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विपक्ष ईवीएम में धांधली की बात कहता है, फिर चुनाव भी लड़ता है - प्रशांत किशोर
23-Nov-2025 7:50 PM
विपक्ष ईवीएम में धांधली की बात कहता है, फिर चुनाव भी लड़ता है - प्रशांत किशोर

बिहार विधानसभा चुनाव में जिस एक नाम की ख़ूब चर्चा हुई वो है- प्रशांत किशोर.

जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन उन्हें एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. वहीं एनडीए ने 202 सीटें जीतकर बहुमत से सरकार बना ली.

पार्टी को वोटिंग से पहले ही झटके लगना शुरू हो गए थे. कई उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इससे प्रशांत किशोर के लिए हालात असहज दिखने लगे.

बीबीसी न्यूज़ हिन्दी के कार्यक्रम 'द लेंस' में प्रशांत किशोर ने कहा था कि उनकी पार्टी 'या तो अर्श पर होगी या फ़र्श पर होगी.' उन्होंने इसमें अपनी पार्टी के लिए 10 से भी कम सीटें या 170 से ज़्यादा सीटें जीतने का दावा किया था.

नतीजे आए तो उनकी यह भविष्यवाणी कुछ हद तक सच साबित हो गई. उनकी पार्टी 5 फ़ीसदी वोट तक हासिल नहीं कर पाई.

बीबीसी हिंदी के संपादक नितिन श्रीवास्तव ने प्रशांत किशोर के साथ पार्टी की हार की वजहों पर बात की.

बातचीत के दौरान प्रशांत किशोर ने ये भी बताया कि अब वो आगे क्या करने की योजना बना रहे हैं?

प्रशांत किशोर ने बीते वक़्त में बिहार में लंबी पदयात्रा की और घर-घर जाकर लोगों से संपर्क साधा था. उनका कहना था कि बिहार की जनता से मिलकर ज़मीनी हक़ीक़त जानने और बिहार के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार करने के लिए पदयात्रा ज़रूरी थी.

लेकिन इसके बाद भी पार्टी विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खोल सकी.

इस बारे में प्रशांत किशोर कहते हैं, "अगर आप चुनाव के नज़रिए से देखेंगे तो बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है लेकिन समाज और राजनीति के नज़रिए से समझेंगे तो बहुत कुछ हासिल हुआ है."

जन सुराज के संस्थापक कहते हैं, "हमारा मानना था कि तीन साल की कोशिश के बाद बिहार में एक इलेक्टोरल शिफ़्ट दिखेगा, एक नया विकल्प दिखेगा. लेकिन वो नहीं हुआ."

हाल में संपन्न हुए चुनाव में जन सुराज को राज्य में रजिस्टर्ड क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर पहचान के लिए ज़रूरी छह फ़ीसदी वोट तक नहीं मिल सके.

हालांकि प्रशांत किशोर कहते हैं कि पार्टी की सीमित ही सही, लेकिन कुछ उपलब्धियां भी हैं.

वो गिनवाते हुए कहते हैं, "जिस तरह से बिहार में पिछले 30-35 सालों से जाति की राजनीति होती दिखती रही है, वैसा इस बार नहीं दिखा. पहली बार हिंदू-मुसलमान के नाम पर चुनाव नहीं लड़ा गया. जाति और धर्म का प्रभाव तो रहा लेकिन जिस तरह चुनाव इन मुद्दों पर होता था, वो नहीं हुआ. पहली बार पक्ष और विपक्ष दोनों ही ख़ेमे रोज़गार और पलायन जैसे मुद्दों पर बात करने को मजबूर हुए हैं. पलायन पहली बार बिहार में एक मुद्दा बना."

हार के लिए कौन से फ़ैक्टर ज़िम्मेदार रहे?
प्रशांत किशोर कहते हैं कि "जंगलराज के डर से जेडीयू-बीजेपी और बीजेपी के डर से लालू को वोट देने की प्रक्रिया को हम नहीं तोड़ पाए हैं. वही सब कहीं न कहीं परिणामों में भी दिखा."

इस बार के चुनावों में एनडीए ने 'जंगलराज' को बड़ा मुद्दा बनाया था.

ख़ुद पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि बिहार को जंगलराज नहीं चाहिए. वहीं एक अन्य रैली में उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार ने जंगलराज को सुशासन के दौर में बदला है.

इस बार ये भी देखा गया कि दूसरे राज्यों में रहने वाले कई लोग छठ से अधिक चुनाव में हिस्सा लेने के लिए आए थे. जानकार इसे अलग-अलग तरीक़े से देख रहे थे. लेकिन वोट शेयर को देखें तो क्या ये लोग एनडीए को वोट देने आए थे.

प्रशांत किशोर कहते हैं, "महागठबंधन का वोट शेयर जितना था, वो उतना ही बना हुआ है. ऐसा लोग मानते हैं कि बाहर से आया वोट एनडीए को मिला है. एनडीए और जन सुराज को मिला कुछ वोट पलायन से प्रभावित लोगों का रहा है. लेकिन इसमें भी दो बातें हैं, जो लोग आए वो ये सोचकर आए थे कि जन सुराज को वोट देना है और कुछ ने दिया भी."

"लेकिन एक वर्ग था जिसने आकर अपने घर में देखा कि घर की महिलाओं को दस-दस हज़ार रुपये कैश में मिले हैं. उन्होंने परिवार के प्रभाव में वोट दिया."

प्रशांत किशोर कहते हैं कि "ऐसा लग रहा है कि बाहर से आए जिन लोगों को ये लगने लगा कि जन सुराज नहीं जीत रही, उनका वोट एनडीए में शिफ़्ट हो गया."

पार्टी महिला, युवा, माइग्रेंट को अपना वोटर मानकर चल रही थी. प्रशांत मानते हैं कि उनका वोट पार्टी को नहीं मिल सका.

प्रशांत किशोर कहते हैं कि "जो नया वोट पड़ा है वो जन सुराज और एनडीए के बीच बंटा है. साढ़े तीन फ़ीसदी के आसपास हमें मिला, जबकि सात-आठ फ़ीसदी एनडीए को गया है."

मुफ़्त की रेवड़ी और चुनाव
भारतीय राजनीति में मुफ़्त की रेवड़ी का कॉन्सेप्ट नया नहीं है. जयललिता के वक़्त में सिलाई मशीनें दी जाती थीं. उससे पहले डीएमके के अन्नादुरई ने जीतने पर साढ़े चार किलो चावल एक रुपये में देने की बात की थी.

इसके अलावा साइकिल, मिक्सर ग्राइन्डर कलर टीवी, लैपटॉप, फ़ोन, मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी और सस्ते में चावल के वादे भी किए जाते रहे हैं. हाल के वक़्त में कैश ट्रांसफ़र भी इस लिस्ट में आ गया है.

प्रशांत किशोर से एक सवाल ये पूछा गया कि क्या बिहार चुनाव में उनकी पार्टी इस तरह की रेवड़ी का मुक़ाबला नहीं कर सकी.

इसके जवाब में जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर कहते हैं, "यहां बात दस हज़ार रुपये की नहीं है, दो लाख रुपये की है. जो कहा गया वो ये था कि आपको स्वरोज़गार के लिए दो लाख रुपये मिलने हैं और अभी दस हज़ार मिल रहा है, जैसे ही एनडीए की सरकार आएगी, आपको दो लाख तक की सहायता मिलेगी."

उन्होंने कहा, "यहां लालच है दो लाख रुपये का. लालच शायद अपने पैरों पर खड़े होने की इच्छा का है."

साथ ही उन्होंने दावा किया कि चुनाव में सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं की मदद भी ली गई है.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "दो लाख से अधिक जीविका दीदी, आंगनवाड़ी, ममता दीदी, आशा दीदी, टोला सेवक, विकास मित्र को एक बार पैसा दिया गया. उन्हें ये ज़िम्मेदारी दी गई कि जिन महिलाओं को पैसा मिला है, उन्हें लाकर वोट दिलवाना है. ये इसका असर है."

वो कहते हैं, "इसे बिहार के परिणाम के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. अगर ये व्यवस्था आगे भी जारी रखी गई तो ये लोकतंत्र के लिए बड़ा ख़तरा है."

उनका कहना है कि बिहार में आचार संहिता लागू होने के दौरान महिलाओं को पैसे दिए गए हैं."

प्रशांत किशोर से एक सवाल ये पूछा गया कि बिहार में आरजेडी, कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल भी चुनाव लड़ रहे थे, वे दल इस तरह के आरोप लेकर बाहर क्यों नहीं निकल रहे हैं.

प्रशांत किशोर कहते हैं, "हर दल का राजनीति करने का अपना एक तरीक़ा है. दूसरी पार्टियां चुनाव के वक्त सक्रिय होती हैं, फिर उतनी सक्रिय नहीं रहतीं. ज़रूरत है कि जिन बातों को लेकर चुनाव के दौरान आपको शिकायत है, उन बातों पर लड़ाई लड़ी जाए."

वो समझाते हैं, "अगर हम चुनाव आयोग और ईवीएम को लेकर आरोप लगाते हैं तो ये कहते रहने से नहीं होगा. इस पर व्यापक जन आंदोलन करने की ज़रूरत है. कई पार्टियां इस पर बात कर रही हैं. ज़रूरत है कि वो ज़मीन पर आएं, साथ आएं और कहें कि चुनाव तभी करेंगे जब आप बैलट पेपर से कराएंगे."

विपक्ष के लिए प्रशांत किशोर कहते हैं, "एक ओर आप कह रहे हैं कि ईवीएम में धांधली हो रही है और दूसरी ओर उसी ईवीएम से आप चुनाव लड़ते जा रहे है. ये नहीं चल सकता."

प्रशांत किशोर ने कहा कि जन सुराज की मूल सोच ये है कि जब तक समाज में सुधार नहीं होगा तब तक सुधार नहीं हो सकता है.

उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने घोषणा की कि हम वापस समाज में जाएंगे. हम उन महिलाओं से मिलेंगे जिन्हें दस हज़ार रुपये दिए गए हैं. हम उनसे कहेंगे कि सरकार आपको दो लाख रुपये नहीं दे सकती है. सरकार की जवाबदेही तय होनी चाहिए."

लेकिन फिर सवाल ये है कि क्या गारंटी है कि ये डेढ़ करोड़ महिलाएं प्रशांत किशोर की बात सुनेंगी, ख़ासकर तब जब वो चुनाव जीत नहीं सके?

इस पर प्रशांत किशोर का कहना था, "न तो मैंने कोई ग़लत बात की है और न ही वोट न मिलना कोई गुनाह है. हमारी कोशिशों में कमी हो सकती है. इसलिए हम लोगों के पास जाएंगे और उन्हें जागरूक करेंगे. हम लोग दो लाख रुपये पाने में महिलाओं की मदद करेंगे."

प्रशांत किशोर ने कहा कि वो संगठन को फिर से पुनर्गठित करेंगे और उसे हर स्तर पर फिर से सक्रिय करेंगे.

उन्होंने कहा, "दो साल से अधिक का कार्यक्रम बनाकर 15 अगस्त से बिहार के गांव-गांव जाएंगे और लोगों के साथ समय बिताएंगे."

प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है. लेकिन क्या इस बार चुनाव से पहले के माहौल का आकलन करने में उनसे ग़लती हुई है?

प्रशांत किशोर इससे इनकार करते हैं. वो कहते हैं, "ऐसा नहीं है. नीतीश कुमार और जेडीयू की पॉपुलैरिटी को देखते हुए उन्हें 25 सीटें ही आनी चाहिए थीं. लेकिन उन्होंने किसी और के सहारे अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है."

वो कहते हैं, "लोग मेरे बारे में ये कह सकते हैं कि हमने चुनाव नहीं जीता या हम हार गए लेकिन कोई ये नहीं कहेगा कि हमने कोशिश नहीं की. ये ठीक है कि आज जन सुराज को धक्का लगा है लेकिन अगर हम इसी रास्ते पर बने रहे तो आख़िर में जीत हमारी होगी."

प्रशांत किशोर कहते हैं कि उनके लिए ये चुनावी हार एक सीख है.

वो कहते हैं, "शायद मुझे ऊपरवाले ने कहा है कि तुम्हें हार नहीं माननी है और बिहार को सुधारने की ज़िद नहीं छोड़नी है."

इस बात से प्रशांत किशोर इनकार नहीं करते. हालांकि वो कहते हैं कि ये उनके लिए आत्मचिंतन और ख़ुद को बेहतर बनाने का वक्त है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, "चुनाव से डेढ़-दो साल पहले मैंने कहा था कि जन सुराज या तो 10 से कम सीट हासिल करेगी या फिर 150 से अधिक सीटें मिलेंगी. मैंने इसका कारण भी स्पष्ट किया था. बिहार में 25-30 साल की जो नाउम्मीदी है उससे बाहर निकलने के लिए लोगों को भरोसा करके कदम उठाना था, वो नहीं कर पाए. उन्होंने जो सुना उन्हें वो तो अच्छा लगा लेकिन आख़िर में बटन दबाने के लिए जो भरोसा चाहिए, लोग वो भरोसा नहीं ला सके."

चुनाव में बड़ी हार के बाद एक चुनाव विश्लेषक का ये कहना था कि कि प्रशांत किशोर दो जगहों पर ग़लती कर गए.

पहला, ये कि उन्होंने संगठन पर ध्यान नहीं दिया और दूसरा ये कि, उन्होंने तनख़्वाह पाने वाले राजनीतिक कर्मी के ज़रिए काम किया, जिसके लिए बिहार तैयार नहीं है.

इसके उत्तर में प्रशांत किशोर ने कहा, "जब आप जीतते हैं तो जीतने के सौ कारण बताए जाते हैं, वहीं हारने वाले के लिए भी कई बातें की जाती हैं, लेकिन सत्य कहीं इन दोनों के बीच है."

वो कहते हैं, "नीतीश मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन सीएम विदआउट पोर्टफ़ोलियो हो गए हैं. जेडीयू को बड़ी सफलता मिली लेकिन सरकार में बराबरी का दर्जा नहीं मिला है. भीड़ को हम वोट में नहीं बदल पाए इस ग़लती पर हम काम करेंगे. लेकिन आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि भीड़ आई थी."

नीतीश हमेशा से गृह विभाग अपने पास रखते आए हैं, लेकिन पिछले दो दशक में पहली बार ऐसा हुआ, जब बिहार का गृह विभाग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास नहीं है. ये विभाग बीजेपी के सम्राट चौधरी को मिला है.

इसे एनडीए के भीतर एक अहम बदलाव तो माना ही जा रहा है, साथ ही नीतीश के लिए बड़ा धक्का माना जा रहा है.

हालांकि जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी से कहा कि "इस क़दम के अधिक मायने निकालने की ज़रूरत नहीं है. कोई भी विभाग किसी के पास क्यों न हो सरकार में सभी फ़ैसले सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लिए जाएंगे."

हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब सामान्य प्रशासन, सतर्कता (विजिलेंस), कैबिनेट सचिवालय, निर्वाचन विभाग और अन्य ऐसे विभाग अपने पास रखेंगे जो गै़र-आवंटित हैं.

प्रशांत किशोर 2.0 क्या होगा?
इस सवाल के उत्तर में प्रशांत किशोर ने कहा, "इस पर चर्चा शुरू हो रही है और आने वाले एक-डेढ़ महीने में आपको पार्टी में बड़ा फ़ेरबदल देखने को मिलेगा. ओनरशिप को निचले स्तर तक लाया जाएगा."

वो कहते हैं कि "एक-डेढ़ साल में संगठन के लोगों में इंस्टीट्यूशनल और वैचारिक जड़ें उतनी मज़बूत नहीं हो सकीं जितनी होनी चाहिए."

इसके साथ-साथ प्रशांत किशोर ने कहा कि "निजी तौर पर भी ये हार मेरे लिए बड़ा झटका है और मुझ पर इसका असर भी पड़ा है क्योंकि मैंने अपना सब कुछ बिहार में झोंक दिया है. ये किसी परीक्षा के लिए पूरी तैयारी करके भी हार जाना है."

उन्होंने कहा, "लेकिन अब ये मुझ पर है कि मैं उस दर्द को लेकर रोता रहूं या फिर उससे सीख कर आगे बढूं. मैंने आगे के बारे में सोचना शुरू किया है."

उन्होंने कहा कि इस हार के बाद एक बार भी उनके मन में ये विचार नहीं आया कि वो राजनीति छोड़ दें.

उन्होंने कहा, "मैं समझता हूं कि इससे पहले जब मैं जीता था (चुनाव रणनीतिकार के रूप में) तो जो हारा था उसे भी उतना ही दुख हुआ होगा. आज मेरी बारी है और मुझे ये सहना होगा. यह जीवन का हिस्सा है." (bbc.com/hindi)


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