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यूक्रेन में फंसे लड़के-लड़कियों के शरीर ठंड से गल रहे हैं, गर्मी पाने के लिए अपना सामान तक जला रहे हैं…, यूक्रेन से भारत लौटे स्टूडेंट्स
04-Mar-2022 7:51 PM
यूक्रेन में फंसे लड़के-लड़कियों के शरीर ठंड से गल रहे हैं, गर्मी पाने के लिए अपना सामान तक जला रहे हैं…, यूक्रेन से भारत लौटे स्टूडेंट्स

नई दिल्ली. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच लगातार यूक्रेनी शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं का स्वदेश लौटना जारी है. यहां लौटकर वे हालात बयान कर रहे हैं, वे बेहद भयावह हैं. जैसे- 22 साल का आदित्य. यूक्रेन की टेर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दूसरे साल की पढ़ाई कर रहे हैं. वे बताते हैं, ‘युद्धग्रस्त इलाकों से पड़ोसी देशों की सीमाओं पर जा रहे लड़के-लड़कियों के शरीर ठंड से गल रहे हैं. पैदल या ठुंसी हुई टैक्सियों से आगे बढ़ते हुए अपना सामान वहीं छोड़कर चल रह हैं. ठंड से गर्मी पाने के लिए दूसरों का पड़ा हुआ और जरूरी होने पर अपना भी सामान जला रहे हैं. किसी के पास खाने या पीने का सामान है तो कई लोग उसी को बांटकर अपनी भूख-प्यास मिटा रहे हैं.’

अभी 3 मार्च को विशेष विमान से दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्‌डे पर उतरे आदित्य के मुताबिक, ‘जब 24 फरवरी को युद्ध शुरू हुआ तो हर किसी को यूक्रेन की सीमाओं की ओर भागते देखा. हम 5 दोस्तों ने भी वहां से निकलने का फैसला किया. पोलैंड से लगने वाली शेनी बॉर्डर हमारे इधर से करीब 200 किलोमीटर दूर है. हमने मिलकर टैक्सी से जाने का फैसला किया. लेकिन टैक्सी ड्राइवर ने हमें वहां से बहुत दूर ही छोड़ दिया. इसके बाद हमें आगे 2-3 दिन पैदल सफर करना पड़ा. सीमा चौकी शेनी बॉर्डर से करीब 3 किलोमीटर पहले है. वहां हमें रोक लिया गया. वहां हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया. यहां तक लड़कियों से भी. हमने देखा वहां अन्य छात्र-छात्राएं 4-4 दिन से बैठे हुए हैं. उस पार जाने के इंतजार में. तब हमारी उम्मीद टूट गई. एक बार तो लगा वापस टेर्नोपिल चले जाते हैं. हालांकि 6-7 घंटे बाद हमें सीमा पार जाने की इजाजत मिल गई.’

उन्होंने बताया, ‘रास्ते में हमारे पास खाने-पीने और अन्य जरूरत की चीजें खत्म होने लगीं. तब हमने जगह-जगह अन्य लोगों का जो सामान पड़ा मिला, उसमें से अपने काम की चीजें निकालकर इस्तेमाल कीं. रास्ते में पड़े दूसरों के और अपने भी कम इस्तेमाल वाले सामान को जलाकर शरीर को गर्म रखने का बंदोबस्त किया.’ इतना बताने के दौरान कई बार आदित्य की आंखें नम हो जाती हैं. उनकी मानें तो अभी कई लोगों का तो यूक्रेन में पता नहीं चला है कि वे कहां हैं. इनमें उनका दोस्त हिमेश भी है. वह 9 दिनों से लापता है. अभी 3 महीने पहले ही वह पढ़ने के लिए यूक्रेन आया था. मेडिकल की पहले साल की पढ़ाई कर रहा था. अब पता नहीं कहां, किस हाल में होगा.

ऐसे ही 19 साल की इकरा भी आदित्य के साथ ही लौटी हैं. वे ‘इंडिया टुडे’ से बातचीत के दौरान कहती हैं, ‘हमारे कॉलेज के कोऑर्डिनेटर ने हमारी बहुत मदद की. उन्होंने हमारे लिए बस का इंतजाम किया. ताकि हम रोमानिया बॉर्डर तक जा सकें. हालांकि बस ने हमें जहां छोड़ा, वहां से 5 दिन पैदल चलकर हम सीमा तक पहुंचे. हमें अपना सामान रास्ते में ही छोड़कर आना पड़ा क्योंकि इसके सिवा कोई चारा नहीं था. मुझे खारकीव में पढ़ने वाले साथियों के लिए बहुत डर लग रहा है. जब लड़ाई शुरू हुई, तब हमारे निकलने तक हमें अपने इर्द-गिर्द सिर्फ एक ही धमाका सुनाई दिया था. खारकीव में तो लड़ाई पूरे चरम पर है. पता नहीं, वे लोग कैसे होंगे.’ इतना बताने तक इकरा भी भावुक हो जाती हैं. वे यूक्रेन की फैंक्विस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं.

यूक्रेन से लौटने वाले करीब-करीब हर छात्र-छात्रा की ऐसी ही कहानियां हैं. और इधर, दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्‌डे पर अपने बच्चों का इंतजार कर रहे माता-पिता की आंखें पथराई जा रही हैं. यहां उतरने वाली हर विशेष उड़ान के साथ उन्हें उम्मीद बंधती है कि शायद इसमें उनका बच्चा वापस आ गया होगा. किसी-किसी की यह उम्मीद पूरी होती है तो चेहरे खिल जाते हैं. लेकिन जिनका इंतजार कुछ और घंटे बढ़ जाता है, उनके दिलों में आशंका बैठ जाती है कि क्या पता उनकी संतान सही-सलामत लौट भी पाएगी या नहीं.


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