संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने महिलाओं के दो तबकों को दी शानदार मजबूती...
30-Sep-2022 2:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने महिलाओं के दो तबकों को दी शानदार मजबूती...

किसी भी विकसित लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट को आम लोग एक अदालत मान लेते हैं। दरअसल यह बहुत से जजों की अलग-अलग, और मिलीजुली कई किस्म की अदालतें का एक समूह होता है जिसका फैसला वैसा ही हो सकता है जैसा कि उसे लिखने वाले जज हों। किसी एक वक्त में एक मामला एक जज से एक किस्म का फैसला पा सकता है, और अगर वह किसी दूसरे जज के सामने पड़ा होता, तो हो सकता है कि फैसला उसका ठीक उल्टा भी होता। और हर मामले में ऐसी पुनर्विचार याचिका की गुंजाइश नहीं होती कि एक जज के फैसले से असहमति के बाद दूसरे अलग जज उस मामले को सुने ही सुनें। फिर यह भी रहता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सोच क्या है, वे खुद अपनी निजी विचारधारा के चलते किन मामलों को सुनना चाहते हैं, या किन मामलों को किन जजों की बेंच में भेजना चाहते हैं। ऐसे कई मुद्दे रहते हैं जिनकी वजह से देश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले अलग-अलग किस्म के आते हैं, फिर भी हिन्दुस्तान इस मायने में अमरीका जैसे देश से बिल्कुल अलग है जहां पर जजों की निजी विचारधारा, उनकी पसंद और नापसंद सार्वजनिक रूप से अच्छी तरह दर्ज होती है, और फैसला आने के पहले ही लोग यह विश्लेषण कर लेते हैं कि जजों के कितने बहुमत से कैसा फैसला आएगा। वहां के जजों के मुकाबले हिन्दुस्तानी जजों के पूर्वाग्रहों की पहचान उतनी मजबूत नहीं रहती है, और यहां पर फैसले कई बार चौंकाने वाले भी रहते हैं। यह एक अलग बात है कि भारत में भी अब बहुत से जजों को लेकर पहले से यह शिनाख्त बन जाती है कि वे किस विचारधारा के हैं, और उनसे किसके पक्ष में फैसले की उम्मीद की जानी चाहिए।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अभी एक शानदार फैसला दिया है जिसमें भारत की महिलाओं के हक एक बार फिर से, कुछ अधिक दूर तक परिभाषित किए गए हैं। जस्टिस डी.वाई.चन्द्रचूड़ की अगुवाई में जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, और जस्टिस जे.बी.पारदीवाला ने अभी गर्भपात के अधिकार पर फैसला देते हुए महिलाओं के गर्भवती होने को उनके शादीशुदा होने से अलग कर दिया है, और यह साफ मान लिया है कि अविवाहित महिला भी सेक्स-संबंधों का उतना ही बुनियादी अधिकार रखती है जितना कि एक शादीशुदा महिला, और इस तरह से एक अविवाहित महिला भी गर्भपात की बराबरी की हकदार है, और वह उन्हीं पैमानों की हकदार है जो कि एक शादीशुदा महिला के गर्भपात के मामले में लागू होते हैं। यह एक संयोग ही रहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सुरक्षित गर्भपात दिवस के दिन आया। एक दिलचस्प बात यह है कि अदालत ने इस मामले पर फैसला देते हुए यह माना है कि शादीशुदा जिंदगी में भी एक महिला पति की सेक्सहिंसा का शिकार हो सकती है, और अगर उसकी सहमति के बिना, उसकी मर्जी के खिलाफ अगर ऐसा सेक्स हुआ है, तो इसके बाद के गर्भपात का हक उसे है। अदालत ने यह भी साफ किया है कि महिला को ऐसे गर्भपात के लिए सेक्स उसकी मर्जी के खिलाफ हुआ होने को साबित करने की जरूरत नहीं होगी। यहां यह याद रखने की जरूरत है कि भारत सरकार ने संसद और सुप्रीम कोर्ट में अपना यह पक्ष रखा है कि वह शादीशुदा जिंदगी के भीतर मर्द द्वारा जबर्दस्ती किए गए सेक्स को भी बलात्कार मानने के खिलाफ है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आज गर्भपात के इस मामले में इस स्थापित कानून के खिलाफ फैसला दिया है जो कि पत्नी से जबर्दस्ती सेक्स को भी रेप नहीं मानता। सुप्रीम कोर्ट ने कल के इस फैसले में मैरिटल रेप पर तल्ख टिप्पणियां की हैं, और कहा है कि सेक्सहिंसा के लिए यह मान लेना लापरवाही होगी कि केवल अजनबी ऐसा करते हैं, परिवारों के भीतर महिलाएं लंबे समय से ऐसी हिंसा झेलती हैं, और अगर कानून इसे अनदेखा करेगा तो यह रेप की शक्ल भी ले लेता है। अदालत ने यह साफ किया कि चाहे मौजूदा कानून के तहत मैरिटल रेप अपराध नहीं है, लेकिन गर्भपात कानून के तहत पत्नी के साथ जबरिया संबंध बनाना रेप माना जाएगा, और ऐसे रेप से होने वाली संतान को जन्म देना और पालना महिला को सजा देने सरीखा होगा।

एक तरफ जब दुनिया का सबसे विकसित और संपन्न देश अमरीका आज गर्भपात के मुद्दे पर दो फांक हो चुका है। वहां के दो प्रमुख राजनीतिक दल तो इस बंट ही गए हैं, इन दोनों दलों के परंपरागत समर्थक भी इस पर बुरी तरह बंट गए हैं, और अब अमरीका के अधिकतर राज्य इसे लेकर अपने अलग कानून बना रहे हैं क्योंकि वहां के सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं से गर्भपात के फैसले का अधिकार छीन लिया है। वहां के सुप्रीम कोर्ट जजों के बारे में पहले से यह आशंका चली आ रही थी कि उनमें पिछले दकियानूसी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के मनोनीत किए गए जजों की बहुतायत है, और वे गर्भपात के खिलाफ फैसला देंगे, और वैसा ही हुआ। दिलचस्प बात यह है कि अमरीका में गर्भपात के खिलाफ वही सोच काम करती है जो सोच चर्च से निकली है। धर्म को मानने वाले लोगों का एक बड़ा हिस्सा महिलाओं से इस अधिकार को छीन लेने का हिमायती रहा है। दूसरी तरफ भारत किसी भी मायने में अमरीका के मुकाबले कम धर्मालु देश नहीं है, और यहां के कई धर्मों में तो किसी जीव-जंतु को भी नुकसान पहुंचाने के खिलाफ नसीहतें हैं। लेकिन गर्भपात के मामले में हिन्दुस्तान एकदम से उदारवादी हो जाता है, क्योंकि अनचाही लड़कियों के बीच लडक़ों की चाहत पूरी करने का यही एक जरिया रहता है। खैर, अभी हम उस मुद्दे पर जाना नहीं चाहते क्योंकि आज मामला महिला की निजी पसंद का है, उसके अपने फैसले का है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अच्छा फैसला दिया है जिसमें शादीशुदा और गैरशादीशुदा महिलाओं के सेक्स, मां बनने, या गर्भपात के फैसलों को बराबर माना है। दूसरी बात यह कि शादीशुदा जिंदगी में पति के हाथों बलात्कार की शिकार होने वाली महिला को भी यह हक दिया है कि वह चाहे तो गर्भपात करवा सकती है। इस फैसले से अमरीकी सुप्रीम कोर्ट जैसी अदालतों को भी कुछ सीखना चाहिए। फिलहाल भारतीय महिला का एक और अधिकार कम से कम कानूनी रूप से मजबूत स्थापित हुआ है, जो कि कम राहत की बात नहीं है। इस फैसले से यह भी साबित होता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से जैसे भी निजी पूर्वाग्रहों की आशंका देश को हो, उनके मातहत काम करने वाले जजों की बेंच उन पूर्वाग्रहों की फिक्र किए बिना अपने अलग सोच के फैसले दे सकती हैं।
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