राजनांदगांव

ढाई दशक में तीसरी बार टूटा नांदगांव
17-Aug-2021 2:38 PM
ढाई दशक में तीसरी बार टूटा नांदगांव

 

   मोहला-मानपुर तीन लाख की आबादी का जिला, नए नक्शे में सिमटा दिखेगा नांदगांव   

प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 17 अगस्त (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।
राजनंादगांव जिले से अलग होकर मोहला-मानपुर को नए जिले का दर्जा देने से नए प्रशासनिक नक्शे में राजनांदगांव सिमटा नजर आएगा। करीब ढ़ाई दशक में यह तीसरा मौका है, जब सरकारों ने राजनांदगांव जिले के हिस्से को तोडक़र नया जिला बनाया था।

1998 में कवर्धा को नया जिला घोषित किया गया था। 1973 में दुर्ग से पृथक होकर राजनांदगांव को पूर्ण जिले का दर्जा दिया गया था। लगभग 25 साल तक साथ रहे कवर्धा को 1998 में नया जिला बनाकर राजनांदगांव से अलग किया गया। वहीं एक बार फिर तकरीबन 23 साल बाद फिर से नांदगांव के एकमात्र आदिवासी विधानसभा मोहला-मानपुर को पूर्ण जिले का दर्जा दिया गया है।  मोहला-मानपुर की प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ आदिवासी समुदाय की बड़ी तादाद के कारण एक विशिष्ट पहचान है। नक्सली उथल-पुथल से समूचे देश में मोहला-मानपुर को अति संवेदनशील इलाका  माना जाता है। नक्सलियों की करीब एक दशक पहले तूती बोलती थी। अब फोर्स के बढ़ते दखल के कारण  नक्सलियों की जमीनी पकड़ कमजोर हो गई है।

बताया जा रहा है कि घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों की वजह से विकास की धारा से यह इलाका हमेशा पिछड़ेपन का दंश झेलता रहा है। मोहला-मानपुर को 2008 में नए परिसीमन में विधानसभा का दर्जा मिला।  बताया जा रहा है कि राजनांदगांव मुख्यालय से मोहला-मानपुर के औंधी का सरहदी सीमा करीब 150 किमी दूर है। ऐसे में प्रशासनिक और निजी कामकाज के लिए क्षेत्र के लोगों लंबी दूरी तय करना पड़ता था।  

मोहला-मानपुर के अभी भी कई अंदरूनी हिस्से विकास से अछूते हैं। अंबागढ़ चौकी के बाद से औंधी तक घनघोर जंगल इस इलाके की खूबसूरती को बढ़ाते हैं। मोहला-मानपुर को जिला बनाने की परिकल्पना काफी समय से की जा रही थी। राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर जिला निर्माण की हमेशा चर्चा रही। आखिरकार मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मोहला-मानपुर को राजनांदगांव से पृथक कर नया राजस्व जिला घोषित किया है।

पुलिस महकमे की प्रशासनिक सेटअप पहले से ही नया जिला बनाने की ओर इशारा करती रही है। मानपुर में जिस तरह से एएसपी से लेकर एसडीओपी से लेकर घोर नक्सल इलाकों में ताबड़तोड़ थाना बनाए गए, उससे इस बात का बल मिला कि देर-सवेर यह क्षेत्र नए जिले के रूप में अस्तित्व में आएगा। बताया जा रहा है कि मोहला-मानपुर में प्रचुर मात्रा में गौण खनिज से लेकर बेशकीमती इमरती लकडिय़ों की भरमार है। पानाबरस का जंगल सागौन से लदा हुआ है।

इस जंगल की वन विभाग से परे पानाबरस निगम  निगरानी कर रहा है। कौड़ीकसा के बाद से पानाबरस का जंगल अपनी हरियाली बिखेर रहा है। हर साल जंगल से बेशकीमती लकडिय़ों की निगरानी से सरकार को मुनाफा हो रहा है। समूचे मोहला-मानपुर क्षेत्र की आबादी लगभग 3 लाख के आसपास है। बताया जा रहा है कि छोटे जिले का निर्माण करने के पीछे सरकार का मकसद है कि अंतिम व्यक्ति विकास की मुख्यधारा से जुड़ा रहे। राज्य के नक्शे में मोहला-मानपुर का जिले के रूप में नाम अंकित होते ही यहां एक निजी प्रशासनिक मशीनरी काम करेगी। सीमा को लेकर फिलहाल स्थिति साफ नहीं है। बताया जा रहा है कि  मोहला-मानपुर के साथ चौकी का नाम भी जोड़ा गया है। यानी मोहला-मानपुर और चौकी के रूप में यह जिला प्रशासनिक नक्शे में नजर आएगा।

नक्सल आतंक भी बनी नए जिला की वजह
मोहला-मानपुर सालों से नक्सलियों के चंगुल में रहा है। नक्सल आतंक के कारण भी विकास की धारा  बह नहीं पाई। अफसर नक्सल दहशत का हवाला देकर सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन में हमेशा अड़चने पैदा करते रहे। नक्सली भी मुखर होकर फोर्स और आम लोगों को निशाना बनाकर अपना दबदबा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। 12 जुलाई 2009 की तत्कालीन एसपी विनोद चौबे समेत 29 जवानों की शहादत की घटना के बाद से मोहला-मानपुर वैश्विक मानचित्र में आ गया। इस घटना के बाद नक्सलियों को घेरने का अभियान शुरू हुआ। पुलिस लगभग इलाके को नक्सलियों के गिरफ्त से मुक्त करने के बेहद नजदीक है। बताया जा रहा है कि नक्सलियों की दखल को पुलिस ने लड़ाई के दौरान कमजोर कर दिया है। अब जिला बनने के बाद नक्सल आतंक से मुक्त होने की उम्मीद बढ़ी है।

संघर्ष करती जनता के साथ मैं हमेशा रहूंगी खड़ी-छन्नी
खुज्जी विधायक छन्नी साहू मोहला-मानपुर जिले में चौकी को शामिल किए जाने के बाद सरकार के फैसले के खिलाफ हो रहे जनता के प्रदर्शन में बराबर की भागीदार बन रही है। उनका मत है कि क्षेत्र की जनता उनके लिए सर्वोपरि है। सरकार से उनका कोई विरोध नहंी है। वह इस बात का पूरजोर वकालत कर रही है कि खुज्जी विधानसभा के बाशिंदों की लड़ाई में शामिल होना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है, इसलिए वह जनता के साथ खड़े होकर राज्य सरकार से फैसले पर पुर्नविचार करने की गुहार लगा रही है।

‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते विधायक श्रीमती साहू ने कहा कि मुख्यमंत्री से मिलकर वह पूरी बात रखेंगी। उनका कहना है कि खुज्जी विधानसभा को राजनांदगांव जिले का ही हिस्सा रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यवहारिक रूप से मोहला-मानपुर जिले में शामिल किए जाने का फैसला ठीक नहीं है। उनका यहां तक कहना है कि इस गलती के कारण इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। श्रीमती साहू पर अपने ही सरकार के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने का आरोप लगा है। बताया जा रहा है कि मोहला-मानपुर के बजाय अंबागढ़ चौकी को जिले का दर्जा दिया जाना भौगोलिक और प्रशासनिक कारणों से एक अच्छा निर्णय बन सकता है। इसी मुद्दे पर विधायक का रूख कड़ा हो गया है।


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