राजनांदगांव

राजनांदगांव, 15 जुलाई। क्रोध बिना धुएं की अनि है, इससे बचकर रहें। आग से धुंआ निकलता है तो पता चल जाता है कि आग लगी है, किंतु अगर धुआं न निकले तो यह कैसे पता चलेगा कि आग लगी है। ऐसी आग भीतर ही भीतर हमको जलाकर खाक कर देती है और इससे मिला दर्द हम भूल नहीं पाते। उक्त उद्गार गुरुवार को चातुर्मासिक प्रवचन के दूसरे दिन जैन संत हर्षित मुनि ने नवनिर्मित समता भवन में व्यक्त की।
मुनि श्री ने कहा कि क्रोध की अग्नि यदि भीतर हो तो काफी नुकसान पहुंचाती है। अग्नि का संपर्क थोड़ी देर के लिए हमारे शरीर पर होता है, किंतु उससे बनने वाले फफोले का दर्द काफी दिनों तक रहता है।
उन्होंने कहा कि क्रोध से हमें दूर ही रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस चीज के लिए आप जितना पाप कर्म कर रहे हैं, जिनके लिए आप पाप कमा रहे हैं, जब पाप कर्म का उदय होता है तो वही हमारे साथ नहीं रहते। क्रोध करते तो हम क्षणिक हैं, किंतु उस क्रोध से जो नुकसान होता है, उसका दर्द हमें काफी समय तक सालता रहता है। अधार्मिक व्यक्ति क्रोध करें तो समझ में आता है किंतु धार्मिक व्यक्ति क्रोध करे तो यह समझ के बाहर की बात है। क्रोध, निमित्त मिलता है तो बाहर आता है नहीं तो यह अंदर ही अंदर हमें सालते रहता है और वही बड़ा नुकसान करता है। हम छोटे-छोटे प्रसंगों पर अवश्य सुधार कर सकते हैं।
उक्त जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।