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अर्दोआन के नये सोशल मीडिया क़ानून पर क्यों हो रही है बहस
31-Jul-2020 6:35 PM
 अर्दोआन के नये सोशल मीडिया क़ानून पर क्यों हो रही है बहस

तुर्की, 31 जुलाई| दुनियाभर में देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि ऑनलाइन कंटेंट को और बेहतर तरीक़े से कैसे नियंत्रित किया जाए. इसमें हेट स्पीच से लेकर कोरोना वायरस की फ़ेक न्यूज़ तक शामिल है.

तुर्की का भी कहना है कि उसने इसी दिशा में कदम उठाया है लेकिन सरकार की मंशा को लेकर विवाद बना हुआ है.

नए क़ानून के सोशल मीडिया के लिए क्या मायने हैं?

ये क़ानून कहता है कि 10 लाख से ज़्यादा यूज़र वाली सोशल मीडिया फर्म का तुर्की में कार्यालय होना चाहिए और वो कंटेट हटाने के सरकार के अनुरोधों का पालन करे.
अगर कंपनी इससे इनकार करती है तो उस पर जुर्माना लगेगा या डाटा की स्पीड कम हो जाएगी.

ये बदलाव कई बड़ी कंपनियों और प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, गूगल, टिकटॉक और ट्विटर पर भी लागू होते हैं.
नए क़ानून के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बैंडविथ में 95 प्रतिशत तक की कटौती हो सकती है. इस कटौती से वो इस्तेमाल के लायक नहीं रह पाएंगे.

इसके अलावा नया क़ानून कहता है कि सोशल मीडिया नेटवर्क्स को अपना यूज़र डाटा तुर्की में रखना होगा.

तुर्की की आठ करोड़ 40 लाख की जनसंख्या के बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स काफ़ी लोकप्रिय हैं. खासतौर पर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, स्नैपचेट और टिकटॉक वहां काफ़ी पसंद किए जाते हैं. उनके करोड़ों यूजर्स हैं.

नए क़ानून से क्या होगा फायदा

सरकार का कहना है कि इस क़ानून का उद्देश्य साइबर-क्राइम से लड़ना है और लोगों को ''अनियंत्रित साजिशों'' से बचाना है.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन सालों तक सोशल मीडिया साइट्स को "अनैतिक" ठहराते रहे हैं. इन पर कड़ा नियंत्रण करने की उनकी इच्छा किसी से छुपी नहीं है.

तुर्की की संसद में नए क़ानून पर बहस के दौरान ऑनलाइन विनियमन को लेकर अक्सर जर्मनी का उदाहरण दिया गया है.

साल 2017 में, जर्मनी ने नेटवर्क एनफोर्समेंट एक्ट यानी नेट्जडीजी लागू किया था जिसमें हेट स्पीच और आपत्तिजनक कंटेंट से निपटने के लिए इसी तरह के नियम थे.

जर्मनी में अगर सोशल मीडिया प्लेफॉर्म्स इस तरह के कंटेंट को 24 घंटों में नहीं हटाते हैं तो उन पर 50 मिलियन यूरो तक जुर्माना लग सकता है.

हाल ही में इस क़ानून में ये भी नियम बनाया गया है कि संदेहजनक आपराधिक कंटेंट को सीधे जर्मनी की पुलिस के पास भेजा जाएगा.

क़ानून में समस्या?

लेकिन, इंटरनेट पर नियंत्रण के मामले में तुर्की और जर्मनी का बहुत अलग इतिहास रहा है.

लोकतांत्रिक जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई आंच ना आए इसकी लगातार कोशिशें होती हैं और चर्चाएं की जाती हैं. लेकिन, तुर्की में ऑनलाइन स्वतंत्रता पर कहीं ज़्यादा बंदिशें हैं.

तुर्की में सोशल मीडिया पर पहले ही बड़े स्तर पर पुलिसिंग होती है. कई लोगों पर अर्दोआन या उनके मंत्रियों का अपमान करने का आरोप लगाया है. कई बार विदेशी सैन्य घुसपैठ या कोरोना वायरस से निपटने को लेकर आलोचना के कारण लोगों पर कार्रवाई हुई है.

तुर्की का ज़्यादातर मुख्यधारा मीडिया पिछले एक दशक में सरकार के नियंत्रण में आ चुका है. अब आलोचनात्मक आवाज़ों या स्वतंत्र ख़बरों के लिए सोशल मीडिया और छोटे ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ही बचे हैं.

फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन एसोसिएशन (आईएफओडी) के मुताबिक 4 लाख 8 हज़ार वेबसाइट्स को ब्लॉक कया गया है. इसमें विकीपीडिया भी शामिल है, जिस पर इस साल जनवरी से पहले पिछले तीन सालों तक प्रतिबंध लगा था.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नए क़ानून को तुर्की में अभियव्यक्ति की आज़ादी पर खुला हमला बताया है.

मानवाधिकार समूह के तुर्की के शोधकर्ता एंड्रयू गार्डनर कहते हैं, ''नया क़ानून ऑनलाइन कंटेंट को सेंसर करने की सरकार की ताकत बढ़ा देगा. इससे उन लोगों को ख़तरा बढ़ जाएगा जो विरोधी विचारों के कारण प्रशासन के निशाने पर रहे हैं.''

हालांकि, राष्ट्रपति के प्रवक्ता इब्राहिम कालिन इस बात से इनकार करते हैं कि ये क़ानून सेंसरशिप की तरफ़ ले जाएगा. वह कहते हैं कि इसके ज़रिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ वाणिज्यिक और क़ानूनी संबंध स्थापित करने की मंशा है.

अन्य देशों में क़ानून

सरकारें लगातार इस बात पर विचार कर रही हैं कि सोशल मीडिया स्पीच और ऑनलाइन कंटेंट के मसले से कैसे निपटा जाए.

चीन जैसे देशों में सख़्त नियम हैं. यहां हज़ारों-हज़ार की संख्या में साइबर पुलिस राजनीतिक रूप से संवेदनशील पोस्ट और मैसेज को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नज़र रखती है.

रूस और सिंगापुर में भी इसे लेकर कड़े नियम हैं कि ऑनलाइन क्या पोस्ट किया जाएगा.

इसमें कोई शक नहीं कि ऑनलाइन कंटेंट की इस समस्या को लेकर तुर्की के नज़रिए पर अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के सदस्य अध्ययन करेंगे. इन देशों में भी पहले से सोशल मीडिया विनियमन को लेकर बहस तेज़ है.

कुछ मानवाधिकार समूहों को चिंता है कि तुर्की का नया क़ानून अन्य देशों को भी ऐसे ही तरीक़े अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. उन्होंने चेतावनी दी है कि ये क़ानून ''ऑनलाइन सेंसरशिप के नए काले युग'' का संकेत देता है.(bbc)


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