राजपथ - जनपथ

विलुप्त हो रहा राजकीय पशु
एक ओर प्रदेश में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो दूसरी ओर राजकीय पशु वन भैंसा लुप्त होते जा रहे हैं। भैरमगढ़, पामेड़, कुटरू बस्तर के ऐसे इलाके रहे हैं जहां राज्य बनने के समय वन भैंसों का झुंड दिखाई देता था। हाल ही में यहां का भ्रमण करके आए एक सैलानी ने बताया कि उन्हें वन भैंसों का समूह कहीं देखने को नहीं मिला। जो वन भैंसे अनायास ही विचरण करते हुए दिखाई दे जाते थे, उनकी मौजूदगी का पता लगाने के लिए अब ट्रैप कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस राजकीय पशु के संरक्षण के लिए सन् 2006 में 90 लाख रुपये की योजना बनाई गई थी। अब तक 20 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। रुपये तो फूंक दिए गए पर उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। खुद वन विभाग के अधिकारी मान रहे हैं कि इनकी संख्या 12 से 15 के बीच रह गई है। यह वक्त सचेत होने जाने का है।
सब्जी उत्पादकों की चिंता
बाजार में इन दिनों सब्जियां खूब सस्ती मिल रही हैं। दो माह पहले तक जो गोभी 80 रुपये किलो बिक रही थी आज बाजार में 10-12 रुपये में मिल रही है। ऐसा ही हाल दूसरी सब्जियों का भी है। ज्यादातर लोग खुश होते हैं कि चलिये राशन की दूसरी चीजें महंगी है तो कम से कम एक चीज तो है जिससे राहत मिल रही है। पर किसानों की हालत दूसरी है। थोक बाजार में उनको दो तीन रुपये किलो में ही बेचना पड़ रहा है। ठंड के दिनों में होने वाला अधिक उत्पादन उन्हें अधिक लाभ दे रहा हो ऐसा हो नहीं रहा है। इस बीच खाद, डीजल के दाम भी बढ़े हैं। वे अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। राजिम से खबर है कि वहां के किसान डेढ़ दो रुपये में ही आढ़तियों को बैंगन बेच रहे हैं। बाजार में यह 10 रुपये किलो बिके तब भी मुनाफा पांच गुना हो रहा है। ग्राहक भी सस्ते में पाकर खुश है लेकिन जो किसान सब्जियां पैदा कर रहे हैं, उनके हाथ में कुछ नहीं आ रहा है। ठंड के दिनों में हर बार ऐसी स्थिति बनती है पर कोई ऐसा संगठन नहीं है जो किसानों की इस फसल की न्यूनतम दाम तय करे। केंद्र और राज्य सरकारों ने कई बार फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने, कोल्ड स्टोरेज बनाने तथा ऑनलाइन सर्च कर मार्केट तलाशने की घोषणाएं की हैं। खेती की तकनीक में सुधार के बाद उत्पादन तो बढ़ा लेकिन बाजार वही पुराना है।
फिर राहुल तक हसदेव
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन के खिलाफ रहे हैं। यदि नई खदानों पर फिलहाल जो रोक लगी हुई है, उसके पीछे उनकी असहमति को भी माना जाता है। राज्य सरकार ने पर्यावरण के नुकसान और जन विरोध का हवाला देते हुए केंद्र सरकार को नई खदानों की मंजूरी को निरस्त करने के लिए पत्र लिखा है। पर केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा नहीं किया जाएगा। हसदेव के आंदोलनकारी कह रहे हैं कि जंगल को काटने की अनुमति देना राज्य सरकार के हाथ में है। इस समय भारत जोड़ो यात्रा चल रही है। हसदेव को बचाने के लिए संघर्ष कर रही टीम के एक सदस्य आलोक शुक्ला ने इस दौरान उनसे मुलाकात की और हसदेव के मुद्दे को फिर एक बार उठाया।
(rajpathjanpath@gmail.com)