी है। मंत्रालय में कामकाज बढ़ा पर सेटअप में वृद्धि नहीं की गई। इस बीच अनेक अधिकारी, कर्मचारी रिटायर भी हो गए हैं। कर्मचारियों की संख्या वही पुरानी होने के कारण उन पर काम का बोझ बना हुआ है। वैसे जानकारी आई है कि वित्त विभाग से अनुमोदन के बाद मंत्रालय में स्टाफ बढ़ाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास भेज दिया गया है। मंजूरी मिलने के बाद नई भर्तियां हो सकती हैं।
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