ताजा खबर

'छत्तीसगढ़' संवाददाता
विश्रामपुरी, 24 जून। बोड़ा जंगलों में मिलने वाला एक ऐसा सब्जी है, जिसके लिए लोगों को मानसून का इंतजार करना पड़ता है वह भी मानसून के शुरुआती दिनों में ही होता है। इस वर्ष बोड़ा की उपज बेहद कम दिखाई दे रही है, जिससे बोड़ा का दाम आसमान छू रहा है। इस वर्ष इसका दाम डेढ़ से 2 हजार रुपए प्रति किलो तक चल रहा है।
बोड़ा एक प्रकार का मशरूम है जो साल के जंगलों में जमीन से गांठ के रूप में निकलता है। जब जमीन में बोड़ा निकलता है तो वहां दरार पड़े मिट्टी को खिसका कर ग्रामीण बोड़ा को एकत्र करते हैं।
कोंडागांव का बोड़ा पहुंचता है अन्य प्रांतों तक
बस्तर को साल का द्वीप कहा जाता है। संपूर्ण बस्तर साल के पेड़ों से आच्छादित है, इन्हीं साल के पेड़ के नीचे जमीन पर बोड़ा की उपज होती है। बस्तर संभाग में हाट बाजारों में आजकल बोड़ा देखने को मिलता है किंतु कोंडागांव जिले की बोड़े की मांग अधिक होती है।
कोंडागांव जिले की बोड़ा की मांग राजधानी रायपुर से लेकर ओडिशा, तेलंगाना एवं अन्य प्रांतों तक होती है। जिले में जो बोड़ा निकलता है वह बड़ा आकार तथा अधिक स्वादिष्ट होता है जिससे जिले के बोड़ा की मांग सर्वाधिक होती है। शुरुआत में बोड़ा की कीमत सबसे ज्यादा होती है किंतु जैसे-जैसे बाजार में बोड़ा की आवक बढ़ती जाती है दाम भी गिरता जाता है।
गरीबों के रसोई तक नहीं पहुंच पा रहा बोड़ा
इस समय बोड़ा का रेट 15 सौ से 2 हजार रूपये तक प्रति किलो चल रहा है। ग्रामीण बोड़ा किलोग्राम पर बेचने के बजाय पायली एवं सोली पर बेचना पसंद करते हैं। इस वर्ष दाम अधिक होने से बोड़ा गरीबों की पहुंच से दूर होता दिखाई दे रहा है। इस समय बोड़ा पायली अथवा किलो में 15 सौ से 2 हजार रूपये तक तथा सोली में 4 सौ-5 सौ रुपये तक बिक रहा है। इस वर्ष दाम अधिक होने से यह गरीबों की रसोई तक नहीं पहुंच पा रहा है।
रिटायर्ड रेंजर केशकाल आर एस वेदव्यास ने बताया कि साल के वनों में गिरे पड़े पत्तों पर आग लगाने से बोड़ा की फसल अधिक होती है क्योंकि इससे जंगल में गिरे पड़े पत्ते एवं डालियां साफ हो जाती हैं जो कि बोड़ा को जमीन से निकलने में सहायक होता है। इस वर्ष जिले में मानसून के पूर्व भी लगातार बारिश हो रही थी। इसी अनियमित बारिश के चलते बोड़ा की फसल पहले ही बर्बाद हुई है, जिसके चलते इस वर्ष काफी कम मात्रा में बोड़ा जंगलों में निकल पाएगा।