ताजा खबर
उत्तर प्रदेश में अगले महीने विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होने जा रहा है और इसी बीच मंगलवार को जाने-माने ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी और योगी सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया.
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़े पर एक विश्लेषण छापा है.
अख़बार ने लिखा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़े से सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ उस अभियान को बल मिलेगा कि उत्तर प्रदेश में 'ऊंची जातियों' की सरकार है. दूसरी तरफ़ बीजेपी ओबीसी को अपने साथ लामबंद करने की कोशिश कर रही है.
अख़बार के अनुसार, बीजेपी ने मंगलवार को दिल्ली में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बैठक की थी. इस बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और गृह मंत्री अमित शाह के साथ पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे.
लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफ़ा बैठक में सारी योजनाओं पर भारी पड़ गया. अटकलें हैं कि बीजेपी के कई और विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 15 से ज़्यादा विधायक बीजेपी छोड़ेंगे.
बीजेपी से ओबीसी नेता नाराज़?
बीजेपी की बैठक में बीजेपी संगठन के महासचिव सुनील बंसल, उत्तर प्रदेश में बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, सह-प्रभारी अनुराग ठाकुर और राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष भी मौजूद थे. इसके अलावा पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के प्रभारी राधामोहन सिंह को भी शामिल होना था, लेकिन कोविड से संक्रमित होने के कारण नहीं आ सके.
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के नेताओं का कहना है कि यूपी में बीजेपी को अपने चुनावी अभियान पर फिर से सोचना होगा क्योंकि मौर्य के जाने से पिछड़ी जातियों में एक अहम संदेश गया है. अभी तक उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ बीजेपी के चुनावी अभियान के चेहरे रहे हैं.
बीजेपी में यह चिंता भी बढ़ी है कि मौर्य के कारण समाजवादी पार्टी को बढ़त मिल सकती है. समाजवादी पार्टी अपने विश्वसनीय वोट बैंक यादव-मुस्लिम को विस्तार देना चाहती है. अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के साथ ग़ैर-यादव ओबीसी को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में ग़ैर-यादव ओबीसी मतदाता एक अनुमान के मुताबिक़ 35 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हैं.
चुनाव से पहले बीजेपी छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य सबसे हाई-प्रोफ़ाइल नेता हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य 2016 में बहुजन समाज पार्टी से बीजेपी में आए थे. बहुजन समाज पार्टी में तब उनकी हैसियत मायावती के बाद नंबर दो की थी.
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी के नेताओं ने मौर्य के पार्टी छोड़ने को बहुत महत्व नहीं देते हुए कहा कि वो लंबे समय से मौक़ापरस्त रहे हैं. बीजेपी नेताओं ने बताया कि वो अपने बेटे उत्कृष्ट के लिए टिकट की मांग कर रहे थे जिसे पार्टी ने मानने से इनकार कर दिया था और वो इसी वजह से नाराज़ थे.
स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं लोकसभा सीट से बीजेपी की सांसद हैं और उन्होंने जातीय जनगणना की मांग का संसद में समर्थन किया था. संघमित्रा का यह रुख़ पार्टी के आधिकारिक रुख़ से बिल्कुल अलग था.
अख़बार से बीजेपी के एक सीनियर नेता ने कहा, ''स्वामी प्रसाद मौर्य का पार्टी छोड़ना हैरान करने वाला नहीं है. यह संभावित था. एक दिन की सनसनी के बाद इसका कोई मतलब नहीं रहेगा.'' लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेताओं, जिनमें एक विधायक भी शामिल हैं, उनका कहना है कि मौर्य के पार्टी छोड़ने से योगी सरकार को लेकर वह धारणा मज़बूत होगी कि यह सरकार ऊंची जातियों की है और पिछड़ी जातियों का हक़ नहीं दे रही है.
इससे इस आरोप को बल मिलेगा कि बीजेपी केवल सत्ता में आने के लिए ओबीसी वोटों का इस्तेमाल करती है और फिर उपेक्षित रखती है. बीजेपी को केंद्र में पूर्ण बहुमत से लाने में ओबीसी वोटों की अहम भूमिका रही है.
इससे पहले महाराष्ट्र में 2020 में एक और हाई प्रोफ़ाइल नेता एकनाथ खड़से ने बीजेपी छोड़ दी थी. हालांकि पिछले साल जुलाई में मोदी सरकार ने कैबिनेट में जब फेरबदल किया था तो 27 ओबीसी मंत्रियों को शामिल कर संदेश देने की कोशिश की थी.
अब सबकी नज़रें केशव प्रसाद मौर्य पर हैं. केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वरिष्ठ ओबीसी नेता हैं और 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया था जबकि उनकी अध्यक्षता में ही पार्टी ने चुनाव में जीत हासिल की थी.
बाद में केशव प्रसाद मौर्य की तरफ़ से ऐसी कई आवाज़ें आईं जिनसे उनके असंतोष का संकेत मिला. इस बार बीजेपी फिर से सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा पर केशव प्रसाद मौर्य खुलकर योगी का नाम नहीं लेते हैं जबकि पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह स्पष्ट कर चुके हैं कि योगी ही चेहरा हैं.
मंगलवार को स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने पर पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर ख़ामोशी रही, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट कर अपील की और कहा, ''आदरणीय स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफ़ा दिया है, मैं नहीं जानता हूँ. उनसे अपील है कि बैठकर बात करें, जल्दबाज़ी में लिए हुए फ़ैसले अक्सर ग़लत साबित होते हैं.''
मौर्य बनाम मौर्य
हालाँकि बीजेपी में दोनों मौर्यों के बीच सब कुछ मधुर नहीं था. स्वामी प्रसाद मौर्य को पता था कि बीजेपी में केशव प्रसाद मौर्य के रहते बीएसपी में जो उनकी हैसियत थी वो कभी नहीं मिलेगी. अख़बार से पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, ''बीजेपी में वो शीर्ष के ओबीसी नेता नहीं बन सकते थे लेकिन समाजवादी पार्टी में ग़ैर-यादव ओबीसी नेता बन सकते हैं.''
बीजेपी के एक सीनियर नेता ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) फ़ायदे के लिए दबाव बना सकती है. अपना दल भी ग़ैर-यादव ओबीसी में अपने समर्थन का दावा करता है. बीजेपी के एक सांसद ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से ओबीसी में ग़लत संदेश तो गया ही साथ ही योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा होता है.
उन्होंने कहा, ''कुछ लोग उन्हें अन्य कारणों से ध्रुवीकरण करने वाला नेता बताते हैं लेकिन बीजेपी के भीतर भी वो ध्रुवीकृत करने वाला चेहरा हैं. उत्तर प्रदेश में बीजेपी 'योगी के साथ और योगी के ख़िलाफ़' दो खेमों में बँट गई है. पहला खेमा चाहता है कि बीजेपी योगी की छवि से सत्ता में लौटेगी और दूसरे खेमे को लगता है कि योगी के नेतृत्व में बीजेपी के भीतर उनका कोई भविष्य नहीं है.''
समाजवादी पार्टी ने बहराइच की विधायक माधुरी वर्मा को पार्टी में शामिल कर ग़ैर-यादव ओबीसी वोट को अपने पाले में लाने की कोशिश पहले ही शुरू कर दी थी. इसके अलावा बीजेपी से राकेश राठौर, पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक शिव कुमार सिंह पटेल, कांग्रेस नेता कृष्णा पटेल के अलावा बीएसपी से निष्कासित राम अचल राजभर और लालजी वर्मा को अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में शामिल कर चुके हैं.
स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा क्या बोलीं?
हिन्दी अख़बार दैनिक जागरण ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने पर उनकी बेटी और बदायूं से बीजेपी की लोकसभा सांसद संघमित्रा की प्रतिक्रिया छापी है. अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार संघमित्रा ने कहा है कि वो भाजपा की सांसद हैं और भाजपा में ही रहेंगी. उन्होंने जागरण से कहा कि बीजेपी संगठन के निर्देश पर काम करती रहेंगी.
पिता के समाजवादी पार्टी में जाने से संघमित्रा को लेकर भी अटकलें थीं. बदायूं के बीजेपी ज़िला अध्यक्ष राजीव कुमार गुप्ता ने कहा कि संघमित्रा मौर्य क्षेत्र में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व दमदारी से करती रहेंगी. (bbc.com)


