राजनांदगांव

लोहड़ी और मकर सक्रांति प्रेम और आनंद का प्रतीक-कमल
15-Jan-2023 3:49 PM
लोहड़ी और मकर सक्रांति प्रेम और आनंद का प्रतीक-कमल

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 15 जनवरी।
जिला भाजपा सोशल मीडिया प्रभारी कमल सोनी ने लोहड़ी और मकर सक्रांति की सभी लोगों बधाई व शुभकामनाएं दी। उन्होंने बाबा परसपोटा धाम मनगटा पहुंचकर पूजा अर्चना की और साथ ही साथ मंदिर के संरक्षक राकेश श्रीवास्तव से मुलाकात की। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। 

कमल सोनी ने कहा कि मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा थाए जिसे कृष्ण ने खेल.खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व लाल लाही के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। श्रीमद्भागवदगीता के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपना विराट व अत्यन्त ओजस्वी स्वरूप इसी काल में प्रकट किया था। लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति.रिवाजों से ज्ञात होता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है।
 

इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माता-पिता के घर से वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फ ल आदि भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता भगवान शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त भी इसमें दिखाई पड़ता है। लोहड़ी का सन्धि विच्छेद करे तो लो ़ हरि अर्थात अपने जीवन की सभी चिन्ताओं और कमजोरियों को भगवान हरि को समर्पित कर देना तथा अग्नि के समान योगाग्नि से अपनी आत्मा रूपी ज्योति को परम ज्योति परमात्मा से एकीकार करना और अपनी आत्मा को को दिव्य गुणों व शक्तियों से भर लेना। ऐसे कर्म करना जिससे समस्त संसार का कल्याण हो ।

श्री सोनी ने आगे कहा कि हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी जनवरी मास में संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाई जाती है। इस समय धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है। यह अवसर वर्ष के सर्वाधिक शीतमय मास जनवरी में होता है। इस प्रकार शीत प्रकोप का यह अन्तिम मास होता है। पौष मास समाप्त होता है तथा माघ महीने के शुभारम्भ उत्तरायण काल का संकेत देता है। हिन्दू इस अवसर पर गंगा में स्नान कर अपने सभी पाप त्यागते हैं। गंगासागर में इन दिनों स्नानार्थियों की अपार भीड़ उमड़ती है। उत्तरायणकाल की महत्ता का वर्णन हमारे शास्त्रकारों ने अनेक ग्रन्थों में किया है। लोहड़ी का उत्सव किसानो के लिए नई फसल आने के लिए महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार शहरों में लोग इसे मेलजोल तथा परिवार और दोस्तों से एक जुटता का प्रतीक मानते है। इस पर्व का एक यह भी महत्व है कि बड़े-बुजुर्गों के साथ उत्सव मनाते हुए नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पुरानी मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैए ताकि भविष्य में भी पीढ़ी दर पीढ़ी उत्सव चलता ही रहे। श्रेष्ठ संतान का कर्तव्य है कि प्रतिदिन माता.पिता और बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करे और उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करे। 

 


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