कोरिया

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर (कोरिया), 3 मार्च। कोरिया जिले के एक दिवसीय दौरे पर पहुंचे वन अनुसंधान और बंबू प्रोजेक्ट के सीसीएफ राजेश कल्लाजे ने बैकुंठपुर वन मंडल अंतर्गत आन्नपुर और गेज नर्सरी में लगाए गए बंबू सेटम का अवलोकन किया। उन्होंने बंबू की कई प्रकार की प्रजातियों को देखकर तारीफ की, जो प्रजातियां नहीं है, उन्हें लगाने के निर्देश भी दिए।
कोरिया जिले के दौरे पर पहुंचे सीसीएफ राजेश कल्लाजे ने सबसे पहले आन्नदपुर नर्सरी का अवलोकन किया, सरगुजा संभाग की सबसे बड़ी नर्सरी के अवलोकन में पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता देख हैरान रह गए। काफी देर उन्होंने पूरी नर्सरी का निरीक्षण किया। इसके बाद जिला मुख्यालय में स्थित बंबू सेटम का अवलोकन करने पहुंचे।
यहां लगी बांस की 105 प्रजातियों को उन्होंने देखा, उन्होंने इन किस्तों के संवर्धन को लेकर डीएफओ को निर्देश किए। इसके अलावा दहीमन के प्लांटेशन का भी निरीक्षण किया। वहीं श्री कल्लाजे को गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक श्री रामाकृष्णन ने पार्क में स्थित वन्यजीवों और हो रहे कार्यों की विस्तार से जानकारी दी।
इस अवसर पर कोरिया वन मंडल के डीएफओ इमोतेंशु आओ, गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक श्री रामाकृष्णन, एसडीओ अखिलेश मिश्रा उपस्थित रहे।
कोरिया का बंबू सेटम
कोरिया जिले का बंबू सेटम की शुरूआत वर्ष 2017 में पूर्व सरगुजा सीसीएफ केके बिसेन के हाथों शुरू, तब गेज नर्सरी पहुंच कर श्री बिसेन ने यहां बांस के पौधें का रोपण अपने हाथों से किया था। तब के डीएफओ इमोतेंशु आओ ने अपने निवास स्थान नागालैंड से बांस की कई प्रजातियों लाकर इस सेटम में तैयार किया, उनके स्थानांतरण के बाद राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में इसका विधिवत लोकार्पण कराया।
वर्तमान मेंं पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचंद्र सिंहदेव द्वारा चीन और भूटान से लाकर लगाए गए बांस की प्रजातियां हंै, जो लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं, जिसमें लोटा और चाईना बांस प्रमुख हंै। यहां लगाई गई बांस की विभिन्न प्रजातियों को आनंदपुर नर्सरी में काटकर नए पौधे विकसित करने प्रयोग किया गया, जो सफल हुआ। जिसमें बाल्टी बांस के गठान से नए पौधे निकलना शुरू हुआ था।
भूटान से लाए गए बाल्टी बांस छत्तीसगढ़ में कहीं नहीं पाया जाता है। वहीं 2020 में डीएफओ इमोतेंशु आओ की कोरिया वापसी हुई, जिसके बाद उन्होंने एक बार फिर बांस के संरक्षण और संवर्धन में काम शुरू किया, जिसके कारण आन्नदपुर के अलावा दुधनियां के जंगलों में काफी मात्रा में बांस का रोपण किया गया, जो हर वर्ष आने वाले हाथियों के भोजन के काम आ रहे हंै।