राजपथ - जनपथ

जुर्माना मंजूर पर गांव जाना नहीं
छत्तीसगढ़ से पास आउट होने वाले करीब दो दर्जन एमबीबीएस डिग्रीधारियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में 2 साल तक सेवा देने की जिम्मेदारी से बचने के लिए जुर्माना देने का विकल्प चुना है। यह संख्या 1 माह पहले करीब 80 थी। मगर धीरे-धीरे कई डिग्रीधारी वापस लौट आए। अब यह प्रावधान कर दिया गया है कि अगर बांड या जुर्माना नहीं भरेंगे तो उन्हें डिग्री नहीं सौंपी जाएगी। उनको प्रोविजनल डिग्री दी जाती है जिसके आधार पर उन्हें प्रैक्टिस की अनुमति नहीं मिलती। सन् 2000 तक जुर्माना करीब 5 लाख होता था पर इसे अब बढ़ाकर 50 लाख कर दिया गया है। यह देखने में आया है कि जिन डॉक्टरों ने ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने का विकल्प भी चुना है वह ऊंचे स्तर पर सिफारिश लगाते हैं और शहर से लगे हुए गांवों को प्राथमिकता देते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां एक बड़ी आबादी दूरस्थ आदिवासी इलाकों में रहती है और वहां सुविधाओं का अभाव है डॉक्टर 2 साल का भी संघर्ष वाला समय बिताने के लिए राजी नहीं होते हैं। सीनियर तो छोड़ें, नयों की भी यह मानसिकता बन जाती है।
एक और दिल्ली की ओर
प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक आईपीएस अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। एक और अफसर डी श्रवण भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए सरकार से अनुमति मांगी है। आईपीएस के वर्ष-2008 बैच के अफसर श्रवण नांदगांव, कोरबा में एसपी रह चुके हैं। डीआईजी स्तर के अफसर श्रवण की साख भी अच्छी है। कहा जा रहा है कि वो आईबी में पोस्टिंग के इच्छुक हैं। देखना है सरकार श्रवण के आवेदन पर क्या कुछ करती है।
कर्नाटक का स्पष्ट फैसला
कर्नाटक हाईकोर्ट ने वहां की राज्य सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय को आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था। इससे पहले भाजपा शासित मध्यप्रदेश, और उत्तर प्रदेश में भी आरक्षण बढ़ाने के फैसले पर वहां के उच्च न्यायालय रोक लगा चुके हैं। ये स्थानीय व नगरीय निकाय चुनावों से संबंधित थे। झारखंड में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव लगभग छत्तीसगढ़ के साथ-साथ ही विधानसभा में लाया गया था। वहां भी राज्यपाल ने दस्तखत नहीं किया। ठीक उसी तरह जैसे छत्तीसगढ़ में नहीं किया गया।
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले में खास बात यह कि वहां कोर्ट ने आरक्षण की पुरानी व्यवस्था जारी रखने का आदेश साथ में जोड़ भी दिया है। छत्तीसगढ़ में यह स्थिति नहीं है। यहां हाईकोर्ट ने यह नहीं बताया है कि 58 प्रतिशत अवैध तो वैध कौन सा माना जाए। इसके चलते यह कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में कोई भी आरक्षण लागू नहीं है। हालांकि हाल ही में हाईकोर्ट ने अपने यहां हो रही संविदा भर्ती पर 2012 के पूर्व की स्थिति के आधार पर आरक्षण दिया है। सरकार इसे आधार मानकर कोई निर्णय लेने वाली है ऐसा कोई संकेत अब तक नहीं मिला है। इसके चलते विभिन्न तकनीकी महाविद्यालयों और प्रतियोगी परीक्षाओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
मेले के पहले राजिम
राजिम के त्रिवेणी संगम का प्रयाग से कम महत्व नहीं है। छत्तीसगढ़ में बहुत से लोग अस्थियां विसर्जन के लिए यहां आते हैं। 15 साल की भाजपा सरकार और अब कांग्रेस सरकार ने इसका वैभव और सौंदर्य बढ़ाने के लिए कई योजनाओं की घोषणाएं की। आज जब यहां मकर संक्राति पर्व मनाया जा रहा है और अगले महीने पुन्नी मेला आयोजित होने वाला है। अभी हाल कैसा है? यहां से लौटकर लोग बता रहे हैं कि अस्थि विसर्जन के लिए भी जगह ढूंढनी पड़ रही है, जहां पानी हो। 12 महीने पानी मिले इसके लिए तीन एनिकट 500 मीटर की दूरी पर बना दिए गए- लेकिन सब सूखे। नवीन मेला मैदान चार सालों से बन रहा है तो बन ही रहा है। अब तक अधूरा। यात्री प्रतीक्षालय, सडक़, नाली की हालत भी अच्छी नहीं। फरवरी में मेले के दौरान अफसर कुछ अस्थायी कार्य कर इन कमियों को ढंक जरूर लेंगे पर आस्था और पर्यटन के हिसाब से सालभर पहुंचने वाले यात्री मायूस होकर लौटते हैं।
रौशन रहे विरासत
ऐसा जुगाड़ अपने इंडिया में ही हो सकता है। दादा-दादी के जमाने के लालेटन का इस्तेमाल करने का मन है, पर बाती और तेल का इंतजाम नहीं होता। आइडिया आया, तेल की जगह बिजली का करंट और बाती की जगह सीएफएल। (rajpathjanpath@gmail.com)