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इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने अल-अजीजिया स्टील मिल्स मामले में सज़ा के ख़िलाफ़ नवाज़ शरीफ़ की अपील पर उन्हें बरी करने का आदेश दिया है.
इस्लामाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अमीर फ़ारूक़ की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने मामले पर पक्षों की बहस पूरी होने के बाद मंगलवार दोपहर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आज शाम सुनवाई हुई.
याद रहे कि हाई कोर्ट की इसी दो सदस्यीय पीठ ने पिछले महीने 29 नवंबर को एवनफील्ड मामले में नवाज़ शरीफ़ को बरी करने का आदेश जारी किया था.
24 दिसंबर, 2018 को इस्लामाबाद की जवाबदेही अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को अल-अजीजिया मामले में सात साल की जेल की सज़ा सुनाई थी.
उन्हें दस साल के लिए किसी भी सार्वजनिक पद पर रहने से प्रतिबंधित कर दिया. उनके नाम की सभी संपत्ति जब्त कर ली गई थी और लगभग डेढ़ अरब रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
पूर्व प्रधानमंत्री ने जवाबदेही अदालत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ इसी साल इस्लामाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर की थी. सुनवाई के बाद आज कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है.
अल-अज़ीज़िया केस क्या है?
इस मामले की गहराई में जाएं तो जवाबदेही अदालत में पेश दस्तावेजों के मुताबिक, अल-अजीजिया स्टील मिल्स की स्थापना नवाज़ शरीफ़ के पिता मियां मुहम्मद शरीफ़ ने 2001 में सऊदी अरब में की थी, जिसका प्रशासनिक कामकाज नवाज़ शरीफ़ के बेटे हुसैन नवाज़ चलाते थे.
जवाबदेही अदालत में शरीफ़ परिवार की ओर से दी गई दलीलों में कहा गया कि स्टील मिल स्थापित करने के लिए सऊदी सरकार से कुछ पूंजी ली गई थी.
हालांकि, एनएबी के वकीलों का कहना था कि इस संबंध में शरीफ़ परिवार द्वारा किए गए दावे बिना किसी दस्तावेजी सबूत पर आधारित हैं और यह ज्ञात नहीं है कि इस मिल को स्थापित करने के लिए पैसा कहां से आया.
उस वक्त एनएबी ने दावा किया था कि शरीफ़ परिवार ने पाकिस्तान से अवैध तरीके से पैसा लेकर इस मिल में निवेश किया था.
हुसैन नवाज़ ने अदालत को बताया कि उनके दादा ने उन्हें पाँच मिलियन डॉलर से अधिक दिए थे, जिसकी मदद से उन्होंने अल-अज़ीज़िया स्टील मिल्स की स्थापना की थी.
उनके अनुसार, इस मिल के लिए अधिकांश पूंजी क़तर के शाही परिवार द्वारा मुहम्मद शरीफ़ के अनुरोध पर दी गई थी.
इस मामले की जांच के लिए गठित संयुक्त जांच दल ने जवाबदेही अदालत के समक्ष दावा किया कि नवाज़ शरीफ़ खुद अल-अजीजिया स्टील मिल्स के असली मालिक हैं.
एनएबी अधिकारियों ने नवाज़ शरीफ़ के ख़िलाफ़ दावा किया था कि उन्हें हुसैन नवाज़ की कंपनियों से भारी मुनाफा मिला है, जिससे पता चलता है कि असली मालिक वह हैं, न कि उनके बेटे.
गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई के दौरान एनएबी अपने आरोप को साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी सबूत उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा था. (bbc.com/hindi)


