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दिनेश आकुला की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 17 जुलाई। छत्तीसगढ़ में हाल ही में राज्य से अवैध बांग्लादेशियों के निष्कासन के बाद से सियासी हलचल तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए अवैध रूप से राज्य में रह रहे रोहिंग्या, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। बघेल ने पुराने केंद्रीय आदेश का हवाला देते हुए पूछा कि अब तक कितने पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया गया है, और आरोप लगाया कि भाजपा सिर्फ चुनाव के समय ही घुसपैठियों का मुद्दा उठाती है।
‘ऑपरेशन सिंदूर के बाद सरकार ने पाकिस्तानियों की पहचान और निष्कासन का आदेश दिया था, लेकिन भाजपा चुनावों के दौरान यह वादा करती रही कि सभी रोहिंग्या, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिकों को बाहर किया जाएगा। आज दो साल से ज्यादा हो गए, लेकिन एक भी पाकिस्तानी नागरिक को वापस नहीं भेजा गया। इस चुप्पी का मतलब सिर्फ उनकी निष्क्रियता है,’ बघेल ने कहा, भाजपा सरकार की ‘डबल-इंजन’ सरकार की कार्यक्षमता पर सवाल उठाते हुए।
भाजपा का पलटवार :
भूपेश बघेल के आरोपों का जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि अगर बघेल को सच में जवाब चाहिए तो उन्हें विधानसभा में यह मुद्दा उठाना चाहिए। ‘वह कल पीएम आवास योजना पर चर्चा के समय विधानसभा में मौजूद नहीं थे। अगर वह इन मुद्दों को लेकर गंभीर हैं, तो उन्हें सदन में उठाना चाहिए, बाहर नहीं। हमें पाकिस्तानियों के कानूनी मामलों की पूरी जानकारी है और अवैध नागरिकों की जांच चल रही है,’ शर्मा ने कहा।
सूत्रों के मुताबिक, लगभग 2,000 पाकिस्तानी नागरिक भारत में वैध शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म वीजा पर रह रहे हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत से अधिक हिंदू हैं। इनमें से कुछ नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन भी कर चुके हैं। साल 2016 में पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद 11 पाकिस्तानी नागरिक खुद पाकिस्तान लौट गए थे।
कांग्रेस की दबाव बढ़ाने की कोशिशें :
कांग्रेस लगातार आंकड़े मांग रही है और छत्तीसगढ़ में रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों को निष्कासित करने की मांग कर रही है। वहीं, भाजपा विधायकों का कहना है कि यह मुद्दा विधानसभा के भीतर ही सुलझाना चाहिए, न कि चुनावी फायदा उठाने के लिए बाहरी मंचों पर।
राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला अब छत्तीसगढ़ में अवैध विदेशी नागरिकों के मुद्दे पर एक नया राजनीतिक बवंडर बन गया है। दोनों पक्षों के तीखे बयानों से यह मामला और भी गरमा सकता है। खासकर विधानसभा सत्र के दौरान इस पर हो रही बहस से यह साफ हो गया है कि यह मुद्दा राज्य के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण बन सकता है।
क्या भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर एक राय पर पहुंच पाएंगे? या यह राजनीतिक लड़ाई अगले चुनावों तक जाती रहेगी? समय बताएगा, लेकिन छत्तीसगढ़ के नागरिक इस मुद्दे पर ध्यान देने से कतई पीछे नहीं हटेंगे।
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