अंतरराष्ट्रीय

पाकिस्तान में क्यों बढ़ रहे हैं 'रिवेंज पोर्न' के मामले?
15-Feb-2022 10:49 AM
पाकिस्तान में क्यों बढ़ रहे हैं 'रिवेंज पोर्न' के मामले?

-शुमाइला जाफ़री

राबिया (बदला हुआ नाम) की कुछ साल पहले एक लड़के से दोस्ती थी. दोस्ती जब बढ़ी तो राबिया ने अपनी कुछ अंतरंग तस्वीरें दोस्त से शेयर कीं. कुछ दिन बाद दोनों का रिश्ता टूट गया और फिर एक दिन राबिया ने देखा कि उसके एक्स ब्वॉयफ़्रेंड ने वो तस्वीरें पोर्न वेबसाइट पर शेयर कर दीं.

राबिया जब मुझसे मिलने एक गोपनीय जगह आईं तो हर चीज़ को संदेह भरी नज़रों से देख रही थीं.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अब इसे रोका जा सकता है. दिमाग़ काम नहीं कर रहा था. एक तरह से ब्रेकडाउन वाली स्थिति थी क्योंकि वो तस्वीरें तेज़ी से फैल चुकी थीं. मैं डर गई थी कि किसी जान पहचान वाले की नज़र उन तस्वीरों पर गई तो क्या होगा, या किसी ऐसे आदमी को मिल जाए जिसके साथ मेरे संबंध अच्छे नहीं हों, तो वो इसका कैसे इस्तेमाल करेगा."

ऐसे मुश्किल दौर में अपनी दोस्त की मदद से राबिया ने लाहौर स्थित ग़ैर सरकारी संगठन डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन की हेल्पलाइन की मदद ली. यह संगठन पाकिस्तान में महिलाओं को डिजिटल सुरक्षा मुहैया कराने के लिए काम करता है और महिलाओं में जागरुकता भी फैलाता है.

राबिया ने अदालत में अपने पूर्व ब्वॉयफ़्रेंड पर तो कोई आरोप नहीं लगाए, लेकिन वो एडल्ट साइट्स से अपनी तस्वीरें हटवाने में कायमाब रहीं. हालांकि उन्हें अभी भी लगता है कि वह किसी जाल में फंसी हुई हैं और उन्हें समझौते करने पड़ रहे हैं.

राबिया ने बताया, "अब तो मेरा किसी पर भरोसा ही नहीं रहा. मुझे हमेशा इस बात का डर भी सताता रहता है कि क्या वे तस्वीरें फिर से इंटरनेट पर आ जाएंगी. यह डर तो लगता है कि अब जीवन भर रहेगा."

दरअसल राबिया का मामला पाकिस्तान में तेज़ी से बढ़ते 'रिवेंज पोर्न' के मामलों का एक उदाहरण भर है. अंतरंग तस्वीरों का बिना सहमति के इस्तेमाल और उसके ज़रिए ब्लैकमेल करने के मामले पाकिस्तान में तेज़ी से बढ़े हैं.

कई बार बहुत साल पहले बनाए गए वीडियो को रिवेंज पोर्न के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जिससे पीड़ित महिलाओं की ज़िंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

डिज़िटल राइट्स फ़ाउंडेशन के मुताबिक़, उनकी हेल्पलाइन को पिछले साल चार हज़ार से ज़्यादा शिकायतें मिलीं जिनमें 1,600 के क़रीब अंतरंग तस्वीरों की बिना सहमति के इस्तेमाल करने से जुड़ी थीं.

इस पहलू पर काम करने वाले एक्टिविस्टों के मुताबिक़ इसके वास्तविक मामलों का पता लगाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि अधिकांश मामलों में महिलाएं शर्म और कलंक के डर से शिकायत करने सामने नहीं आतीं.

पाकिस्तान की फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के साइबर क्राइम विंग की जांच अधिकारी उज़्मा ख़ान के मुताबिक़ उनके पास शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या पिछले कुछ सालों में कई गुना बढ़ी है. साइबर क्राइम विंग के पास ही रिवेंज पोर्न से जुड़ी शिकायतों को देखने की ज़िम्मेदारी है.

ज़्यादातर मामलों में ये शिकायतें पूर्व-ब्वॉयफ़्रेंड, मंगेतर, असंतुष्ट सहकर्मी और कई मामलों में पति के ख़िलाफ़ होती हैं. अधिकांश मामलों में महिला की अंतरंग तस्वीरों या वीडियो को परिवार के सदस्यों के पास भेजने या सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी दी जाती है.

2016 में पाकिस्तान में साइबर क्राइम रोकने के लिए रिवेंज पोर्न जैसे अपराधों में सात साल की सज़ा और भारी भरकम जुर्माने का प्रावधान किया गया. बावजूद इसके अभी भी ज़्यादातर महिलाएं साइबर विंग से मदद लेकर दोषियों को सज़ा दिलाने के क़ानूनी रास्ते का चुनाव नहीं करती हैं.

उज़्मा ने बताया, "इन महिलाओं को लगता है कि भयंकर नुक़सान तो हो ही चुका है, अब इसे यहीं बंद किया जाए. बस अब और आगे नहीं. वे चाहती हैं कि मामले की जानकारी ज़्यादा लोगों तक नहीं पहुंचे. वे अपने परिवार तक से इसे गोपनीय रखना चाहती हैं."

उज़्मा महिलाओं के पीछे हटने की एक और वजह बताती हैं, "उनके पास लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए न तो संसाधन होते हैं और न ही स्टेमिना. कई बार इसके चलते उनकी सगाई या शादी टूट चुकी होती है. कई मामलों में तो महिलाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी दिखती है."

तस्वीरें शेयर करते वक़्त सावधानी बरतें
डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन की कोशिश ऐसी महिलाओं को मदद करने की है जो अपराध की शिकार तो हैं लेकिन डर और कलंक के चलते शिकायत करने सामने नहीं आतीं. यह संस्था महिलाओं की न केवल मानसिक तौर पर मदद करती है, बल्कि अदालत में क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाली महिलाओं को क़ानूनी मदद भी मुहैया कराती है.

डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक निग़त दाद बताती हैं, "मेरे ख़्याल से तकनीक और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली युवतियां और महिलाएं ऐसे अपराध का शिकार हो सकती हैं. वे यूज़र तो होते हैं लेकिन उन्हें सुरक्षा के प्रावधानों के बारे में जानकारी नहीं होती. उन्हें ये भी नहीं मालूम होता है कि वे क्या डेटा, किसके साथ शेयर कर रही हैं और इससे वे कहां पहुंच सकती हैं."

निग़त के मुताबिक़, रिवेंज पॉर्न की शिकार ज़्यादातर महिलाओं को लगता है कि यह उनकी ग़लती से हुआ. उन्होंने किसी पर विश्वास करके डेटा शेयर किया जिसके चलते यह मुश्किल सामने आई.

निग़त ये भी बताती हैं कि ग्रामीण इलाक़ों में अधिकांश महिलाओं को क़ानूनी प्रावधानों और डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन जैसी संस्थाओं के बारे में जानकारी नहीं होती. अधिकांश मामलों में महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों से भी मदद नहीं लेतीं क्योंकि परिवार को बताने पर उन पर दोष मढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है. निग़त के मुताबिक़, कई बार रिवेंज पॉर्न के मामले में ऑनर किलिंग भी हो जाती है.

2016 में पाकिस्तान की पहली महिला सोशल मीडिया सेलिब्रेटी कंदील बलोच की हत्या उनके ही भाई ने कर दी थी क्योंकि उनका मानना था कि कंदील सोशल मीडिया पर 'परिवार की इज़्ज़त धूमिल करने वाले बोल्ड वीडियो' पोस्ट कर रही थीं.

कंदील बलोच की हत्या के बाद ही सोशल प्लेटफ़ॉर्म को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के बारे में बहस शुरू हुई और पीड़ितो की मदद के लिए क़ानून बनाए गए.

क़ानून लागू करने के पांच साल बाद भी रिवेंज पोर्न, अंतरंग तस्वीरों का सहमति के बिना इस्तेमाल और तस्वीर के साथ छेड़छाड़ कर ब्लैकमेल करने के मामलों में केवल 27 लोगों को दोषी क़रार दिया गया है.

'लंबी और थकाने वाली क़ानूनी प्रक्रिया'
पिछले महीने पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने कराची यूनिवर्सिटी की एक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की केस स्टडी को अपनी गंभीर रिपोर्ट में शामिल किया है. यह केस स्टडी मंगलवार को लॉन्च की जा रही है.

आयोग की 'रीथिंकिंग द प्रीवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स एक्ट, हाउ साइबर क्राइम्स लॉज़ आर वीपेनाइज़्ड अगेंस्ट वीमेंस' नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एक महिला असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ने अपनी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करके ऑनलाइन पोस्ट किए जाने की शिकायत दर्ज कराई थी.

शिकायत दर्ज कराने के चार साल आठ महीने और 141 सुनवाई के बाद उसी यूनिवर्सिटी के एक अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर को इसके लिए दोषी क़रार दिया गया. इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि इन चार सालों के दौरान संघीय जांच एजेंसी (एफ़आईए) ने मामले को बर्बाद करने की तमाम कोशिशें कीं.

जांच एजेंसी ने पहले तो महिला को अदालत की सुनवाई के बारे में जानकारी नहीं दी. महिला को सुनवाई में शामिल होने के लिए घंटों इंतज़ार करना होता था क्योंकि जांच अधिकारी और अभियोजक मौजूद नहीं होते थे. अभियुक्त के वकील के सवाल शर्मसार करने वाले होते थे. वो महिला प्रोफ़ेसर से उन तस्वीरों के बारे में विस्तार से बताने के लिए कहते थे.

निग़त दाद के मुताबिक़ एजेंसी हालांकि अपनी प्रक्रिया सरल और महिला के प्रति ज़्यादा सहज बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं, वो कुछ हद तक ठीक हैं.

निग़त दाद बताती हैं, "कुछ ही मामले हैं जो अदालत तक पहुंचते हैं. अगर पीड़िता महिला की शिकायत दर्ज हो जाए और सुनवाई शुरू हो जाए तो दूसरा सवाल सामने आता है कि क्या अदालती कार्रवाई के दौरान पीड़िता ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर पाएगी. यह भी तय करना होता है कि सुनवाई की बातें मीडिया की सुर्ख़ियां न बनें और अदालत के सामने जो सबूत पेश किए जाएं वे ठोस और भरोसेमंद हों. साथ ही उन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक न किया जाए. दुर्भाग्य ये है कि क़ानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और थकाने वाली होती हैं. इस चलते महिलाएं न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए सामने नहीं आना चाहतीं."

निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
वैसे पाकिस्तान की फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी एफ़आईए इन आरोपों और पीड़िता के साथ किसी तरह के भेदभाव से इनकार करती है.

एजेंसी का कहना है कि वह प्रक्रिया को और ज़्यादा सरल बनाने के लिए काम कर रही है. पिछले कुछ सालों में एजेंसी में दर्जनों नियुक्तियां हुई हैं. नई तकनीक के आधार पर लोगों को प्रशिक्षित भी किया गया है.

साइबर क्राइम विंग के ऑपरेशंस डायरेक्टर बाबर बख़्त क़ुरैशी कहते हैं कि इन सब के बाद भी दोषियों को सज़ा दिलाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है.

उन्होंने बताया, "दोष साबित करने के लिए सुनवाई में पर्याप्त समय लगता है. देश के संविधान के तहत निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार सभी को है. लेकिन इसमें कुछ साल लगते हैं. 2016 में 'प्रीवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स एक्ट' लागू हुआ और 2019 से अब तक 27 मामलों में अभियुक्त पर ही दोष साबित किया जा सका है."

बाबर बख़्त क़ुरैशी के मुताबिक़ साइबर क्राइम विंग में ज़्यादा महिलाओं को नियुक्त किया जा रहा है और सभी महिलाओं को जेंडर को लेकर संवेदनशील होने की ट्रेनिंग दी गई है.

उन्होंने बताया, "जो महिलाएं हमारे पास आ रही हैं उनके लिए हम चीज़ें सरल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि वे अपने लिए खड़ी हों, लेकिन हमारी तमाम कोशिशों के बाद भी वे कई बार पीछे हट जाती हैं. ऐसी स्थिति में दोषियों को सजा दिलाना असंभव हो जाता है." (bbc.com)


अन्य पोस्ट