महासमुन्द

मजदूरों का रोजी-रोटी की तलाश में दीगर प्रांत जाना जारी, मतदाता पुनरीक्षण प्रभावित होने की आशंका
16-Nov-2025 5:44 PM
मजदूरों का रोजी-रोटी की तलाश में दीगर प्रांत जाना जारी, मतदाता पुनरीक्षण प्रभावित होने की आशंका

'छत्तीसगढ़Ó संवाददाता
पिथौरा, 16 नवंबर।
क्षेत्र में लगातार हो रहे मजदूरों के पलायन ने नई मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य को प्रभावित करने की आशंका बढ़ा दी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के दौरान बड़ी संख्या में मजदूरों के अन्य राज्यों में जाने से कई लोगों के नाम सूची से छूट सकते हैं।
स्थानीय ग्रामीणों और श्रम विभाग सूत्रों के अनुसार, क्षेत्र से हजारों मजदूरों को विभिन्न राज्यों के ईंट-भ_ों में भेजा जा रहा है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें त्योहारों के बाद एडवांस राशि देकर कर्ज के जाल में फंसाया जाता है, जिसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों के ईंट-भ_ों में भेज दिया जाता है। मजदूरों ने शिकायत की कि भ_ों पर पहुंचने के बाद उनके पहचान पत्र रख लिए जाते हैं, मजदूरी काट ली जाती है और 12 से 14 घंटे तक लगातार काम कराया जाता है। कई मजदूरों को कई महीनों तक घर लौटने की अनुमति भी नहीं मिलती।
श्रम विभाग की कार्रवाई, 13 मजदूर मुक्त
गत दिनों श्रम विभाग की टीम ने कार्रवाई करते हुए 13 मजदूरों को पलायन के दौरान रोका। उन्हें उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में स्थित ईंट-भ_ों में भेजा जा रहा था।  
श्रम उपनिरीक्षक बेलारसन बघेल और उनकी टीम पलायन रोकने की लगातार कोशिशों में जुटी है। सूत्र बताते हैं कि मजदूरों को प्रतिदिन एनएच-53 से गुजरने वाली बसों द्वारा रायपुर भेजा जाता है, जहां से उन्हें ट्रेनों और अन्य साधनों से विभिन्न राज्यों में पहुंचाया जाता है।
मजदूरों के शोषण का आरोप
एक मजदूर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि—हमें पहले हजारों रुपये एडवांस के रूप में दिए जाते हैं। बाद में भ_ों में काम के दौरान मजदूरी से ज्यादा राशि दलालों को कमीशन के रूप में चली जाती है।
मजदूरों ने दावा किया कि उन्हें 500 से 700 रुपये प्रति हजार ईंट बनाने का भुगतान मिलता है, जबकि इससे अधिक राशि दलालों द्वारा कमीशन के रूप में ले ली जाती है।
दलालों की बढ़ती संपत्ति,
 निगरानी का अभाव
स्थानीय जानकारों का कहना है कि मजदूरों को ईंट-भ_ों में भेजने का कारोबार बड़े उद्योग की तरह फैल चुका है। मजदूरों के अनुसार भ_ा मालिक दलालों को प्रति हजार ईंट पर 1,000 रुपये तक का भुगतान करते हैं, जिसमें से बड़ी राशि सीधी दलालों के पास पहुँचती है। अनुमान है कि एक वर्ष में भेजे गए मजदूर लगभग एक करोड़ ईंट का उत्पादन करते हैं, जिसका कमीशन करोड़ों रुपये तक पहुँच जाता है। हालांकि दलालों की बढ़ती संपत्ति की कोई जांच नहीं की जा रही है, जिसके कारण इस अवैध गतिविधि पर रोक लगाने में कठिनाई हो रही है।
ज्ञात हो कि प्रशासन द्वारा की जा रही कार्रवाई के बावजूद मजदूरों का पलायन थम नहीं रहा है। कई मामलों में मुख्य दलालों पर कार्रवाई करने के बजाय उनके सहयोगियों पर कार्रवाई कर मामला समाप्त कर दिया जाता है। श्रम विभाग ने मुख्य आरोपियों तक पहुंचने की आवश्यकता पर बल दिया है।


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