राजपथ - जनपथ

प्रोफेसर की यह कैसी चाल ?
पटना के प्रोफेसर ललन कुमार की चारों ओर इसलिये तारीफ हो रही थी कि उन्होंने अपने 33 महीने का वेतन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को वापस कर दिया। यह कहते हुए कि चूंकि इस दौरान विद्यार्थी क्लास आए नहीं और उन्होंने पढ़ाया नहीं। प्रो. ललन कुमार नीतिश्वर कॉलेज से हैं, जो भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध है। कुल सचिव ने पहले मना किया पर जब बाद में प्रोफेसर इस्तीफा देने पर अड़ गए तो आखिर 23.82 लाख रुपये का चेक उन्हें लेना पड़ा। अब किस्से में ट्विस्ट आ गया है। जिस बैंक एकाउन्ट का चेक प्रोफेसर ने दिया, उसमें सिर्फ 852 रुपये जमा हैं। इस एकाउन्ट से एक एफडी भी लिंक्ड है जिसमें करीब 1 लाख रुपये जमा है। यानि लाखों रुपये लौटाने की बात हवा में उड़ाई गई। ऐसा कहा जा रहा है कि प्रोफेसर अपना तबादला किसी दूसरे कॉलेज में चाहते थे, इसके लिए उन्होंने दबाव बनाने का यह तरीका निकाला। प्रोफेसर ने 23.82 लाख रुपये का चेक देने के बाद मीडिया से कहा था कि महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलते हुए अंतरात्मा की आवाज पर उन्होंने यह फैसला लिया। मगर अब तो लग रहा है कि उन्होंने सिर्फ यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर दबाव डालने के लिए खेल रचा।
बैटरी वाहन भी कम खतरनाक नहीं..
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत ने लोगों को बैटरी चलित वाहनों की ओर जाने के लिए विवश कर दिया है। बावजूद इसके कि अभी जो गाडिय़ां आ रही हैं वे 70 से 100 किलोमीटर ही चल रही हैं और चार्जिंग में घंटों लगते हैं। छत्तीसगढ़ की केबिनेट ने इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिए कई घोषणाएं की हैं। लक्ष्य है कि सन् 2027 तक बाजार में बिकने वाले कुल दपहियों में 15 प्रतिशत बैटरी चलित हों। इन्हें टैक्स में छूट देने का निर्णय लिया गया है। जगह-जगह बैटरी चार्जिंग प्वाइंट और एक्सचेंज प्वाइंट खोले जाएंगे, जिससे रोजगार का एक नया अवसर मिलेगा। बैटरी चलित दुपहिया गाडिय़ों की दर्जनों एजेंसियां रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर सहित छत्तीसगढ़ के तमाम शहरों, कस्बों में खुल चुकी हैं। इसकी डीलरशिप के लिए भारी निवेश की जरूरत भी नहीं है। बैटरी चलित गाडिय़ों के पार्ट्स एसेंबल किए जा रहे हैं। इन वाहनों में कुछ ही हैं, पहले से स्थापित विश्वसनीय कंपनियों के प्रोडक्ट हैं। बाकी के बारे में कुछ पता नहीं। ऐसे कई बैटरी वाहनों में आग लगने की ख़बरें देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही हैं। पर इससे भी बड़ा दूसरा खतरा खराब बैटरियों का जखीरा खड़ा होने का है। अभी हाल है कि 90 प्रतिशत खराब हो रही बैटरियों को कबाड़ी स्क्रैप में खरीद रहे हैं। नदी नालों के जरिये इसका एसिड जमीन में जा रहा है। भूजल को यह दूषित कर रहा है और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है। अभी जब ये वाहन चलन में कम हैं तो हजारों टन कचरा निकल रहा है, आने वाले चार पांच सालों में जब लाखों टन कचरा निकलेगा तो उनका निपटारा सुरक्षित तरीके से कैसे किया जाएगा? इस समस्या की तरफ न राज्य का साफ निर्देश है, न केंद्र का, जबकि पर्यावरण वैज्ञानिक विदेशों का उदाहरण देते हुए इस पर लगातार चेतावनी दे रहे हैं।
सिलेंडर से होने वाली बचत...
रसोई गैस सिलेंडर के दाम एक बार फिर बढ़ गए। अब यह 1100 रुपये के करीब पहुंच चुका है। पहले ही गरीब परिवार 4-6 माह में रिफिलिंग कराने के लायक रकम जुटा पाते थे, अब धीरे-धीरे निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों को भी बोझ महसूस हो रहा है। गैस सिलेंडर खाली पड़ा हो तब भी शान से उस पर बैठकर कैसे खाना पकाया जा सकता है, इस तस्वीर में देख सकते हैं।