संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : 45 मिनट में बाढ़ का पानी चढ़ा, 26 फीट!
सुनील कुमार ने लिखा है
06-Jul-2025 5:58 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : 45 मिनट में बाढ़ का पानी चढ़ा, 26 फीट!

अमरीका के टेक्सास में कल अचानक आई बाढ़ में 50 से अधिक लोगों के मरने की खबर है जिसमें तकरीबन आधे तो ऐसे बच्चे हैं जो कि एक किसी कैम्प में इकट्ठा थे। अचानक हुई भयानक बारिश से नदी में और सूखी जगहों पर भी बाढ़ इस रफ्तार से आई कि लोग उसे समझ ही नहीं सके कि यह क्या हो रहा है। वहां के गवर्नर ने बताया कि वहां की बड़ी नदी गुआदालूपे में जल स्तर 45 मिनट के भीतर 26 फीट बढ़ गया। 26 फीट यानी ढाई मंजिला इमारत! और यह ऊंचाई किसी इमारत की नहीं है, यह नदी में जल स्तर की है। आमतौर पर लोग यह उम्मीद करते हैं कि अगर पानी ऊपर आएगा, खतरे के निशान तक पहुंचेगा, तो उसके लिए अधिकतर जगहों पर इंच-इंच के निशान लगे रहते हैं, और पुलों या किसी और दीवार पर बने इन निशानों को देखकर कहा जाता है कि पानी का स्तर कितना ऊंचा हुआ है। लेकिन पौन घंटे में 26 फीट पानी ऊपर जाने का मतलब हर दो मिनट से कम में एक फीट से अधिक पानी बढ़ जाना! इसके पहले अमरीका के कुछ राज्यों में 12 या 24 घंटों में 26 फीट का रिकॉर्ड रहा है, लेकिन इस बार के टेक्सास के रिकॉर्ड की मिसाल ढूंढने पर भी इतिहास में नहीं मिल रही है। मतलब यह कि मौसम की सबसे बुरी मार रिकॉर्ड तोड़ते चल रही है, और वह अकल्पनीय सीमा के पार जा रही है।

आज दुनिया में अधिकतर जगहों पर जलवायु परिवर्तन से वैदर-एक्स्ट्रीम कही जाने वाली घटनाएं जल्दी-जल्दी बढ़ रही हैं, और उनकी भयावहता भी बढ़ती चल रही है। हाल के दशकों में लोगों की सुख और सहूलियत की चाह ने धरती के पर्यावरण का संतुलन मरम्मत की सीमा के बाहर तक बिगाड़ दिया है। लोग इतनी बिजली खा रहे हैं, सामानों की इतनी खपत कर रहे हैं, निजी गाडिय़ों का इतना भयानक इस्तेमाल कर रहे हैं कि धरती का पर्यावरण इतना नुकसान झेल नहीं पा रहा है। लोगों की बिजली की बढ़ती हुई मांग पूरी करने के लिए कोयले के बिजलीघर बढ़ते चल रहे हैं, उनमें खपत बढ़ती चल रही है, उससे प्रदूषण बढ़ते चल रहा है, और उससे पर्यावरण का संतुलन खत्म हो चला है। इस मुद्दे पर लिखना जलवायु परिवर्तन पर एक निबंध लिखने सरीखा होगा, और इस निबंध को पढऩे वाले भी लोग अब कम से कम अमरीकी राष्ट्रपति भवन में नहीं हैं। डोनल्ड ट्रम्प ने दुनिया के सबसे अधिक खपत वाले देश अमरीका को जिस तरह पेरिस जलवायु समझौते से बाहर कर दिया है, और जलवायु परिवर्तन के पूरे मुद्दे को जिस तरह वह ग्रीन-धोखाधड़ी कहता है, उससे यह जाहिर है कि दुनिया पर्यावरण की अधिक बर्बादी की तरफ बढ़ रही है, और अमरीका इस बर्बादी का झंडाबरदार बना हुआ है। दुनिया का सबसे बड़ा मवाली ही जब पर्यावरण का दुश्मन बन जाए, तो बाकी दुनिया पर से नैतिक दबाव खत्म हो जाता है। नतीजा यह है कि आज अमरीका का एक राज्य धरती के इतिहास की सबसे तेज रफ्तार बर्बादी भुगत रहा है, और ट्रम्प के हाथ नगद रकम भेजने से परे और कुछ नहीं रह गया है।

जब दुनिया का सबसे ताकतवर, तथाकथित लोकतंत्र अपने आपको पर्यावरण की किसी भी जिम्मेदारी और जवाबदेही से आजाद कर लेता है, अपने आपको सिर्फ एक कारोबारी नजरिए तक सीमित रखता है, तो उसके मुकाबले, और उसके असर में दुनिया के और बहुत से देश ऐसा करने को मजबूर हो जाते हैं क्योंकि इसके बिना वे अमरीका से बाजारू मुकाबला नहीं कर सकते। फिर जब पृथ्वी का राजा ही बर्बादी का मुखिया बन जाए, तो दूसरे देश कब तक पर्यावरण बचाने के लिए अपने बजट से खर्च कर सकते हैं? जब शहरी नेता-जनता बड़ी-बड़ी गाडिय़ों के काफिलों में चलते हुए पर्यावरण बर्बाद करें, तो गांव-जंगल में बसे हुए आदिवासी भला पर्यावरण को बचाने में अपने-आपको बचाने कब तक झोंकें? पेरिस समझौते से अमरीका के निकल जाने के बाद, और ट्रम्प के हमलावर बाजारू तेवरों को देखते हुए अब दुनिया में पर्यावरण को बचाने की फिक्र एक किस्म से निलंबित हो गई है, मंदी और धीमी हो गई है।

लेकिन ट्रम्प जैसे गैरजिम्मेदार बेवकूफ तानाशाह को अपने तात्कालिक कारोबारी हितों से परे यह भी नहीं दिख रहा कि धरती का पर्यावरण बिगडऩे से जो तापमान बढ़ रहा है, और जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उसकी अंधाधुंध मार गरीब देशों पर अधिक पड़ रही है, जो कि पर्यावरण बिगाडऩे के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। सबसे गरीब देशों में जलवायु परिवर्तन से कहीं सूखा पड़ रहा है, कहीं बाढ़ आ रही है, फसल चारों तरफ बर्बाद हो रही है, और जमीन के नीचे पानी गहरे चले जा रहा है। दुनिया के कई गरीब देशों में दसियों लाख लोगों को अपने इलाके छोडक़र पानी की तलाश में न सिर्फ अपने देश के दूसरे हिस्सों में जाना पड़ रहा है, बल्कि पड़ोसी देशों में भी शरणार्थी बनकर पहुंचना उनकी मजबूरी हो गई है। ऐसे में एक बेरहम, और मुनाफाखोर भूमाफिया डोनल्ड ट्रम्प को धरती के हर हिस्से का बाजारू-दोहन सूझ रहा है, ऐसे में पर्यावरण बचाने की बात भला कौन कर सकते हैं? इन्हीं सब बातों का नतीजा है कि ट्रम्प के ही अमरीका के टेक्सास में आज इस तरह की अभूतपूर्व और असाधारण बाढ़ आई है, जिसमें मौतें तो अभी अंधाधुंध नहीं हुई हैं, लेकिन अमरीकी धरती ने बाढ़ की यह जानलेवा शक्ल देख ली है। फिर भी हमें कोई उम्मीद नहीं है कि ट्रम्प नाम का यह मुजरिम इससे कोई सबक ले सकेगा, और ऐसे मवाली के चलते बाकी दुनिया के देशों की सरकारों को भी गैरजिम्मेदार बनने का एक बहाना तो मिल ही जा रहा है। वैसे भी चार-पांच बरस के लिए चुनकर आने वाली सरकारों के लिए चौथाई या आधी सदी बाद की पर्यावरण-फिक्र बहुत लोकप्रिय तो कभी रही भी नहीं, अब धरती पर जलवायु की और अधिक गारंटी तय हो गई है।

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