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नेहरू से मिला गांव का नाम, चीन से खूनी झड़प के बाद बदलने की तैयारी
25-Jun-2020 4:10 PM
नेहरू से मिला गांव का नाम, चीन से खूनी झड़प के बाद बदलने की तैयारी

पथनमथिट्टा, 25 जून । भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का सालों पहले दिया गया एक कॉम्प्लिमेंट केरल के पथनमथिट्टा जिले के गांव का नाम बन गया। अब यह नाम गांव के लोगों के लिए शर्मिंदगी का मामला बन गया है। 

लद्दाख के गलवान घाटी में हाल ही में सीमा विवाद को लेकर भारत-चीन की झड़प और 20 भारतीय जवानों की शहादत के बाद स्थानीय लोग अपने गांव का नाम बदलना चाहते हैं। इसे लेकर गांव के जिम्मेदार लोगों ने एक प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है।

मामला ऐसा है कि साल 1952 में जब देश में पहले आम चुनाव हो रहे थे, तब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू केरल में प्रचार के लिए आए थे। इस दौरान वह पथनमथिट्टा जिले में एक इलाके से खुली जीप में गुजर रहे थे। चारों तरफ सड़कों और लोगों के घरों पर कांग्रेस के झंडे लगे हुए थे। नेहरू तभी एक ऐसे इलाके में पहुंचे, जहां कांग्रेसी झंडे नहीं बल्कि केवल लाल झंडे दिखने लगे। यह कम्युनिस्ट बहुल इलाका था।

नाम बदलने पर चर्चा

नेहरू ने यह देखकर अपने बगल में बैठे शख्स से पूछा, क्या यह चीन जंक्शन है। इसके बाद से ही उस इलाके का नाम चीनी मुक्कू पड़ गया। पथनमथिट्टा जिले के कोन्नी से कांग्रेस सांसद अदूर प्रकाश ने यह किस्सा बताया। इलाके के नाम से चीन जुड़ा होने पर लोग सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। सीमा पर पड़ोसी देश के साथ तनाव के बाद से ही गांव का नाम बदलने को लेकर चर्चा चल रही है। पंचायत समिति के वाइस चेयरमैन प्रवीन ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह नाम बदल ही देना चाहिए।

पंचायत अध्यक्ष को भेजा नोटिस

प्रवीन ने इस मद्देनजर पंचायत समिति को एक नोटिस दिया है, जिसमें गांव का नाम बदलने के लिए रिजॉल्युशन लाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में खूनी संघर्ष के बाद गांव के लोग यह नाम नहीं लेना चाहते। वह इसे बदलना चाहते हैं। बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि यह नाम चीन से ज्यादा जवाहर लाल नेहरू से संबंधित है। हालांकि, पंचायत के रिजॉल्युशन पास करने के बाद भी गांव का नाम बदलने का आखिरी फैसला राज्य सरकार को लेना होगा।

गांव का अभी तक कोई वैकल्पिक नाम नहीं चुना गया है। पंचायत पैनल में कांग्रेसनीत यूडीएफ का बहुमत है। 18 में से 13 सदस्य यूडीएफ के हैं जबकि बाकी पांच एलडीएफ के सदस्य हैं।  (navbharattimes.indiatimes.com)


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