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अभी सोशल मीडिया पर एक नोट की फोटो चल रही है जिसमें मुस्लिम समाज के किसी प्रमुख व्यक्ति के पूरे नाम, ओहदे, और शहर के साथ-साथ उसके कुछ कथित कुकर्मों का जिक्र है, और किसी एक महिला से उसके अवैध संबंध होने का भी जिक्र है। एक रबर स्टाम्प बनवाकर यह सारी जानकारी नोट पर छाप दी जा रही है। अब ऐसे नोट की फोटो बताती है कि किसी एक नोट पर सचमुच ही, या फोटो एडिटिंग करके ऐसे सील लगाई गई है, लेकिन ऐसे लाखों नोटों से बात जहां तक पहुंचती, वहां तक सोशल मीडिया में दूसरे लोगों के पोस्ट करने पर यह बात पहुंच गई है। लोगों को याद होगा कि पिछले कई बरस से हिन्दुस्तान में किसी सोनम के नाम से नोट पर लिखा हुआ चारों तरफ घूमता था कि सोनम बेवफा है, लेकिन उसके साथ इस नाम की और कोई शिनाख्त नहीं थी, इसलिए किसी एक लडक़ी की बदनामी नहीं हो पाई, या दूसरी तरफ यह खतरा भी था कि इस नाम की जितनी लड़कियां थीं, उनकी सबकी बदनामी हो रही थी। जो भी हो, मीडिया और सोशल मीडिया पर खासे जिम्मेदार लोग भी ऐसी फोटो बढ़ा रहे थे, और फिर यह एक खेल की तरह कई अलग-अलग नोटों पर हाथ से लिखकर फैलाने का शगल हो गया था। अब जिस मुस्लिम आदमी के नाम की रबर सील लगाकर एक नोट की फोटो चलाई जा रही है, वह भी सोशल मीडिया के स्वयंसेवकों (कोई गलतफहमी न हो, इसलिए साफ कर देना ठीक है, वालंटियर) की मेहरबानी से फैल रही है।
हर दिन दो-चार ऐसे फोटो-वीडियो आते हैं जिनमें कहीं किसी खेत में एक आदमी किसी औरत के साथ पकड़ा गया, और जिनके बारे में आपत्तिजनक हालत में पकड़ाने का विशेषण तुरंत जोड़ दिया जाता है। कहीं हाईवे पर सेक्स, तो कहीं कोई व्यक्ति किसी महिला को लेकर किसी रेस्ट हाऊस, या गेस्ट हाऊस में जा रहा है। लोगों को याद होगा कि इस किस्म का एक सबसे बड़ा स्कैंडल छत्तीसगढ़ में हुआ था, जब रमन सिंह सरकार के ताकतवर मंत्री राजेश मूणत का सिर चिपकाकर एक सेक्स-वीडियो कांग्रेस के लोगों ने फैलाने और छपवाने की कोशिश की थी, और महीनों तक उसी की चर्चा चलती रही। यह तो भारत की न्यायपालिका की मेहरबानी है कि सात बरस बाद भी सीबीआई उस मामले में शायद पहली-दूसरी सुनवाई भी नहीं करवा पाई है, और उस मामले में गिरफ्तार भूपेश बघेल जमानत पर छूटने के बाद अभियुक्त रहते हुए भी पांच बरस मुख्यमंत्री रह लिए, इसी सेक्स सीडी कांड में फंसे, गिरफ्तार, जमानत पर छूटे हुए, और कटघरे में खड़े उनके करीबी सहयोगी विनोद वर्मा पांच बरस मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार रह लिए। लेकिन भारत की न्यायपालिका के चेहरे पर कोई उलझन नहीं है। आज हम इस सेक्स-सीडीकांड के जुर्म पर जाना नहीं चाहते, जो कि राजेश मूणत की लिखाई गई रिपोर्ट पर दर्ज है। हम यह सोचकर हैरान हैं कि मूणत के चेहरे को फर्जी तरह से चिपकाकर जो वीडियो बनाया गया, बांटा गया, छपवाने की कोशिश की गई, उस वीडियो में जो महिला दिख रही है, क्या इस बदनामी में जुटे लोगों को पल भर के लिए भी उसकी निजता का अहसास हुआ? क्या एक महिला की इस तरह बदनामी का किसी को भी कोई मलाल हुआ? आज भी जो लोग किसी नेता, अफसर, या चर्चित व्यक्ति के साथ किसी अनजानी महिला के फोटो-वीडियो फैलाते हैं, क्या उन्हें यह समझ नहीं रहती कि वे एक, या दोनों ही, बेकसूर की बदनामी कर रहे हैं?
यह पूरा सिलसिला भयानक इसलिए है कि सात बरस पहले जब मूणत की फर्जी वीडियो क्लिप बनाई गई, और जाने उसके रास्ते किस बदनामी करने, और राजनीतिक फायदा पाने की कल्पना की गई थी, उस वक्त तो एआई जैसे औजार भी नहीं थे। आज तो इंटरनेट पर मौजूद मुफ्त के औजारों से लोग किसी भी औरत-मर्द की फोटो डालकर उन्हें एक-दूसरे को चूमता हुआ दिखा सकते हैं, और भी कई तरह के वीडियो बनाए जा सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि ऐसी सनसनीखेज फोटो, और ऐसे वीडियो तो चारों तरफ फैल रहे हैं, इनको पोस्ट करने, आगे बढ़ाने, री-पोस्ट करने के पहले लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए या नहीं? किसी के नाम-पते, ओहदे के साथ उसकी बदचलनी का जिक्र करके अगर एक नोट की असली या नकली फोटो सोशल मीडिया पर डालने से खासे जिम्मेदार लोग भी महज मजा लेने के लिए उसे आगे बढ़ा रहे हैं, तो इसका पहला मतलब तो यही है कि किसी की इज्जत की मिट्टीपलीद करना, बच्चों के खेल सरीखा आसान हो गया है। दूसरी बात यह कि सोशल मीडिया पर असल जिंदगी के बड़े जिम्मेदार लोग भी छिछोरेपन पर उतर आते हैं क्योंकि वहां का माहौल ही कुछ ऐसा रहता है। लेकिन यह सिलसिला थमेगा कहां? आज जिसकी जिससे दुश्मनी हो, उसके नाम के साथ कोई अश्लील बात लिखकर एक नोट की फोटो खींची जाए, और उसे पोस्ट भर कर दिया जाए। फिर चाहें तो उस नोट को बाजार में चला भी लें, ताकि वह कई और हाथों तक चले जाए, कई और लोग उसकी फोटो खींच लें, पोस्ट कर दें, और आपका मकसद मुफ्त में टारगेट से अधिक पूरा होता रहे। यह सब इस कदर आसान हो गया है कि क्या कहें।
ऐसा लगता है कि सार्वजनिक जीवन और कानूनी दायरों में निजता की चर्चा कुछ सिद्धांतवादियों के बीच की शौकिया बातचीत सरीखी होकर रह गई है। जनता के शायद 99 फीसदी हिस्से को निजता शब्द की परवाह तभी होती है, जब उनके परिवार के किसी के फोटो-वीडियो सनसनी फैलाने लगें, उससे कम किसी बात का असर नहीं होता, कोई और बात लोगों को जिम्मेदार नहीं बना पाती। लोगों को इस खतरे का भी अहसास नहीं हो पा रहा है कि उनकी गैरजिम्मेदार हरकतों की विरासत उनकी अगली पीढ़ी को बिना किसी स्टाम्प पेपर के भी मिलती जा रही है। अगली पीढ़ी को कोई भी नसीहत देने का सबसे असरदार तरीका आपकी अपनी मिसाल रहती है, और आप जब धड़ल्ले से सोशल मीडिया पर, या कि मैसेंजरों पर दूसरों की निजता खत्म करते हैं, तो फिर यह बात साफ रहती है कि आप उन्हें वही राह दिखाकर जा रहे हैं, जो कि उन्हें गैरजिम्मेदार तो बनाती ही है, किसी दिन आईटी एक्ट, और दीगर साइबर कानूनों के तहत उनको जेल भी भेज सकती है। किसी जाने-अनजाने के खिलाफ नग्न, अश्लील, या किसी और किस्म की निजी फोटो-फिल्म आगे बढ़ाते हुए यह भी सोचें कि क्या उनका किया हुआ जुर्म उनकी निजता खत्म करने जितना बड़ा है? फिर पल भर को यह भी सोचें कि अपनी जिंदगी में आप अगर ऐसी किसी नौबत में फंसेंगे, और आपके सेक्स के फोटो-वीडियो तैरते हुए आपके सभी परिचितों के पास पहुंचेंगे, तो आपको कैसा लगेगा? भारत का आईटी एक्ट बड़ा कड़ा कानून है, और वह आपको लंबे से नाप सकता है। अपने सोशल मीडिया दोस्तों के बीच एक सनसनी फैलाने के लिए किसी दूसरे को खुदकुशी के लिए मजबूर करने जैसी हरकत सबसे पहले तो यही साबित करती है कि आप परले दर्जे के गैरजिम्मेदार हैं, और जुर्म से आपको कोई परहेज नहीं है। ऐसा कुछ करने के पहले कुछ मिनट इन तमाम पहलुओं पर सोच लीजिए।