मनेन्द्रगढ़-चिरिमिरी-भरतपुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
मनेन्द्रगढ़, 17 सितम्बर। हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि इस देश की सांस्कृतिक पहचान भी है। यही कारण है कि ज्यादातर देश राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी भाषा में ही अपने उद्गार व्यक्त करते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री भी हिंदी में ही अपनी बात विदेश के विभिन्न मंचों पर रखते हैं।
उक्त बातें साहित्यकार रमेश सिन्हा ने निदान सभागार मनेंद्रगढ़ में संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान द्वारा हिंदी पखवाड़ा के अंतर्गत 15 सितंबर को भारत के विकास में हिंदी का योगदान विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से कही। उन्होंने कहा कि हिंदी सरल, सहज और मन से निकलने वाली भाषा है। मनेंद्रगढ़ अंचल के साहित्यकारों की पुस्तकों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें खुशी होती है कि हमारे अंचल के साहित्यकारों पर कई शोध हो रहे हैं। यह इस अंचल के साहित्यिक परिवेश का प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है। आईसेक्ट कम्प्यूटर सेंटर के संचालक संजीव सिंह ने कहा कि अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा में हिंदी के प्रति उदासीनता आज चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि आज अंग्रेजी रोजगार की भाषा हो सकती है, लेकिन हिंदी हमारी अपनी पहचान है। वरिष्ठ साहित्यकार बीरेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदी आज विश्व बाजार की भाषा बन चुकी है जो भारत के विकास के लिए एक अच्छा संकेत है। छत्तीसगढ़ में एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में करने के निर्णय का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के ऐसे शब्द जिनका हिंदी रूपांतरण नहीं है, उसे यथावत हिंदी शब्दकोश में शामिल करने से हमारी भाषा का शब्दकोश बढ़ेगा। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में हिंदी माध्यम भारत के विकास में एक सशक्त कदम होगा।
साहित्यकार गौरव अग्रवाल ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि हिंदी को अभी राजभाषा से राष्ट्रभाषा तक का सफर तय करना शेष है। हिंदी की व्याख्याता सुषमा श्रीवास्तव ने कहा कि घर का वातावरण हमारे बच्चों के लिए अच्छी हिंदी की प्रथम पाठशाला है। उन्होंने कहा कि हिंदी के संपूर्ण ज्ञान के बिना अंग्रेजी का ज्ञान अधूरा ही रहेगा।
संबोधन संस्था अध्यक्ष अनिल जैन ने कहा कि हिंदी के विकास पर भारत का विकास टिका है। हिंदी आज शिक्षा से अलग होकर व्यवसाय की भाषा बन चुकी है। यह इस देश को ऊंचाईयों तक ले जाएगी। साहित्यकार एसएस निगम ने कहा कि घर परिवार में हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए मॉम एवं डैड की भाषा से अलग हमें पारिवारिक माहौल में मां एवं पिताजी जैसे शब्दों का प्रयोग करना होगा तभी हम हिंदी भाषा के अपनत्व को पहचान सकेंगे।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में अंचल के रचनाकारों ने अपनी साहित्यिक यात्रा का परिचय कविताओं की प्रस्तुति के साथ दिया। देर शाम तक आयोजित हिंदी दिवस के इस संगोष्ठी में अंचल के साहित्यकार विजय गुप्ता, वर्षा श्रीवास्तव, नरोत्तम शर्मा, पुष्कर तिवारी, नरेंद्र श्रीवास्तव, श्याम सुंदर निगम, पवन श्रीवास्तव एवं रमेश सिन्हा की उपस्थिति ने कार्यक्रम को ऊंचाईयां प्रदान की।