राजनांदगांव

16 दिनों तक होती है श्रृंगार के साथ पूजा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 29 मार्च। राजस्थान के सबसे बड़े पर्व गणगौर की पूजा अब सारे देश में श्रद्धा भक्ति के साथ की जा रही है। गण मतलब शंकर और गौर मतलब पार्वती के स्वरूप की पूजा होलिका दहन के दूसरे रोज से कन्याओं, नव विवाहितों एवं महिलाओं द्वारा 16 दिनों तक विभिन्न रीति-रिवाजों के तहत मनाया जा रहा है। इस पर्व का अंतिम दिन 31 मार्च को चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन धूमधाम से मनाया जाएगा।
इस संबंध में संस्कृति शर्मा ने बताया कि गणगौर पर्व प्रेम और पारिवारिक सौहाद्र्र के साथ श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में भगवान शंकर व पार्वती के स्वरूप की गणगौर के रूप में पूजा अर्चना 16 दिनों तक की जाती है।
मां पार्वती ने की थी भोलेनाथ की पूजा
विभिन्न कथाकारों के अनुसार गणगौर के महत्व को इस रूप में समझाया गया है कि मां पार्वती ने भोलेनाथ को पाने के लिए गहन तप किया था। जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और माता पार्वती से वर मांगने कहा तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने वर के रूप में मांगा। इस कारण गणगौर को गण मतलब शंकर और गौर मतलब पार्वती के रूप में पूजा जाता है।
छत्तीसगढ़ के पर्व गौरी-गौरा से है समानता
जिस प्रकार छत्तीसगढ़ में दीपावली पर्व पर गौरी-गौरा के तहत भगवान शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ठीक उसी प्रकार होली के दूसरे रोज से गणगौर का प्रारंभ होता है। इसमें भी शिव और पार्वती की ही पूजा का महत्व है। दोनों ही पर्वों में विसर्जन के समय गौरी-गौरा व गणगौर को महिलाएं सिर पर रखकर नृत्य करते शोभायात्रा में निकलती है। तत्पश्चात विसर्जन किया जाता है। इस तरह यह पर्व छत्तीसगढ़ के गौरी-गौरा से भी समानता रखता है।
16 श्रृंगार से होती है पूजा
होली के दूसरे दिन से प्रारंभ होने वाले गणगौर पर्व की पूजा होलिका में चढ़ाए जाने वाले गाय के गोबर के कंडे से बने बरकुला को होली जलने के पश्चात एकत्रित कर 16 बरकुला चढ़ाकर पूजा प्रारंभ की जाती है। 16 दिनों तक होने वाली इस पूजा में 16 गीत, 16 सुहाग का श्रृंगार व हल्दी, काजल, कुमकुम व मेहंदी से 16 दिनों तक बिंदी लगाकर पूजा की जाती है।