राजपथ - जनपथ

नुकसानदेह छुट्टी
छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने कुछ महीने पहले जब शनिवार को भी प्रदेश सरकार के दफ्तर बंद रखना तय किया था तो उसे कर्मचारियों के हित का बड़ा फैसला बताया गया था। पहले भी महीने में दो शनिवार दफ्तर बंद रहते थे, और इस फैसले के बाद बाकी के दो शनिवार भी बंद रहने लगे। कर्मचारियों को 26 दिनों की छुट्टी हर साल और मिलने लगी। बदले में सरकारी दफ्तरों को हर दिन शायद घंटे भर अतिरिक्त चलाना शुरू किया गया था, लेकिन जगह-जगह इसकी जांच की गई और पाया गया कि कोई कर्मचारी नए समय पर दफ्तर पहुंच नहीं रहे थे। अब खबर आई है कि नया रायपुर विकास प्राधिकरण में शनिवार की यह नई छुट्टी इंजीनियरिंग शाखा में रद्द कर दी गई है, और वहां के इस शाखा के प्रभारी अधिकारी ने आदेश निकाला है कि सभी लोग शनिवार को भी काम पर आएं। अब एनआरडीए की इस शाखा की चाहे जो मजबूरियां रही हों, आम जनता का यही मानना है कि काम के दिन कम करके सरकार ने ठीक नहीं किया है, सरकारी दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारियों का वही पुराना ढर्रा चल रहा है, वे महीने में 24 दिन भी समय पर नहीं आते थे, और अब वे महीने में 22 दिन समय पर नहीं आ रहे हैं। इस छुट्टी से अगर किसी का फायदा हुआ है तो वह सिर्फ कर्मचारियों का हुआ है, और जनता का सरकारी दफ्तरों से बुरा तजुर्बा जारी है। सरकार को अपने अमले की उत्पादकता बरकरार रखने के लिए शनिवार की यह छुट्टी खत्म करनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के सांसद का सवाल और जवाब!
कुछ बरस पहले की नोटबंदी की बुरी यादें लोगों के दिमाग में अभी ताजा हैं, और सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के न्यायसंगत और तर्कसंगत होने की जांच कर ही रहा है, अभी कुछ अदालत में सुनवाई जारी है और सरकारी फाईलें, रिजर्व बैंक की फाईलें बुलवाई जा रही हैं। इस बीच छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भेजे गए कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला के एक सवाल के जवाब में वित्तमंत्री की तरफ से दी गई जानकारी बड़ी ही दिलचस्प है। हिन्दुस्तान में 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे से नोटबंदी लागू की गई थी। उसके पहले की तारीख अगर देखें, तो मार्च 2016 में देश में 9 लाख (लाख) से कुछ अधिक संख्या में नोट प्रचलन में थे, जिनकी कुल कीमत 16 लाख करोड़ रूपये से अधिक थी। नोटबंदी के बाद अगले बरस में मार्च 2017 में नोट बढक़र संख्या में 10 लाख (लाख) पार कर गए। मार्च 2018 में ये सवा दस लाख तक पहुंच गए, मार्च 2019 में 10 लाख 87 हजार (लाख) नोट प्रचलन में थे, और ये लगातार बढ़ते हुए मार्च 2022 में 13 लाख (लाख) संख्या तक पहुंच गए, नोटबंदी के पहले इनके दाम 16 लाख (करोड़) रूपये थी जो कि आज बढक़र 31 लाख (करोड़) हो चुकी है। मतलब यह कि नोटबंदी के बाद से अब तक नोटों की संख्या सवा गुना से अधिक बढ़ गई है, और उनके कुल दाम करीब सवा दोगुना बढ़ गए हैं। अब इन आंकड़ों से भी सुप्रीम कोर्ट के जज नोटबंदी की कामयाबी को तौल सकते हैं क्योंकि सरकार ने नगदी चलन घटाने को भी नोटबंदी का एक मकसद बताया था।
नए जमाने की बैलगाड़ी
छत्तीसगढ़ की खेती में बीते दो दशकों के भीतर बैलगाड़ी की जगह ट्रैक्टरों ने ले ली है। पर, अब भी ऐसे गांव जहां ट्रैक्टर सुलभ नहीं हैं, भैंस या बैल की जोड़ी मुंशी प्रेमचंद की हीरा-मोती की तरह दिखाई दे जाती है। अपने यहां छत्तीसगढ़ी पर्वों की ओर लौटने के दौर में बैलों की दौड़ होती है। धरना, प्रदर्शन रैलियों में भी आजकल बैलगाडिय़ां दिखने लगी हैं, खासकर मुद्दा जब पेट्रोल डीजल की कीमत का हो तो। यानि बैलगाडिय़ों का महत्व घटा है पर बिल्कुल खत्म नहीं हुआ। महाराष्ट्र के इस्लामपुर स्थित राजाराम बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के मैकनिकल इंजीनियरिंग के दो छात्रों ने एक अनोखा अविष्कार किया है। बैलगाड़ी के खूंटे पर बीचो-बीच शॉकर्ब से युक्त एक रोलर पहिया लगा दिया है। यह बैलों के कंधे का बोझ कम करता है। बैलगाड़ी पर ज्यादा वजन भी ढो सकते हैं और बैलों पर भार भी कम पड़ता है। महाराष्ट्र में इसका व्यावसायिक निर्माण भी होने लगा है। मुमकिन है छत्तीसगढ़ के खेत-खलिहानों में भी आने वाले दिनों में यह दिखाई दे, और राजनीतिक प्रदर्शनों में भी।
चुनावी वर्ष का मुफ्त चावल
समाज के सभी वर्गों पर ईंधन और खाद्यान्न की महंगाई का असर पड़ा है। गरीबों पर कुछ ज्यादा पड़ा है। ऐसे में अगर उन्हें चावल या गेहूं ही मुफ्त मिल जाए तो यह बहुत बड़ी मदद है। इसका अपना चुनावी फायदा भी है। सरकारों के पास यह ज्यादा से ज्यादा गरीबों को लुभाने का रास्ता है। छत्तीसगढ़ में नई सरकार ने आते ही पीडीएस का चावल सभी के लिए उपलब्ध करा दिया। जो निम्न आय वर्ग में नहीं हैं, वे भी 10 रुपये किलो में सरकारी दुकानों से चावल ले सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपना चावल नहीं उठाते। ये बचा हुआ माल राइस मिलों में वापस खप जाता है। भाजपा नेता लगातार आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार का चावल छत्तीसगढ़ सरकार बांट नहीं रही, गबन हो रहा है। इधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल की आखिरी बैठक में फैसला लिया है गया कि दिसंबर 2023 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को मुफ्त चावल मिलता रहेगा। साल 2020 में कोविड के चलते केंद्र ने मुफ्त चावल की यह योजना लागू की थी, जो पांच किलो हर माह मिलता है। जहां गेहूं की उपलब्धता और मांग अधिक है, वहां चावल की जगह गेहूं दिया जाता है। केंद्र सरकार इस योजना पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है, जिसका लाभ 81 करोड़ से अधिक लोगों को मिलेगा। कोविड और उसके पहले लिए गए सरकार के अनेक फैसलों जैसे, नोटबंदी, जीएसटी, पेट्रोल-डीजल पर बढ़े टैक्स और बेरोजगारी ने बड़ा असर डाला है। पर, केंद्र सरकार ने फोकस सिर्फ पांच किलो चावल पर किया है। ऐसा कार्यक्रम अधिकांश राज्य अपने बजट से गरीबों को पहले से ही पहुंचा रहे हैं। केंद्र की मुफ्त चावल के लिए तय अवधि का बड़ा महत्व है। दिसंबर 2023 योजना चलेगी। यह वही समय है, जब राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हो रहे होंगे। उम्मीद करना चाहिए कि योजना फिर आगे चलेगी क्योंकि उसके बाद 2024 में भी चुनाव होने हैं।
कांगेर की गुफाओं में दीमक
कांगेर नेशनल पार्क में कोटमसर, कैलाश, झुमरी, शीतगुफा, देवगिरी इतनी गहराई में हैं कि इन्हें पाताल लोक भी कहा जाता है। इन दिनों यहां स्टेलेग्माइट और स्टेलेक्टाइट की चट्टानों पर दीमक की परतें दिख रही हैं। हालांकि सख्त पत्थरों पर दीमक का असर नहीं पडऩे वाला लेकिन इनकी चमक फीकी होती जा रही है। सैलानियों को भ्रमण कराने के लिए भीतर ले जाने के दौरान मशाल और पेट्रोमैक्स का इस्तेमाल करने किया जाता है। पुरातत्व विज्ञानियों का कहना है कि इनके धुएं की वजह से ही ऐसा हो रहा है। यह दृश्य कुटमसर गुफा के द्वार का है, जहां दोपहर के समय कुछ देर के लिए रोशनी पहुंचती है तो काई जमा होने के कारण हरे रंग से चमकती दिखाई देती है। (rajpathjanpath@gmail.com)