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नवविवाहिता की मौत के मामले में हाईकोर्ट का अहम फैसला, सास की जमानत रद्द कर सरेंडर का आदेश
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 31 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नवविवाहिता की संदिग्ध मौत से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया है कि किसी आरोपी को एक साथ हत्या (धारा 302) और दहेज हत्या (धारा 304-बी) दोनों अपराधों में दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि ये दोनों धाराएं भिन्न प्रकृति की हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि मामले में दहेज मृत्यु से संबंधित शर्तें पूरी होती हैं, तो उसे दहेज हत्या की श्रेणी में ही माना जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय उस अपील पर सुनाया, जिसमें पति, सास और नाना ससुर ने सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को चुनौती दी थी। सत्र न्यायालय ने तीनों को धारा 302 (हत्या) और 304-बी (दहेज हत्या) दोनों के तहत दोषी ठहराया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि केस के रिकॉर्ड और साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि मृतका की मौत दहेज उत्पीड़न के कारण हुई थी, इसलिए यह मामला धारा 304-बी (दहेज हत्या) के तहत आता है। जबकि हत्या (धारा 302/34) के तहत दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद नहीं हैं। इस आधार पर अदालत ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पति दीपक राठौर और सास ईश्वरी बाई राठौर की दहेज हत्या की सजा को बरकरार रखा, लेकिन हत्या की सजा को निरस्त कर दिया।
कोर्ट ने आरोपी सास ईश्वरी बाई की जमानत रद्द कर उसे न्यायालय में सरेंडर करने और सजा पूरी करने के निर्देश दिए। अपील के दौरान नाना ससुर मनहरण लाल राठौर की मृत्यु हो जाने से उनका नाम अपील से हटा दिया गया।
मामला सरगांव निवासी दिलीप राठौर की बहन प्रांजल राठौर की मौत का है, जिसकी शादी 26 अप्रैल 2020 को मस्तूरी क्षेत्र के ग्राम गतौरा निवासी दीपक राठौर से हुई थी। शादी के सात माह बाद प्रांजल ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंटने से दम घुटने की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद पुलिस ने पति, सास और नाना ससुर पर दहेज हत्या और हत्या दोनों के आरोप लगाए थे।
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय की प्रति राज्य के सभी सत्र न्यायालयों को भेजने का निर्देश दिया है, ताकि भविष्य में दहेज हत्या के मामलों में आरोप तय करते समय और सुनवाई के दौरान कानून की सही व्याख्या की जा सके।


