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नयी दिल्ली, 17 जुलाई। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने नौकरी के बदले जमीन मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने के उनके अनुरोध को खारिज कर देने के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ संभवतः 18 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 29 मई को कहा कि कार्यवाही पर रोक लगाने का कोई ठोस कारण नहीं है।
उच्च न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की प्राथमिकी को रद्द करने की यादव की याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी किया और सुनवाई 12 अगस्त के लिए स्थगित कर दी।
अधिकारियों का कहना है कि यह मामला मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य क्षेत्र में ग्रुप डी की नियुक्तियों से संबंधित है। ये नियुक्तियां लालू प्रसाद के 2004 और 2009 के बीच रेल मंत्री रहने के दौरान की गई थीं। नौकरियां पाने वालों ने इन नियुक्तियों के बदले में कथित तौर पर राजद सुप्रीमो के परिवार या सहयोगियों को भूखंड दिये थे।
उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में प्रसाद ने प्राथमिकी तथा 2022, 2023 और 2024 में दाखिल किये गये तीन आरोपपत्रों को रद्द करने एवं उसके बाद के संज्ञान आदेशों को खारिज करने की मांग की थी।
यह मामला 18 मई, 2022 को यादव , उनकी पत्नी, दो बेटियों, अज्ञात सरकारी अधिकारियों एवं अन्य व्यक्तियों के विरूद्ध दर्ज किया गया था।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सक्षम अदालत में ‘क्लोजर रिपोर्ट’ रिपोर्ट दाखिल करने पर सीबीआई की प्रारंभिक पूछताछ और जांच बंद कर दी गयी थी लेकिन उसके बावजूद 14 साल बाद 2022 में प्राथमिकी दर्ज की गयी।
याचिका में कहा गया, ‘‘पिछली जांच और उसकी समापन रिपोर्टों को छिपाकर नयी जांच शुरू करना क़ानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।’’
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि निष्पक्ष जांच के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हुए एक "अवैध, (दुर्भावना से) प्रेरित जांच’’ के जरिए उसे परेशान किया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘मौजूदा पूछताछ और जांच दोनों की शुरुआत अवैध है क्योंकि दोनों ही पीसी अधिनियम की धारा 17ए के तहत अनिवार्य मंजूरी के बिना शुरू की गई हैं। इस तरह की मंजूरी के बिना, की गई कोई भी पूछताछ/जांच शुरू से ही अमान्य होगी।’’ (भाषा)