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छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 27 दिसंबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सेवा कर रिफंड को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि यदि किसी मामले में सेवा कर की कोई देयता बनती ही नहीं है, तो जांच के दौरान जमा कराई गई राशि करदाता को लौटाना अनिवार्य है। इसी टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने सेवा कर रिफंड का आदेश दिया है।
यह फैसला करदाता दीपक पांडेय द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया। हाईकोर्ट ने सेवा कर अपील स्वीकार करते हुए विभाग और सीमा शुल्क, उत्पाद एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेशों को निरस्त कर दिया। विभाग और ट्रिब्यूनल ने वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 102(3) के तहत समय-सीमा समाप्त होने का हवाला देते हुए रिफंड का दावा खारिज कर दिया था।
मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने की। याचिका उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें सेवा कर जांच के दौरान जमा कराए गए 14.89 लाख रुपए लौटाने से इनकार किया गया था।
करदाता ने अदालत को बताया कि वह पंजीकृत सेवा कर प्रदाता है। विभाग ने मल्टी-लेवल पार्किंग प्रोजेक्ट को लेकर सेवा कर देयता का आरोप लगाते हुए उन्हें समन जारी किया था। जांच के दौरान करदाता ने 14.89 लाख रुपए जमा कराए थे।
बाद में रायपुर नगर निगम ने स्पष्ट किया कि यह पार्किंग सुविधा जनहित के लिए है और इसका कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा रहा है। इस स्पष्टीकरण के बाद विभाग ने जांच बंद कर दी और यह माना कि इस प्रकरण में कोई सेवा कर देयता बनती ही नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब विभाग स्वयं यह मान चुका है कि सेवा कर देय नहीं है, तो जांच के दौरान जमा कराई गई राशि को रोकने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसे में करदाता को रिफंड देना ही न्यायसंगत है।


