संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक युवती की मिसाल से दिख रहा है संभावनाओं का असीमित आकाश...
सुनील कुमार ने लिखा है
06-Nov-2025 4:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  एक युवती की मिसाल से दिख रहा है संभावनाओं का असीमित आकाश...

छत्तीसगढ़ के कवर्धा से निकलकर रायपुर में फिजियोथैरेपी में मास्टर्स की डिग्री हासिल करने वाली आकांक्षा सत्यवंशी आज भारत की उस महिला क्रिकेट टीम की फिजियोथैरेपिस्ट हैं जिसने वल्र्ड कप जीता है। इस तरह वे विश्व विजेता महिला क्रिकेट टीम की फिजियोथैरेपिस्ट होने के साथ-साथ खेल विज्ञान विशेषज्ञ भी हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी खुले दिल से उनका स्वागत किया है, और मुख्यमंत्री ने 10 लाख रूपए की एक सम्मान राशि की घोषणा की है। यह खेल और फिजियोथैरेपी की दुनिया में छत्तीसगढ़ में एक अलग किस्म की उपलब्धि है क्योंकि आमतौर पर राष्ट्रीय टीम के लिए इस तरह की जरूरतें बड़े शहरों, या बड़े खेल केन्द्रों से ही पूरी हो जाती है। लेकिन इस एक खबर से यह संभावना पता लगती है कि छत्तीसगढ़ में पढ़े हुए लोग किस तरह बाकी दुनिया में जाकर काम करने की संभावना रख सकते हैं।

अब अगर हम एक पल के लिए फिजियोथैरेपी की ही बात करें, तो आज न सिर्फ खेल टीमों के लिए बढ़ती हुई सुविधाओं के तहत इस तरह के हुनर की जरूरत भी जुड़ती चली जा रही है। टीम में जहां पर फिजियोथैरेपिस्ट नहीं रहते थे, वहां भी अब रहने लगे हैं। लेकिन हम खेलकूद और टीम से परे भी देखें, तो बढ़ती हुई शहरी जिंदगी में भी फिजियोथैरेपी की जरूरत बढ़ रही है, लोगों की जीवनशैली की वजह से उन्हें कुछ या कई किस्म की शारीरिक दिक्कतें बढ़ती हैं, और इस चिकित्सकीय हुनर की बड़ी जरूरत लोगों को समझ आ रही है। फिर हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम दुनिया के बहुत से दूसरे देशों में घटती हुई नौजवान आबादी, और वहां पर बढ़ती हुई बूढ़ी आबादी की चर्चा कर चुके हैं कि किस तरह लोगों की देखरेख के काम पैदा हो रहे हैं। बूढ़े लोगों और मरीजों की देखरेख में फिजियोथैरेपी एक अनिवार्य हुनर रहेगा, और इसके साथ-साथ अगर नौजवानों को कुछ देशों की भाषाएं और संस्कृतियां भी सिखाई जा सकेंगी, साथ-साथ चिकित्सकीय देखरेख के दूसरे पहलू सिखाए जा सकेंगे, तो वे हिन्दुस्तान की बहुत मामूली तनख्वाह के बजाय दूसरे देशों में बहुत बेहतर कामकाज पा सकेंगे, और अपने पूरे परिवार की जिंदगी बदल सकेंगे। छत्तीसगढ़ की इस युवती की मिसाल से ही राज्य सरकार यह प्रेरणा ले सकती है कि वह बाकी युवा पीढ़ी को किस-किस तरह के कामों के शिक्षण-प्रशिक्षण देकर, भाषाएं सिखाकर, अलग-अलग देश-प्रदेश की कुछ संस्कृतियां बताकर उन्हें बेहतर संभावनाओं के लिए तैयार किया जा सकता है।

आज भारत में जिसे गरीबों के लिए रोजगार गारंटी योजना कहा जाता है, उसमें दिन भर मजदूरी करने पर भी महीने में 10 हजार रूपए भी नहीं मिल सकते, और साल भर में सौ-पचास दिन से अधिक का तो काम भी नहीं रहता। फिर ऐसी योजनाएं देश के लिए अधिक उत्पादक नहीं रहती हैं, और वे रोजगार योजनाएं ही रहती हैं, लोगों को किसी तरह काम देने के लिए। ऐसी योजनाएं सरकारों को यह साफ तस्वीर देती हैं कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा मनरेगा जैसी योजना का मोहताज रहता है। अब आज नौजवान होने जा रही पीढ़ी को अगर बेहतर उत्पादकता के हिसाब से तैयार किया जा सकता है, तो उससे देश की उत्पादकता भी बढ़ेगी, और समाज में ऐसे नौजवानों के परिवार भी बेहतर तरीके से जी सकेंगे। इन दोनों ही बातों से देश की अर्थव्यव्सथा का पहिया भी घूमेगा।

आज जरूरत केन्द्र और राज्य सरकारों के स्तर पर देश और बाकी दुनिया में ऐसे कामों की शिनाख्त करने की है जिनके लिए भारत के नौजवानों को तैयार किया जा सकता है। फिर ऐसे अधिक संभावना वाले चुनिंदा देशों की भाषा सिखाने-पढ़ाने के साथ-साथ वहां की जरूरत के हुनर के शिक्षण-प्रशिक्षण का काम भी सरकारों को करना चाहिए, और इन देशों की संस्कृतियों, रीति-रिवाजों का प्रशिक्षण भी देना चाहिए। आज दुनिया के कई बड़े-बड़े विकसित देश तो ऐसे हैं जो कि कामगारों की बढ़ती जरूरत, और घटती गिनती को देखते हुए दूसरे देशों के हुनरमंद कामगारों को बड़ी संख्या में अपने यहां रख रहे हैं। कुछ देश तो गिरती आबादी को थामने के लिए भी दूसरे देशों के लोगों को अपने यहां बसाने की योजना बना रहे हैं, बना चुके हैं। दुनिया में जो देश अधिक सावधान और चौकन्ने रहेंगे, वे ऐसी संभावनाओं को पहले लपकेंगे। भारत सरकार और राज्य सरकारों को मिलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन संभावनाओं को तुरंत देखना चाहिए। हो सकता है भारत में दक्षिण के कुछ राज्य अपने लोगों के लिए ऐसा कर भी रहे हों, आखिर केरल के दसियों लाख लोग खाड़ी के देशों में काम कर ही रहे हैं, आंध्र और तेलंगाना के दसियों लाख लाख अमरीका और दूसरे पश्चिमी देशों में काम कर रहे हैं। इनमें कुछ लोग ऊंची पढ़ाई के बाद बड़े स्तर के काम कर रहे होंगे, लेकिन लाखों लोग ऐसे भी हैं जो ट्रक ड्राइवरी से लेकर घरेलू सहायक का काम भी करते हैं। भारत के मुकाबले वहां पर उन्हें अधिक तनख्वाह मिलती है, और अधिकतर लोगों के बच्चों के लिए भी एक बेहतर भविष्य रहता है। अभी विकसित देशों में गैरकानूनी तरीके से घुसपैठ करके बहुत से लोग जा रहे हैं, लेकिन सरकार अगर लोगों को अच्छी तरह तैयार करेगी, तो हो सकता है कि कई देशों में उनके लिए कानूनी दरवाजे भी खुले रहें।

भारत में कॉलेजों की अधिकांश डिग्रियां लोगों को सरकारी नौकरी की कतार में खड़े हुए बेरोजगार से अधिक और बेहतर कुछ नहीं बना पाती। इसके बजाय मिडिल स्कूल के बाद से छात्र-छात्राओं के रूझान और क्षमता को देखकर उन्हें अलग-अलग हुनर सिखाने, तकनीक पढ़ाने जैसे काम करने चाहिए, ताकि वे बेरोजगारी के दर्ज आंकड़ों को इजाफा करने के बजाय दूसरे देश से अपने परिवार को डॉलर भेजने वाले बन सकें। भारत सरकार के स्तर पर ऐसा एक वैश्विक निगरानी वाला प्रकोष्ठ बनाना चाहिए, जो कि अधिक संभावना वाले एक-दो दर्जन देशों के साथ तालमेल करके, वहां की जरूरतों के हिसाब से भारतीय नौजवान पीढ़ी के एक काबिल हिस्से को तैयार करने की योजना बनाएं, और राज्यों को भी उसमें शामिल करे।   

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