गरियाबंद

जैन भवन में लगातार चल रहा भक्तामर आराधना अनुष्ठान
14-Aug-2024 4:33 PM
जैन भवन में लगातार चल रहा भक्तामर आराधना अनुष्ठान

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा-राजिम, 14 अगस्त।
नगर में दिगंबर जैन समाज में चल रहे चातुर्मास में आर्यिका रत्न 105 स्वाध्याय एवं चर्यामाताजी के सानिध्य में भक्तामर आराधना में अनुष्ठान संपन्न कराया गया। जिसके पुण्यार्जक रमेश स्वप्निल स्वपन चौधरी, साकेत सनत चौधरी, माया पूजा सोनी तथा राकेश सत्यम शुभम चौधरी परिवार रहे। सर्वप्रथम गुरुओं का चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन कर आचार्य भगवन 108 विमद सागर और विभव सागर की पूजन संगीत के साथ भक्ति भाव से संपन्न कराई गई। जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने भी शामिल होकर पूजन अनुष्ठान का लाभ लिया।

आर्यिका चर्या माताजी ने भक्तामर के 15 और 16 नंबर के काव्य का वाचन कर अपने मंगल प्रवचन में इनका सार बताया। आचार्य भगवान मानतुंगाचार्यजी इस काव्य के वर्णन में कहते हैं कि तीर्थंकर भगवान सदैव अपने ज्ञान और ध्यान में लीन रहते हैं। जिस प्रकार सुमेरु पर्वत कितनी भी प्रलय काल आने पर भी विचलित नहीं होता, उसी तरह आपका ध्यान किंचित मात्र भी अधीर नहीं होता है। हमें अपने जीवन में धर्म को स्थान देना चाहिए और अपने द्वारा कभी भी धर्म की अप्रभावना नहीं होने देना ही धर्म की सच्ची प्रभावना है। आचार्य भगवान 1008 आदिनाथ भगवान की स्तुति करते हुए कहते हैं कि आप राग, द्वेष, मोह रूपी तेल, धुआं और बाती से रहित है, फिर भी तीनों लोकों को प्रकाशित कर रहे हैं। दीपक तो प्रलय काल में बुझ जाता है। किंतु आप तो केवल ज्ञान रूपी दीपक हो जो तीनों लोकों को सदैव ही प्रकाशित कर रहे हैं।
 


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