राजनांदगांव

सांकरदाहरा में तीन नदी शिवनाथ, डालाकस-कुर्रूनाला का संगम
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 10 जनवरी। राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विकासखंड स्थित प्रसिद्ध सांकरदाहरा छत्तीसगढ़ का दूसरा राजिम बन गया है। मोक्षधाम सांकरदाहरा में तीन नदी शिवनाथ, डालाकस एवं कुर्रूनाला नदी का संगम है। ग्राम देवरी की सीमा से शिवनाथ नदी प्रवाहित होती है। महाराष्ट्र के कोटगुल से निकलकर अंबागढ़ चौकी होते हुए सांकरदाहरा तक पहुंचती है। सांकरदाहरा के पहले डालाकस नदी एवं कुर्रूनाला नदी मिलती है और तीन नदियों का संगम होता है। सांकरदाहरा के पास नदी तीन धाराओं में बंट जाती है और सांकरदाहरा के नीचे आपस में मिल जाती है। यात्रियों को मंदिर दर्शन करने नौका विहार की सुविधा है। नदी के तट पर मंदिर तथा शंकर भगवान की विशालकाय मूर्ति दर्शनीय है। नदी के संगम पर तथा नदी के तट पर मंदिर का दृश्य मनमोहक एवं रमणीय है।
सांकरदाहरा में छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश से लोग अपने पूर्वजों की अस्थि विसर्जन करने आते हैं। सांकरदाहारा में विगत 6 वर्ष से महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दराज से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। नदी के बीचों-बीच सांकरदाहरा विकास समिति देवरी द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई है। ग्राम देवरी के ग्रामवासियों के सहयोग से सातबहिनी- महामाया देवी, अन्नपूर्णा देवी, शाम्भवी देवी, रिद्धीसिद्धी देवी, मंदाकिनी देवी, वैष्णवी देवी, मां बाह्याणी देवी की स्थापना की गई है। इस मुख्य मंदिर के उत्तर में संकट मोचन भगवान मंदिर एवं 32 फीट की विशालकाय शंकर भगवान की मूर्ति एवं नंदीश्वर भगवान के मंदिर ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। नदी के तट पर मां भक्त कर्मा, मां शाकम्भरी देवी, सीता-राम लक्ष्मण एवं गुहा निषाद, राधाकृष्ण, भगवान बुद्ध, शिव-पार्वती, विश्वकर्मा, भगवान सेन, परमेश्वरी देवी, सीता राम लक्ष्मण, अनुसोइया देवी, दुर्गा माता, राजिम तामा, बूढ़ादेव सहित अन्य देवी-देवताओं के मंदिर है, जो श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र हैं। शासन द्वारा यहां दो बड़े-बड़े भवनों का निर्माण किया गया है, जहां धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। शासन द्वारा एनीकट का निर्माण किया गया है। जिससे यहां हमेशा जल भराव रहता है। यहां मुंडन कार्य एवं पिंडदान के लिए पूरी व्यवस्था है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पूजन सामग्री दुकान एवं दुकानों का संचालन हो रहा है, यहां स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।
सांकरदाहरा का नामकरण
सांकरदाहरा के संबंध में प्रचलित कथाओं के अनुसार नदी का मध्य भाग जो दो चट्टानों के बीच दाहरा (गहरा जलभराव) स्थित है। बड़े चट्टान के नीचे एक गुफा है, वहां शिवशक्ति का निवास है, जिसे शतबहनी देवी नाम से पूजा की जाती है, यह ग्राम देवरी की देवी है। नदी के मध्य में चट्टान के अंदर एक गुफा है, जहां देवी का निवास है। चट्टान या दाहरा के पास कभी-कभी लोहे का सांकर पड़ा रहता था। उसे खींचते हुए गांव की ओर लाते थे, किन्तु कुछ दूर लाने के बाद उसका वजन बढ़ जाता था, तब उसे वहीं पर छोड़ कर घर चले जाते थे। दूसरे दिन जब वहां पर आते थे, तो सांकर अदृश्य हो जाया करता था और दाहरा के पास जाने पर ज्ञात होता था कि सांकर दाहरा में प्रवेश कर गया है। रेत में इसका चिन्ह दिखाई पड़ता था, इसलिए इस देव स्थान का नाम सांकरदाहरा पड़ा। वर्ष 1978 में लगभग 14 गांव के लोगों द्वारा मिलकर सांकरदाहरा समिति बनाया गया है। समिति द्वारा विभिन्न आयोजन समय-समय पर किए जाते हैं।