मनेन्द्रगढ़-चिरिमिरी-भरतपुर
रिहायशी क्षेत्रों की ओर कर रहे रूख
रंजीत सिंह
मनेन्द्रगढ़, 25 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। हमारे आसपास लगातार जंगल घट रहे हैं और इससे सर्वाधिक प्रभावित वन्य जीव गांव और शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। उनके भोजन और रहवास की दौड़ में सामने आने वाले आम ग्रामीण असमय काल के गाल में समा रहे हैं, उसी समय यह रिपोर्ट आती है कि छत्तीसगढ़ में 664 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ गया है, जो चौंकाने वाला है।
गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य को मिलाकर गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व बनाया गया है, जो देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। इसमें रामगढ़ क्षेत्र के आसपास स्थित दर्जन भर से अधिक गांव बफर जोन में आ गए हैं।
अब आए दिन यहां बाघ की आवक बनी हुई है। बीते दिनों चिरमिरी नगर निगम क्षेत्र से लगे इलाके से एक मादा बाघ को पकडक़र दूसरे जगह भेजा गया है, जिसके गर्भवती होने की सूचना मिली है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि यदि यह क्षेत्र अपने आप में ही सर्वाधिक बड़ा आरक्षित जंगल या कहें रिजर्व फॉरेस्ट है तो फिर गर्भवती बाघिन को दूसरे जंगल में क्यों ले जाने की जरूरत आन पड़ी? बहरहाल यह वन विभाग की समझ की बात है।
फिलहाल इन सबके इतर आप अपने आसपास जंगल जो कभी रहे होंगे उन पर नजर डालें तो फिर शायद कोई और रिपोर्ट देखने की जरूरत नहीं होगी। वनाधिकार कानून को गलत तरीके से परिभाषित कर प्रदेश में वन क्षेत्र में कब्जे को अधिकृत करने और फिर पट्टा बांटने वाली योजना जिस तेजी से लागू की गई उसी तेजी से हमारे वनों का सर्वनाश सुनिश्चित हुआ है। आज शायद ही छत्तीसगढ़ में सरगुजा या बस्तर संभाग में कोई शहर, गांव अछूता हो जहां बंदरों का आतंक न हो। छत्तीसगढ़ में आए दिन मानव हाथी द्वंद में जनहानि हो रही है। वन्य प्राणी जंगलों से निकलकर रहवासी क्षेत्रों में रूख कर रहें हैं। प्रदेश में लगातार वन्य प्राणी हाथी, बाघ, सियार, भालू के हमलों से जन हानियों में इजाफा हुआ है।
मनेन्द्रगढ़ वनमंडल में वर्ष 2023 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो वन्य प्राणियों के हमले से 6 लोगों को असमय काल के गाल में समाना पड़ा है वहीं 19 लोग जख्मी हुए हैं। वहीं वर्ष 2024 में 3 जानें गई हैं तो घायलों की संख्या भी अब तक 16 रही है। आज हालात यह हो चले हैं कि सरगुजा में मानव और हाथी एक दूसरे से लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इससे यदि आंकलन करें तो औसतन हर दिन एक-दो मानव जीवन या हर महीने कम से कम एक हाथी को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ रही है।
वन विभाग हर वर्ष करोड़ों खर्च कर वृक्षारोपण करती है उसके बाद भी जंगलों में वन्य जीवों को आवश्यक भोजन नसीब नहीं होना और रिहायशी इलाकों में उनका प्रवेश विभाग को कई सवालों के कटघरे में खड़ा करता है।


