संपादकीय
छत्तीसगढ़ के बगल ओडिशा में कुछ बरस पहले एक शादी के तोहफे में पार्सल-बम भेजकर दूल्हे का कत्ल करने वाले एक भूतपूर्व कॉलेज प्रिंसिपल को अभी मई के महीने में उम्रकैद हुई है। 56 बरस के पुंजीलाल मेहर ने 26 बरस के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को शादी के कुछ दिन बाद यह पार्सल भेजा था जिसे खोलते ही नवविवाहित नौजवान और उसकी चाची तुरंत मारे गए थे, और उसकी पत्नी बुरी तरह जख्मी हो गई थी। यह हमला पेशेवर जलन की वजह से किया गया था, और यह पार्सल छत्तीसगढ़ के रायपुर में बुक किया गया था। अब कल छत्तीसगढ़ में एक ऐसा दूसरा पार्सल बम पकड़ाया है जिसमें एक पति को रास्ते से हटाने के लिए उसकी पत्नी से एकतरफा मोहब्बत करने वाले एक नौजवान ने भयानक विस्फोटकों वाला बम बनाकर भेजा था। होम थियेटर के स्पीकर में विस्फोटक जिलेटिन और डेटोनेटर भरकर इसे तैयार किया गया था, और इसे बिजली से जोड़ते ही विस्फोट हुआ रहता, और अकल्पनीय धमाका और नुकसान होता। ऐसा बम बनाने और उसे भेजने में शामिल सात लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यह बम इंटरनेट पर तकनीक देखकर बनाया गया था, और इसके लिए एक खदान से बड़े ऊंचे दर्जे का विस्फोटक चुराया गया था। एक शादीशुदा मुस्लिम महिला की पत्नी से एकतरफा मोहब्बत करने वाले 20 बरस के विनय वर्मा ने यह साजिश रची, और परमेश्वर वर्मा, गोपाल वर्मा, घासीराम वर्मा, दिलीप ढीमर, गोपाल खेलवाड़, और खिलेश वर्मा इस साजिश में उसके साथ जुट गए। किसी महिला के पीछे लगकर उसके पति को मारने की ऐसी भयानक साजिश की भी पिछली कोई मिसाल याद नहीं पड़ती है, और एक सिरफिरे की मदद करने को इतने दूसरे लोगों ने अपनी-अपनी जिंदगियां इस तरह झोंक दीं, यह भी लोगों में एक बेमिसाल बेवकूफी का सुबूत है। लगता है कि रोज अखबारों में छपने वाले दर्जनों समाचारों से भी लोग सबक नहीं लेते हैं, और यह मान बैठते हैं कि विस्फोट की ऐसी भयानक साजिश पूरी हो जाने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाएगी। यह तो गनीमत कि पार्सल मिलने पर ऐसे होम थियेटर सिस्टम के स्पीकर का सामान्य से बहुत अधिक वजन इस इलेक्ट्रिशियल पति को खटक गया, और जांच करने पर वह किसी खदान को उड़ा देने लायक विस्फोटक निकला, जाने कितनी जिंदगियां बच गईं।
इस मुद्दे पर लिखते हुए अलग-अलग कई पहलू सूझ रहे हैं। पहली बात तो यह कि एक शादीशुदा महिला से ऐसी एकतरफा मोहब्बत कई किस्म से जानलेवा और खूनी हो सकती है। दूसरी बात यह कि ऐसी नाजायज चाहत लोगों की अक्ल पर पूरी तरह से इतना मोटा पर्दा डाल सकती है कि वे ऐसी साजिश तैयार करें, और एक सिरफिरे तथाकथित आशिक के साथ उसके आधा दर्जन और दोस्त भी ऐसे फिल्मी कत्ल में भागीदार बनने को तैयार हो जाएं। आज जब हर छोटा-बड़ा जुर्म पकड़ में आ ही जाता है, तब इतनी बड़ी साजिश बनाकर कत्ल करने की कोशिश करने वाले को यह भी समझ नहीं आया कि जिस महिला से चाहत का दावा वह करता है, वह महिला भी तो ऐसे किसी बड़े विस्फोट में मारी जा सकती थी। फिर बचे आधा दर्जन लोग मानो किसी रोमांचक पर्यटन पर साथ जाने को तैयार हो गए हों, वे सब भी दस-बीस बरस जेल में काटने की हरकत में भागीदार हो गए! ऐसे लोगों को देखकर ही सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस मार्कण्डेय काटजू की यह बात सही लगती है कि 90 फीसदी हिन्दुस्तानी बेवकूफ होते हैं। अभी गिरफ्तार ये सातों लोग शर्तियां तौर पर इस 90 फीसदी में शामिल हैं, हालांकि आंकड़ों को 90 फीसदी तक पहुंचाने में लोगों का मतदाता का रूख भी काम आता होगा, और जाति-धर्म के नाम पर जुर्म करने का रूख भी।
खैर, हम आज की बात को इसी किस्म की एकतरफा मोहब्बत तक सीमित रखें, तो यह बात जाहिर है कि भारत की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा तरह-तरह की कुंठाओं में जीता है। अधिकतर लोगों को अपनी पसंद के विपरीत सेक्स के लोगों के साथ उठने-बैठने, जीने-रहने का मौका नहीं मिलता, जबकि वे फिल्मों और टीवी में वैसी ही जिंदगी देख-देखकर उसकी हसरत पाल चुके रहते हैं। अपूरित हसरतें कुंठाओं में बदलती हैं, और कुंठाएं जाने कब हिंसा के बाड़े में दाखिल हो जाती हैं। इसलिए कई जगह इकतरफा मोहब्बत करने वाले तथाकथित आशिक निराश होने के बाद राह चलते उस लडक़ी या महिला को चाकू भोंक देते हैं, उसके चेहरे पर तेजाब फेंक देते हैं। इससे कुछ अहिंसक दर्जे के लोग सिर्फ अच्छे दिनों के फोटो-वीडियो को फैलाकर ही हिंसा को लगाम लगा देते हैं। लेकिन हिन्दुस्तान में जब अधिकतर आबादी को अपनी विपरीत सेक्स, या कि सेम-सेक्स की पसंद के साथ रहने का आसान मौका नहीं मिलता, तो उनकी कुंठाएं कई मामलों में हिंसा में तब्दील हो जाती हैं।
इसके अलावा एक और बात भारतीय समाज में है। खासकर हिन्दू समाज में, जहां पर कि विवाह को जन्म-जन्म का बंधन मान लिया जाता है, और हाल ही में हाईकोर्ट के जजों ने भी हिन्दू विवाह धारणा के इस पहलू को एक फैसले में लिखा था। ऐसे समाज में तलाक या किसी और तरह से अलग होना बहुत आसान नहीं रह जाता है, और लोग परिवार या समाज के दबाव में रिश्तों को भरी हुई बोरी की तरह बाकी जिंदगी ढोने के लिए मजबूर रहते हैं। ऐसे रिश्तों में भी, उनसे छुटकारा पाने के लिए पति, पत्नी, प्रेमी, और/या प्रेमिका के बीच किसी तरह के त्रिकोण में जान लेना या देना चलते ही रहता है। और फिर अगर रहस्य, रोमांच, और खूनखराबे से भरपूर ऐसी कहानी में मानो कोई कसर रह गई हो, ऐसा सिरफिरा और एकतरफा आशिक भी कहानी में एक बड़ा किरदार बनकर दाखिल हो जाता है, और एक पति को रास्ते से हटाने के लिए वह खासा खतरनाक विस्फोटक-विशेषज्ञ भी बन जाता है।
ऐसा लगता है कि 90 फीसदी से भी अधिक हिन्दुस्तानी परले दर्जे के मूरख रहते हैं, और वे यह मानकर चलते हैं कि पुलिस दुनिया की सबसे मूर्ख जांच एजेंसी है, जो कि उन तक पहुंच ही नहीं पाएगी। इनकी बजाय तो जो पेशेवर मुजरिम रहते हैं, वे और कुछ नहीं, तो सामान्य समझबूझ का इस्तेमाल तो करते ही हैं, और ऐसी बेवकूफी के जुर्म नहीं करते। जिस विस्फोट से खदान की चट्टानें चकनाचूर हो जाती हैं, वैसा विस्फोटक बनाकर इस साजिश संग उसे भेजना कि उससे पति मर जाए, और पत्नी अपने हाथ लग जाए, यह जस्टिस काटजू के निष्कर्ष का सबसे बड़ा आधार रहा होगा। खैर, मुजरिमों के बेवकूफ और मंदअक्ल होने का हमें अधिक अफसोस नहीं है, अगर वे बहुत ही धूर्त और अक्लमंद होते तो समाज के लिए वे अधिक बड़ा खतरा रहते, और पुलिस के लिए अधिक बड़ी चुनौती। यह तो अच्छा ही है कि वे उतने होशियार नहीं हैं, और इसीलिए ऐसे सात विस्फोटक-विशेषज्ञ अब एक-दो दिन में ही पुलिस की गिरफ्त में हैं। लोगों को अपने परिवार के, और आसपास के लोगों को इस घटना के ऐसे सबक बताने भी चाहिए कि जुर्म करके पुलिस से बच पाना केवल डॉन के लिए 11 मुल्कों में कुछ हद तक मुमकिन हो सकता है, बाकी सारे मुजरिमों को जस्टिस काटजू की पुलिस तेजी से गिरफ्तार कर ही लेती है।


