रायपुर

मोह के समाप्त होते ही जीव उपाधि नष्ट हो जाती है - इन्दुभवानन्द
19-Oct-2025 6:42 PM
मोह के समाप्त होते ही जीव उपाधि नष्ट हो जाती है - इन्दुभवानन्द

रायपुर, 19 अक्टूबर। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरिया कला रायपुर में चल रहे चातुर्मास प्रवचन माला के क्रम को गति देते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. स्वामी इन्दुभवानन्द तीर्थ महाराज ने

भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी प्रेमांबा के ललिता सहस्रनाम की व्याख्या करते हुए बताया कि राग अथवा मोह के समाप्त हो जाने पर जीव उपाधि नष्ट हो जाती है, और उसको अपने मूल स्वरूप का ज्ञान हो जाने से सच्चिदानंद की अनुभूति हो जाती है।

ब्रह्मांड पुराण में वर्णित ललितोपाख्यान  के अनुसार पराम्बा  भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी एवं भंडासुर के युद्ध के प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी की ओर से युद्ध कर रही 64 करोड़ योगनियों के मध्य में जब भण्डासुर ने विध्नयंत्र का प्रक्षेपण किया तो 64 करोड़ योगनियों अपने आप में परस्पर युद्ध करने लगी इस दृश्य को देखकर भगवती राजराजेश्वरी ने अपने पति महाकामेश्वर  के मुख का अवलोकन किया मुख के देखने मात्र से महागणपति की उत्पत्ति हो गई। महागणपति ने योगिनियों की सेना के मध्य पड़े उसे विध्न यन्न को अपनी शुण्डदंड से खोज कर शत्रु भंडासुर की सेना पर पुन: प्रक्षेपित कर दिया परिणामत: है शत्रु सेना परस्पर युद्ध करने लगी। पराम्बा  भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी ने सहज ढंग से ही भंडासुर पर विजय प्राप्त कर ली। कथा के तत्व के रहस्य को बताते हुए महाराज ने बताया कि भंडासुर जीव भाव कहलाता है यह आठ पुरी के गढ़ में निवास करता है इसे पुर्यष्टक बोलते हैं।


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