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'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 25 जून। लॉ कॉलेज के पूर्व विद्यार्थियों की मदद से फ्लाइट से गुरूवार को बैंगलुरू से छत्तीसगढ़ के 33 मजदूर की प्रदेश वापसी हो रही है। ये वह मजदूर हैं जो गुजर बसर की खातिर गांव में कभी हल चलाते हैं तो कभी दूसरे प्रदेश के शहरों में जाकर मजदूरी करते हैं। गांव शहर के बीच बंटी जिंदगी के साथ-साथ इनका परिवार भी बंटा रहता है। गांव में अपने बच्चों को मां-बाप के सुपुर्द कर कुछ कामगार जहां शहर कमाने खाने निकल जाते हैं वहीं कुछ मजदूर परिवार सहित रोजी मजदूरी करने निकल जाते हैं। गुजर बसर की जद्दोजगद के बीच मजदूरों के बच्चों की पढ़ाई अक्सर पीछे छूट जाती है।
बैंगलुरू से राजधानी रायपुर के लिए रवाना हो रहे कुछ मजदूरों ने फोन पर अपने हालात 'छत्तीसगढ़' से साझा किए।
बलौदाबाजार जिले के बिलाईगढ़ के युवक तुषार चौहान बैंगलुरू के निकट मुर्गीफार्म में काम कर रहे थे। तुषार ने बताया कि पिता की तबियत खराब होने के कारण आठवीं के बाद वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। पैसों की कमी से जूझ रहे परिवार को उबारने के लिए 16-17 साल की उम्र में ही मजदूरी करने लगे। तीन साल से मुर्गीफार्म में नौकरी करते हुए परिवार की मदद कर रहे थे लेकिन लॉकडाउन में काम बंद हो गया और पैसों के लाले पड़ गए ऐसे में उन्हें मजबूरन गांव वापसी करनी पड़ रही है।
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जांजगीर-चांपा जिले के बिर्रा गांव के संतोष सारथी बैंगलुरू के पास निर्माणाधीन कंपनी में मिस्त्री का काम कर रहे थे। उनकी पत्नी भी उनके साथ मजदूरी की रोटी के बंदोबस्त में बच्चों की पढ़ाई पीछे छूट गई। संतोष ने बताया तीन सालों से उनकी जिंदगी गांव और शहर के बीच बंटी हुई है। मां, पिताजी गांव में है। खेती किसानी के समय वह गांव चले जाते हैं और काम पूरा होने पर मजदूरी करने शहर चले जाते हैं।
संतोष ने बताया कि गांव में अधिया में खेती करते हैं। खेती किसानी के बाद रोजगार न मिलने के कारण मां-बाप को गांव में छोड़कर वह परिवार सहित शहर चले जाते हैं। जांजगीर-चांपा जिले के हरवी गांव के आशीष सारथी मां के साथ लामा कैंप हंसूर मजदूरी करने बैंगलुरू गए थे। उन्होंने बताया कि चाचा बलिराम से उन्हें बैंगलुरू से छत्तीसगढ़ वापसी के लिए फ्लाइट के बंदोबस्त का पता चला।
बलीराम सारथी ने बताया कि विगत तीन सालों से रोजी-रोटी की खातिर वह गांव से शहर जाते हैं। लामा कैंप में मिस्त्री का काम करते हुए गांव की तुलना में उन्हें बेहतर रोजी मिल रही थी लेकिन लॉकडाउन के कारण वह अचानक बेरोजगार हो गए। बलीराम कहते हैं मां-पिताजी, भैया-भाभी गांव में रहते हैं। गरीबी के कारण आठवीं के बाद मजदूरी करने लगा। रोजी मजदूर करके पक्का मकान बनवा लिया हूं। गांव में काम नहीं मिलता है इसलिए दूसरे देश कमाने जाना पड़ता है।
शिवरीनारायण के होरीलाल सारथी मैसूर से आगे कंस्ट्रक्शन कंपनी में मजदूरी कर रहे थे। लॉकडाउन के कारण गांव में रह रहे मां, बाप, पत्नी बच्चे सब परेशान थे। होरीलाल कहते हैं छत्तीसगढ़ वापसी की कोशिश में लगे थे। पता चला कि कुछ लोग हमारी छत्तीसगढ़ वापसी में मदद कर रहे हैं।