अंतरराष्ट्रीय
फ्रांस ने फिलस्तीन को औपचारिक तौर पर मान्यता दे दी है।
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, ‘शांति का समय आ गया है’ और ‘गाजा में जारी युद्ध का कोई औचित्य नहीं है।’
फ्रांस और सऊदी अरब संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक दिवसीय शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहे हैं, जो इसराइल-फिलस्तीन के संघर्ष के समाधान के तौर पर दो-राष्ट्र के सिद्धांत पर केंद्रित है।
हालांकि, जी-7 के सदस्य जर्मनी, इटली और अमेरिका इस बैठक में शामिल नहीं हुए।
मैक्रों ने पुष्टि की कि बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, माल्टा, अंडोरा और सैन मरीनो भी फ़लस्तीन को मान्यता देंगे।
इससे पहले रविवार को ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल ने आधिकारिक रूप से फ़लस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दे दी थी।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीएर स्टार्मर का फ़लस्तीन को मान्यता देने का एलान ब्रिटेन की नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
वहीं ब्रिटेन की विदेश मंत्री यवेट कूपर ने कहा है कि उन्होंने इसराइल को वेस्ट बैंक के किसी भी हिस्से पर कब्जा न करने की चेतावनी दी है।
कूपर ने यह बयान बीबीसी से बातचीत में दिया। बीबीसी ने उनसे सवाल किया था कि क्या उन्हें इस बात की चिंता है कि फिलस्तीन को मान्यता देने के बाद प्रतिक्रिया के तौर पर इसराइल पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों पर कब्जा करेगा?
कूपर भी न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में शामिल हो रही हैं।
इसराइल की कड़ी प्रतिक्रिया
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने फिलस्तीन को मान्यता देने की निंदा करते हुए इसे ‘आतंकवाद को बड़ा इनाम’ बताया।
ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की ओर से फिलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता दिए जाने के बाद इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा कि वह अमेरिका से लौटने के बाद इसका जवाब देंगे।
इसराइली प्रधानमंत्री के कार्यालय ने एक बयान जारी किया है। इसके मुताबिक़ नेतन्याहू ने कहा, ‘कोई फिलस्तीनी देश नहीं होगा। हमारी ज़मीन के बीच, एक आतंकवादी देश को थोपने के हालिया प्रयास का जवाब मेरे अमेरिका से लौटने के बाद दिया जाएगा।’
बिन्यामिन नेतन्याहू का बयान
उन्होंने कहा, ‘सात अक्तूबर के जनसंहार के बाद जो नेता फ़लस्तीन को देश के तौर पर मान्यता दे रहे हैं, उनके लिए मेरा स्पष्ट संदेश है कि आप आतंकवाद को बहुत बड़ा इनाम दे रहे हैं।’
‘मेरे पास आपके लिए एक और संदेश है: यह संभव नहीं होगा। जॉर्डन नदी के पश्चिम में कोई भी फिलस्तीनी देश नहीं होगा।’
इसराइल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि फिलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता देना ‘जिहादी हमास के लिए इनाम के अलावा कुछ नहीं है।’
कितने देश दे चुके हैं मान्यता?
संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से तीन चौथाई से अधिक पहले ही फिलस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। जिन देशों ने अब तक मान्यता नहीं दी है उनमें अमेरिका, इसराइल, इटली और जर्मनी शामिल हैं।
साल 1988 में भारत फ़लस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया। वर्ष 1996 में भारत ने गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था।
वहीं यूरोपीय संघ में रहते हुए स्वीडन, स्पेन, आयरलैंड और स्लोवेनिया ने पहले ही फिलस्तीन को मान्यता दे दी है। पोलैंड और हंगरी ने 80 के दशक में ही कम्युनिस्ट शासन में फ़लस्तीन को मान्यता दे दी थी।
बीबीसी अंतरराष्ट्रीय संपादक जेरेमी बोवेन के अनुसार, फ्रांस जैसे देशों के फ़लस्तीन को मान्यता देने से दो-राष्ट्र समाधान पर लंबे समय से चले आ रहे नारों में कुछ नई ऊर्जा आ सकती है।
इसराइल ने साफ तौर पर अपने इस रुख़ को दोहराया है कि वह कभी भी फ़लस्तीनी राष्ट्र को स्वीकार नहीं करेगा।
प्रधानमंत्री नेतन्याहू की स्थिति स्पष्ट है। उनका कहना है कि फ़लस्तीनी राष्ट्र इसराइल को समाप्त करने के लिए एक लॉन्चपैड बन जाएगा। वहीं इसराइल के कट्टर दक्षिणपंथी नेता कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक को इसराइल में मिलाना चाहते हैं।
वित्त मंत्री बेजलेल स्मोटरिच और उनके समर्थक चाहते हैं कि फिलस्तीनियों को कब्ज़े वाले इलाकों से पूरी तरह हटाया जाए और उस पूरे क्षेत्र को यहूदियों के लिए इसराइली संप्रभुता के अंतर्गत लाया जाए।
मान्यता मिलने से क्या बदल जाएगा?
संयुक्त राष्ट्र में फिलहाल फिलस्तीन को पर्यवेक्षक यानी ऑब्जर्वर का दर्जा हासिल है। इससे फिलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में सीट तो मिलती है लेकिन वोट देने का अधिकार नहीं मिलता है।
फिलस्तीन को कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी मान्यता मिली है। इनमें अरब लीग और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) शामिल हैं।
यूरोपीय देश और अमेरिका के बीच इस पर मतभेद है कि फिलस्तीन को राष्ट्र कब माना जाए।
आयरलैंड, स्पेन और नॉर्वे का कहना है कि मौजूदा संकट का स्थायी समाधान तभी निकल सकता है, जब दोनों पक्ष किसी तरह का राजनीतिक लक्ष्य बना सकें।
इन देशों पर घरेलू स्तर पर इस बात का राजनीतिक दबाव भी रहा कि वो फिलस्तीन के पक्ष में ज़्यादा समर्थन दिखाएं।
अतीत में कई पश्चिमी देशों का रुख़ ये रहा है कि फिलस्तीन को राष्ट्र मानना अंतिम शांति समझौते का इनाम होना चाहिए।
यानी शांति समझौता करो और बदले में राष्ट्र के तौर पर मान्यता इनाम में पाओ।
क्या अलग-थलग पड़ रहा है इसराइल?
गाजा में युद्ध लगातार जारी है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि इसराइल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पडऩे की स्थिति की ओर तेजी से बढ़ रहा है। क्या इसराइल ‘दक्षिण अफ्रीका’ के उस दौर की ओर बढ़ रहा है, जब वहां रंगभेद था?
उस दौर में राजनीतिक दबाव के साथ ही आर्थिक, खेल और संस्कृति के मंचों पर दक्षिण अफ्रीका के बायकॉट ने उसे इस नीति को छोडऩे को मजबूर किया था।
या फिर इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी सरकार अपने देश के अंतरराष्ट्रीय कद को स्थायी नुकसान पहुँचाए बिना इस कूटनीतिक तूफान को झेल सकती है ताकि वो गाजा और कब्जे वाले वेस्ट बैंक में अपने लक्ष्य पूरे करने के लिए आज़ाद रहे।
दो पूर्व प्रधानमंत्री एहुद बराक और एहुद ओल्मर्ट, पहले ही ये आरोप लगा चुके हैं कि नेतन्याहू इसराइल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अछूत बनाने की ओर ले जा रहे हैं।
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट की ओर से जारी वारंट के कारण नेतन्याहू अब गिरफ़्तारी के डर के बिना जिन देशों की यात्रा कर सकते हैं, उनकी संख्या अब काफी घट गई है।
गर्मियों में गाजा से भुखमारी की तस्वीरें सामने आने, और इसराइली सेना के गाजा सिटी पर हमले की तैयारी के बीच, अब ज़्यादा से ज़्यादा यूरोपीय सरकारें केवल बयानों से आगे बढक़र अपनी नाख़ुशी जता रही हैं। इस महीने की शुरुआत में बेल्जियम ने कई प्रतिबंधों की घोषणा की।
इनमें वेस्ट बैंक की अवैध यहूदी बस्तियों से आयात पर रोक, इसराइली कंपनियों के साथ सरकारी खऱीद नीति की समीक्षा और बस्तियों में रहने वाले बेल्जियम के नागरिकों को कॉन्सुलर मदद पर रोक शामिल थी।
ब्रिटेन और फ्रांस समेत कुछ देश पहले ही इस तरह के कदम उठा चुके थे।
लेकिन इसराइल के लिए और भी चिंताजनक संकेत सामने आ रहे हैं।
अगस्त में नॉर्वे के विशाल 2 ट्रिलियन डॉलर के सॉवरेन वेल्थ फंड ने घोषणा की कि वह इसराइल में लिस्टेड कंपनियों में विनिवेश करना शुरू करेगा।
इस महीने के मध्य तक 23 कंपनियाँ हटा दी गईं और वित्त मंत्री जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि आगे और भी कंपनियों को हटाया जा सकता है।
इसी बीच, इसराइल के सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर यूरोपियन यूनियन दक्षिणपंथी मंत्रियों पर प्रतिबंध लगाने और इसराइल के साथ अपने समझौते के कुछ व्यापारिक पहलुओं को आंशिक तौर पर निलंबित करने की योजना बना रहा है।
10 सितंबर को अपने ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ भाषण में यूरोपियन यूनियन की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि गाजा की घटनाओं ने ‘दुनिया के ज़मीर को झकझोर दिया है।’
इसके अगले ही दिन 314 पूर्व यूरोपीय राजनयिकों और अधिकारियों ने वॉन डेर लेयेन और यूरोपियन यूनियन की विदेश नीति प्रमुख काया कलास को चि_ी लिखकर कड़े कदम उठाने की अपील की, जिनमें एसोसिएशन एग्रीमेंट को पूरी तरह निलंबित करना भी शामिल था।
लेकिन इसराइल को अब भी अमेरिका का मज़बूत समर्थन हासिल है। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि अमेरिका के ‘इसराइल के साथ संबंध मजबूत बने रहेंगे।’
कई विशेषज्ञों के मुताबिक इसराइल का अंतरराष्ट्रीय अलगाव अटल है। ट्रंप प्रशासन का निरंतर समर्थन होने की वजह से हालात अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचे हैं कि गज़़ा में घटनाओं की दिशा बदल सके। (bbc.com/hindi)


