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न्यायाधीशों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका पर न्यायालय ने नाखुशी जताई
17-Jul-2025 8:11 PM
न्यायाधीशों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका पर न्यायालय ने नाखुशी जताई

नयी दिल्ली, 17 जुलाई। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका पर बृहस्पतिवार को नाखुशी जाहिर की और इसे "अशोभनीय" एवं "प्रचार का हथकंडा" करार दिया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने पूर्व न्यायाधीश और वरिष्ठ अधिवक्ता एस मुरलीधर को इस मामले में अदालत की सहायता के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सुनवाई के दौरान न्यायाधिकरण ने कहा था कि वह उसकी याचिका को स्वीकार करेगा, लेकिन बाद में उसने इसे खारिज कर दिया।

यह याचिका भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) से स्नातक रवि कुमार ने दायर की है।

पीठ ने कुमार से कहा, "आप बहुत विद्वान हैं। हमें बताइए कि कानून के किन प्रावधानों के तहत न्यायाधिकरण के न्यायाधीशों और सदस्यों पर आपके खिलाफ फैसला सुनाने के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। आप न्यायाधीशों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध नहीं कर सकते।"

याचिकाकर्ता ने कैट के कुछ सदस्यों के अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मौजूदा एवं पूर्व न्यायाधीशों को भी पक्षकार बनाया है।

पीठ ने कहा, "हम समझते हैं कि यह प्रचार के लिए दायर की गई एक अशोभनीय याचिका है... क्या आपने सोचा है कि जब आप इस तरह की निंदनीय याचिका दायर करेंगे, तो इसका आप पर क्या असर होगा?"

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने जब याचिकाकर्ता से उसकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि उसने दिल्ली से इंजीनियरिंग और आईआईएम कोझिकोड से प्रबंधन की पढ़ाई की है।

कुमार के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने भ्रष्टाचार के मामलों की पैरवी के लिए विधि पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था।

उन्होंने दावा किया कि न्यायाधिकरण के कुमार की याचिका खारिज करने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी ऐसा ही किया और कोई भी पीठ उनके मुवक्कि के मामले की सुनवाई के लिए तैयार नहीं है।

वकील ने कहा, "यह मामला हर पीठ के समक्ष लंबित रहता है। हर पीठ मामले की गंभीरता पर गौर करती है, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को बुलाती है, सरकार से हलफनामा मांगती है और बाद में उसे (मामले को) खारिज कर देती है।"

हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा, "अगर किसी न्यायिक मंच की ओर से कोई अवैध, त्रुटिपूर्ण या विकृत प्रकार का आदेश या फैसला दिया जाता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि आप न्यायाधीशों के नाम लेकर उन पर अभियोग लगाएंगे? और आप प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध करेंगे?"

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता से याचिका की एक प्रति न्यायमित्र को सौंपने को कहा। (भाषा)


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