अंतरराष्ट्रीय

अफगानिस्तान में सेना की मदद करने वालों का पहला दस्ता जर्मनी आ गया है. इसमें 23 लोग हैं. कुल 2,380 लोगों को अनुमति मिली है लेकिन उनके आने में समय लगेगा.
डॉयचे वैले पर आलेक्स बेरी की रिपोर्ट
अफगानिस्तान में जर्मन सेना के अभियान के दौरान मदद करने वाले अफगान नागरिकों का पहला दस्ता शरणार्थी के तौर पर जर्मनी आ गया है. डेर श्पीगल पत्रिका ने खबर छापी है छह लोगों का पहला दस्ता जर्मनी पहुंच गया है. तालिबान के डर से ये लोग जर्मनी में शरण चाहते हैं.
डेर श्पीगल ने सोमवार को लिखा कि ये छह लोग अपने परिवारों के साथ जर्मनी आए हैं. इसके साथ ही जर्मन सेना की मदद करने वाले अफगान लोगों को तालिबान से सुरक्षा और शरण देने का कार्यक्रम शुरू हो गया है.
23 लोग आए
छह मददगार अपने परिजनों के साथ आए हैं. इस तरह कुल 23 लोग जर्मनी पहुंचे हैं जिनमें बच्चे भी शामिल हैं. मजार ए शरीफ से इन लोगों को टर्किश एयरलाइन्स के विमान से जर्मनी लाया गया. आने वाले दिनों में 30 और लोगों के इसी तरह जर्मनी आने की संभावना है.
जर्मन सैन्य अधिकारियों ने अफगानिस्तान छोड़ने से पहले 471 स्थानीय कर्मचारियों का एक दस्तावेज तैयार किया था. इनमें अनुवादक और अन्य कर्मचारी शामिल हैं. इनके परिजनों के कुल 2,380 वीजा दस्तावेज भी तैयार किए गए हैं.
नाटो सेनाएं अफगानिस्तान से वापसी कर रही हैं. जर्मनी के सारे सैनिक स्वदेश लौट चुके हैं. पिछले महीने ही आखिरी जर्मन सैनिकों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था. अमेरिकी सैनिक भी 11 सितंबर से पहले अपनी वापसी पूरी कर लेना चाहते हैं, जिसके साथ 20 साल लंबा अभियान खत्म हो जाएगा.
पश्चिमी सेनाओं के अफगानिस्तान में काम करने के दौरान बहुत से अफगान नागरिकों ने उनके लिए काम किया था और उनकी मदद की थी. अब जबकि ये सेनाएं देश छोड़ रही हैं और तालिबान का बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा होने की खबरें आ रही हैं, तो पश्चिमी सेनाओं के लिए काम करने वाले लोगों को डर सता रहा है कि तालिबान उनसे बदला ले सकता है.
जर्मन सरकार की आलोचना
जर्मन सरकार ने पहले बीते दो साल में उसकी सेना के साथ काम करने वाले अफगानों को सुरक्षा देने की योजना बनाई थी. लेकिन बाद में इस अवधि को बढ़ा दिया गया था और 2013 के बाद से जर्मन सेना के साथ काम करने वाले अफगान लोगों को इसमें शामिल किया गया.
फिर भी, काफी लोग सरकार की आलोचना कर रहे हैं क्योंकि वीजा प्रक्रिया बहुत जटिल बताई जा रही है. डेर श्पीगल के मुताबिक जर्मन नेताओं को डर है कि वीजा की प्रक्रिया आसान होने पर अर्जियों की संख्या बहुत बढ़ सकती है.
जर्मन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता राएनर ब्रोएल ने माना है कि जर्मन सेना के देश से चले जाने और मजार ए शरीफ में कान्स्युलेट बंद हो जान से वीजा प्रक्रिया जटिल हुई है. उन्होंने कहा कि लोगों की सुविधा के लिए सरकार इंटरनैशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही है.
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता डेहेल्मबोल्ड ने कहा कि वीजा अर्जियों की संख्या कम रखी गई है क्योंकि जिन लोगों को भी यात्रा दस्तावेज दिए गए हैं, उनमें से सभी लोग एकदम नहीं आना चाहते थे.
आलोचकों को इस बात की भी शिकायत है कि जो अफगान लोग जर्मन सेना के साथ सीधे काम करने के बजाय, किसी ठेकेदार के जरिए काम करते थे, उन्हें इस योजना में शामिल नहीं किया गया है. (dw.com)