महासमुन्द

5 साल होते ही स्कूल भेजने के बजाय काम सीखाते हैं खानाबदोश लोहार
11-Dec-2021 4:01 PM
5 साल होते ही स्कूल भेजने के बजाय काम सीखाते हैं खानाबदोश लोहार

एमपी से परिवार समेत आए, इनकी छत एक मच्छरदानी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पिथौरा, 11 दिसंबर।
नगर में इन दिनों पांच डेरों के 12 मासूम बच्चों सहित करीब 35 लोग लोहारी का काम करते दिन भर जी जान से जुट कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। खानाबदोश का जीवन जीने वाले लोहार जाति के लोग बच्चों को 5 साल का होते ही उसे स्कूल भेजने की बजाय उससे भ_ी पम्प चलाने या हथौड़ा (घन) चलाने का प्रशिक्षण देते हैं।
नगर के खेल मैदान के पास इन दिनों रात में खुले आसमान के नीचे कडक़ड़ाती ठंड में दर्जन भर मच्छरदानी के नीचे ये लोग सोते नजर आते हैं। सुबह होते ही इन डेरों की महिलाएं डेरे के सामने ही घरेलू एवम कृषि उपयोगी लोहे की वस्तुएं बेचते नजर आती हैं। इनके मासूम बच्चे भ_ी में हवा पहुंचाने वाला पंखा चलाते दिखते हैं, वहीं 10 साल एवम इसके ऊपर के बच्चे काफी कुशलता से भारी भरकम हथौड़ा (घन) चलाते दिखते हैं। इनमें भी लड़कियों की संख्या अधिक हैं। जबकि डेरे के युवा एवं बुजुर्ग लोहे को गरम कर उसे औजार की शक्ल देते दिखाई पड़ जाते हैं।

बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते-रणवीर लोहार
एक ओर पूरे देश में साक्षरता के साथ पढ़ाई लिखाई के लिए लोग अपनी जमा पूँजी भी कुर्बान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के सागर जिले के कटंगी के निवासी रणवीर बताते हंै कि वे लोग पूरे वर्ष भर एक स्थान से दूसरे स्थान में डेरा लगाकर लोहे की कुल्हाड़ी, पौसुल, हसिया, कुदाली, छुरे बना कर बेचते हैं। सभी समान 200 से 400 रुपये की दर पर बिकते हंै जिससे उनका रास्ते का खर्च एवं जीवन यापन चल जाता है।

बच्चों की पढ़ाई के संबंध में रणवीर ने बताया कि उन्हें पढ़ाई में थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं है लिहाजा उनके बच्चे कभी भी स्कूल नहीं गए। उनसे ‘छत्तीसगढ़’ ने जब यह पूछा कि उनके बच्चों को आपके डेरे वाले शहर के किसी आंगनबाड़ी या स्कूल में पढऩे की इजाजत मिल जाये तो क्या वे बच्चों को भेजेंगे? इस सवाल पर उसने स्पष्ट कहा कि बच्चे स्कूल जाएंगे तो काम कैसे कर पाएंगे। घन बच्चे ही चलाते हैं।ं

एमपी सरकार चावल देती है
डेरे के लोगों ने बताया कि वे साल में एक बार अपने गांव जरूर जाते हैं। उनके गांव में उनका राशनकार्ड है। जिसमें उन्हें साल भर का 5 किलो प्रति माह प्रति व्यक्ति चावल मिल जाता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश सरकार प्रति माह वृद्ध सदस्यों को 600 रुपये प्रतिमाह पेंशन भी देती है, जिससे घर में छूटे लोगो का खर्च निकलता रहता है। वैसे लॉकडाउन के बाद से इन परिवारों पर आफत आयी हुई है। इनका कहना है कि खाने के समान में बेतहाशा मूल्य वृद्धि और अब हस्त निर्मित कृषि औजार हो या घर की गृहणी हेतु लोहे के औजार हो। इन सभी किस्म के औजारों की बिक्री काफी कम हो गयी है क्योंकि महंगाई का असर इस मेहनत वाले व्यवसाय पर भी पड़ा है।

कडक़ड़ाती ठंड में एक कम्बल का सहारा
अपना घर होते हुए भी सालों साल से खानाबदोश का जीवन जी रहे उक्त लोहार परिवार के सदस्य चाहे वह नवजात शिशु हो, गर्भवती महिला हो या बुजुर्ग सभी दिन भर तो आसपास घूम कर बिता लेते है, परन्तु बरसात की काली डरावनी रात हो या कपकपाती ठंड की रात हो इन्हें खुले आसमान के नीचे ही गुजर बसर करनी पड़ती है। इनकी छत एक मच्छरदानी ही होती है।
 


अन्य पोस्ट